तुम क्यों इतने खोए खोए
क्या समय ने मारा है तुमको
या याद किसी की आई है
या है प्रतिकूल ऋतु अबकी
या पतझर सी तन्हाई है
तुम डरते हो या उजालों से
या डसती ये परछाई है
या सूख गया जल आंँखों का
या शेष बची अब काई है
ये अंगारों सी आंँखों से
हो क्यों इतना रोए रोए
माथे पर तेज दिवाकर सा
क्यों मिथ्या कष्ट दिखाते हो
क्यों सिर टेकने रोज़ाना
मंदिर में तुम आ जाते हो
अपने कर्मो का ध्यान करो
यों पापों में क्यों लिप्त हुए
वरदानों की अभिलाषा में
पल भर में क्यों अभिषिप्त हुए
जाग जाओ अब कर्मयोगी
तुम हो क्यों अब सोए सोए-
मेरी कलम दर्द-ए-शैलाब अक्सर अच्छा ल... read more
भूतकाल में विचरे मन है,
किन्तु वर्तमान जीवन है,
रूपया, पैसा, व्यर्थ सभी हैं,
उच्च स्वास्थ ही सब धन है।।-
उड़ जाए आंँधियों संग गर
पंछी तेरा घर घोंसला
तिनका-तिनका फिर से लाकर
रखना पड़ेगा हौसला-
चांदनी से जरा सी रौशनी लेकर
रात निखर आई है आज
हवाओं में खुमारी छाई है नई
महक कलियों ने पाई है आज
ये तारे गवाही दे रहे हैं
अंधेरे ने शमा जलाई है आज
चहक उठी हैं सुनसान सड़के
सूचना आह्टें लाई है आज
वो तो लग जाते गले आकर हमसे
पर नाराज़गी की बुराई है आज
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प्यार की हमसे भूल हो
आमंत्रित हों यूं खुशियांँ
हमारे घर पै चूल हो
बिछड़कर याद आऊंँ मैं
इश्क़ में एक रूल हो
रहेंगे प्यार से हम तुम
बात पर चाहे तूल हो
मैं हूंँ इक बीज अनुर्वर
तुम्हीं रिश्ते की मूल हो-
किसी आकार में तुम भी कहीं अब ढल लो ना
सहज है मार्ग अब मेरा मेरे अब साथ चल लो ना
कहीं कंटक नहीं है राह में न अब कोई बाधा
तुम्हारी आश के सागर ने मेरी नाव को साधा
मेरे कर में है नव पतवार खेने जा रहा हूं मैं
तुम्हारे नैन के सागर में गोते खा रहा हूं मैं
मैं हूँ नाविक नवल नव-राशि-जल में अल्पज्ञानी
हैं किन्तु चढ़ रहा रंग प्रेम का मुझपर है धानी
हृदय की वेदना का सार अब कुछ खुल रहा है
मेरे अश्कों से मेरा मन बहुत अब धुल रहा है
कि तुम भी घाव पर अपने मरहम को मल लो ना
सहज है मार्ग अब मेरा मेरे अब साथ चल लो ना-
रिस्तों की इस दुनिया में प्रेम, क्रोध, तकरार भी हैं।
हांथ पकड़ना, हांथ छोड़ना, संशय के व्यापार भी हैं।
हंसी, खुशी, उत्सव के मेले सहज यदि इसमें दिखते हैं,
इसी मेले में कंगालों के ज़ख्मों का बाजार भी है।।-
सिसकते दिल की तुम महफूज़ मांद हो जाना,
रात तुमसे दमकती है तुम मेरा चांँद हो जाना।
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गुलामों पर नबावों सी नबावी इश्क़ करता है!
बहुत नुक्सान हम सबका गुलाबी इश्क़ करता है!
नहीं हैं लड़खड़ाते पैर हम सब के कभी पथ में,
नशा हमपर चढ़ाकर के शराबी इश्क़ करता है!!-
समय कीमती होता है
व्यर्थ गवाना नहीं इसे
चाह यदि जिसे लेवे यह
नृप बना देता है उसे
इसके खेल हैं बड़े निराले
परिवारों में फूट ये डाले
पैसा हो तो सब अपने हैं
चाचा, ताऊ, फूफा, साले
हांथ यदि कौंडी न हो तो
सब के सब अनजाने हैं
दूर वो भी हो जाते सबसे
जो जाने पहचानें हैं
यदि हांथ में बनी हुई हैं
भाग्य उदय की रेखाएं
तब सब कुछ अपना ही है
प्रकृति, नाते और दिशाएं
बचपन अलहड़ता में जाता
और जवानी भेड़ चाल में
पर सबमें है समय बीतता
माया के जंजाल में
रुकता नहीं एक क्षण भी ये
चलता है ये बिना थके
जीत उन्हीं की हुई हमेशा
समय के संग जो चल सके
जिसे समझते हैं सब अनहद
हिस्से में तो कम आया
फिर भी “समय बहुत है अभी"
सबने राग यही गाया-