ये जमाना भी क्या अजीब लगता हैं
कुछ लोग ज़्यादा जी ले तो सबकों बुरा लगता है
और अगर कहीं लोग ज्यादा मर गए
तो जमाना दहशत में लगता है-
चुन लेना चाहिए अच्छे और बुरे में,
बुरे को कभी-कभी..
(full in caption)-
बनावटी बातें और दिखावटी लोग,
लोगों को ज्यादा पसंद आते है।
ये सब हमसे नहीं होता,
शायद इसलिए उन्हें हम बुरे नज़र आते है।-
फ़कत यही मुझे तुमसे कहना है
गर 'अच्छे' लोग तुम्हारे जैसे होते हैं
तो बुरी हूँ मैं और अब बुरी ही रहना है!-
अब अच्छा क्या? और बुरा क्या है?
ज्यादा बातें करना पसंद नहीं उसे,
अब खुदा ही जाने
आखिर उसकी रजा क्या है?-
जानाँ! हूँ अगर मैं बुरा, तो लाख बुरा सही
है तू कितनी भी अच्छी, मगर है तो मुझमें ही-
न हर स्त्री बुरी है,,,ना हर पुरुष भला है
सतयुग,त्रेता,द्वापर में भी थे बुरे लोग
ये तो कलयुग है,,,जिसने सबको छला है
ज्यादा कम की बात है बस,,,
वरना तो कोई नही जो दूध का धूला है...!!-
कोई रंजिश कोई शिकवा नहीं है अब
आदमी भी कोई तन्हा नहीं है अब
कौन किसका कब हुआ है ज़रूरत में
सब बुरा है कोई अच्छा नहीं है अब
कुछ मरासिम ही बचाकर रखे होते
सब पराये कोई अपना नहीं है अब
ज़िन्दगी को कौन समझे मोहब्बत से
इश्क़ अपना इश्क़ उसका नहीं है अब
दिलरुबा से कर मोहब्बत सही है वो
जिस्म उसका भी खिलौना नहीं है अब
लोग मिलकर भी बिछड़ जाते हैं फिर से
मिलने वाला कोई मुझ सा नहीं है अब
कोई दिल में रह रहा है अगर 'आरिफ़'
दिल धड़कता जिस्म ज़िन्दा नहीं है अब-