इक गजल तैयार करने जा रहा हूँ,
तुम्हें मैं अशआर करने जा रहा हूँ!
नहीं और तेरा सर झुकने दूँगा मैं,
इसे मैं अब ख़ुद्दार करने जा रहा हूँ!
कमाल उंगली का मेरी देख जरा,
अब तुम्हें सरकार करने जा रहा हूँ!
मेरा बुनियाद का होना ही है ज़रूरी,
तुमको अब मीनार करने जा रहा हूँ!
तेरी खनक आती दिल के दहलीज़ पे,
तुम्हे दहलीज़ से घर करने जा रहा हूँ!
चले बस तो ये लिख दूँ आसमां पर,
"राज" तुम्हे अपना करने जा रहा हूँ!
_राज सोनी-
बदलती बेरहम बयार है,
बंदा बहकता बेहिसाब है!
बचा-खुचा बचपना भी बिता,
बदहवास बंदगी बेपनाह है!
बगिया में बादशाहत बलात है,
बगुले बुलबुले बदनाम है!
बिछाई बिसात बुज़दिलों ने,
बेख़बर बेचारा बागवान है!
बुलंद बाहुबली की बेहयाई,
बेहूदा का बराबर बाजार है!
बचो बेढब बहुरूपियों से,
बाधा है, बहकावा है, बिगाड़ है!
बेसबब, बेपनाह बेअखियार,
बेवजह बहाने की बुनियाद है! __राज सोनी-
तुम में जाग ज़माने भर के लिये सोयी रहती हूँ मैं,
बिना, बिना के ये मनमर्जी करती हूँ मैं ।।
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मतलब के दम पर सारे रिश्ते है...!
सौ नकाबों पर है एक चेहरा भारी,
खत्म हो जायेगी उस रोज मुहब्बत गर
बुनियादी मुनाफे का सच बता दे दुनिया सारी..!!!
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जब किसी रिश्ते की बुनियाद माफी ही रह जाये
तो बेहतर है उसे पूर्ण विराम दे दिया जाए-
छोटा घर, छोटा परिवार, हकों के बंटवारे का दौर है..
शायद अब रिश्तों की बुनियाद कमजोर है..
रईसो की झूठन यहां, गरीबों का कौर है..
मुखौटों की भीड़ मे बस, मैं-मैं का शोर है..
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मेरी आवाज में जो दर्द की फरियाद थी
वो ही मेरे साथ तेरे रिश्ते की बुनियाद थी
तूने तो बस इस रिश्ते को ही रूसवा किया
हमनें तो उसे छोड़ ही दिया जिसे तूने सच कहा था
हकीकत में तो वो बस एक झूठ की शुरुआत थी-
जुड़ गया हूँ टूटकर फिर याद करके तोड़ दो
इस हँसी का क्या करूँ नाशाद करके तोड़ दो
ज़िन्दगी को जी रहा था आज तक जिसके लिए
दूसरे घर की उसे बुनियाद करके तोड़ दो
तिश्नगी बुझती नहीं अब कोई तो दे दो ज़हर
काँच सा बिखरूँ ज़रा बर्बाद करके तोड़ दो
क़ैद हूँ ख़ुद ही यहाँ मैं तेरे-मेरे बीच में
मज़हबी इस रंग से आज़ाद करके तोड़ दो
जिस्म की इस भूख को मैं इश्क़ का क्यों नाम दूँ
इश्क़ को ही हर तरफ़ आबाद करके तोड़ दो
तोड़कर देखो मुझे 'आरिफ़' सभी को बोलकर
इश्क़ से फिर दर्द की फ़रियाद करके तोड़ दो-
जब रिश्ते की बुनियाद, प्यार, भरोसे और समर्पण पर रखी जाती है,
फिर उस रिश्ते की टूटने की वज़ह, एक मात्र शब्द कैसे हो सकती है....-
मेरी नफ़रत की बुनियाद इतनी बेज़ान निकली की
हम आज भी उसके लौट आने की फ़रियाद करते हैं-