Unkahi Unsuni   (Blank paper)
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Unkahi unsuni
Joined 12 May 2020


Unkahi unsuni
Joined 12 May 2020
9 APR 2024 AT 4:08

The obsession of attachment kept destroying me, sometimes by getting bound in relationships, sometimes by forcibly tying myself without any relationship, I got nothing anywhere, hands were empty, completely empty in the desire to smile for a few moments, still I am breathing, what a strange story I am, which no one could read, the shine on the upper cover of the book kept attracting everyone, everyone wanted to touch it, no one wanted to read it, now I want to burn this book along with its upper cover, the end of the story is necessary now...

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30 NOV 2023 AT 22:15

न चित्र है न चरित्र फिर भी ज़िंदगी है इक चलचित्र

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3 NOV 2023 AT 4:20

जीवन इक बोझ सा क्यों है ,क्यों खालीपन रहा सबकुछ करके भी खुश क्यों नहीं रह सकी आखिर श्राप क्यों है ये जीवन ,क्यों जिंदगी का खालीपन कभी नही गया,क्यों अधूरी रही पूरी जिंदगी हमेशा दूसरों की खुशी में खुश रहने की कोशिश भी अधूरी रही ,आखिर क्यों है ये जीवन क्यों जीना दूसरों के लिए ,मेरा कुछ भी कभी मेरा नहीं रहा सब छिनता गया धीरे धीरे क्या सांस लेना जीवन है ,बहुत मन भर गया जीवन से,बहुत अभागन हूं दूर जाना चाहती हूं ,मुक्त होना चाहती हूं इस जीवन से अब कोई इच्छा नही ये सांसें बोझ है हर एक दिन जैसी थोड़ा थोड़ा खत्म हो रही हूं,शायद अभी कुछ कर्मों का लेख बाकी रह गया है इसलिए मुक्ति नहीं अभी ,ऐसे ही थोड़ा थोड़ा मरना है, बेरंग जिंदगी के दिखावटी रंग भी उड़ गए अब सब कुछ रंगहीन है,हर रंग श्राप हो गया, बेरंग जिंदगी को दिखावटी रंगों से ओढ़े रखा,वो सारे रंग छीन लिए,ईश्वर की हर सजा स्वीकार थी,ये सजा कैसे माफ कर दूं,ऐसा क्या गुनाह किया था, बस एक उपकार करके ही माफी है मुझे इस जीवन से मुक्त कर दे

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24 SEP 2023 AT 17:51

बेजान लाश फिर सांस क्यों
सबके लिए जीवन मेरा सिर्फ श्राप क्यों

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20 AUG 2023 AT 20:40

जीवन मे किसी रिश्ते में परिपूर्ण नहीं रही
हर रिश्ते में बोझ ही बन कर क्यों रह गयी
गलतियां करने की उम्र में सहना सीख गई
बचपन की मासूमियत से दूर हो गयी
रिश्ते दूर न हो अपनेपन के मोह में उलझी रही
दूसरों की गलतियां हमेशा नज़रंदाज़ करती रही
गलत न होकर भी गलती मान लेना आदत बना ली
हर बार हर जगह रिश्ते न बिखरे खुद झुकती गयी
खुद पर हुए गलत को भी नज़रंदाज़ करती रही
कभी रिश्तों को खोने के डर से कही लोगों के डर से
जैसे हारने की सबसे हमेशा आदत बना ली
रिश्तों को बचाने के लिए हमेशा झुकती रही
कोई अहमियत नहीं फिर भी हाथ पैर जोड़ती रही
पर दिल में कही हमेशा एक दर्द रहा, क्या कभी
कोई मुझे भी कुछ समझेगा क्या कभी किसी के लिए
इतनी अहमियत बना पाऊंगी,क्या कभी कोई दिल से अपना पायेगा मुझे,क्या कभी मुझे भी किसी से गुस्सा होने का मौका मिलेगा ,क्या कोई मेरी माफी पर मेरा कभी हाथ पकड़ कर गले लगा कर ये कह पायेगा की नही इसकी जरूरत नहीं, गलती भी जिंदगी का हिस्सा होती है लेकिन रिश्तों की बुनियाद माफी नहीं होती

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12 AUG 2023 AT 12:22

मानसिक पीड़ा से बड़ी कोई पीड़ा नहीं
इंसान शारीरिक पीड़ा सह सकता है
लेकिन मानसिक पीड़ा बहुत असहनीय होती है
मानसिक शोषण से आत्मा मर जाती है
जीवन समाप्त हो जाता है

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4 AUG 2023 AT 12:16

इस हँसती मुस्कुराती दुनिया मे
उदासियों भरा ये जीवन का बोझ
कितने खुश है लोग फिर मैं क्यूं नहीं
सब कुछ करके तो देख लिया आख़िर
फिर क्या कमीं है क्यूं अधूरी सी है जिंदगी
ये बेचैनी खत्म क्यों नहीं होती आखिर
खामियों से भरा ये किरदार आखिर कब तक
कब अंत होगा मेरी घुटन का

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3 AUG 2023 AT 11:15

हर रूप में अस्तित्वहीन है ये जीवन मेरा
न कभी बेटी के रूप में सफल रही सिर्फ नाम मिला
न ही पत्नी रूप में कोई महत्व रहा ऐसा कर्म रहा मेरा
यकीनन ये कर्म ही है मेरे हर रिश्ता दर्द से भरा रहा
किसी के यकीन की पात्र नहीं, अर्थहीन ये जीवन मेरा
ऐसे जीवन की चाह नहीं ,सांस रुके तो सुकून मिले
बहुत बेचैनी से गुजर रहा अब एक एक पल मेरा
बरसों गुजार दिए सही की बजाय गलत करते करते
कब सुकून ली नींद आखरी बार याद नहीं मुझे
आत्मग्लानि के बोझ से भर गई हूं पूरी तरह
माफी नही कोई इस जन्म, हर सजा भी कम है मेरी
बस अब मुक्ति की तलाश है ,हे महादेव अब तो सजा खत्म कर दो मेरी मुझे मुक्त करो इस जीवन से मुझे
इस जन्म के लिए इतना काफी हो गया है अब तरस करो बहुत थकान है कुछ आगे के लिए छोड़ दो

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25 JUL 2023 AT 22:30

हद है कि मौत भी तकती है अब हमें
उसको भी इंतजार है मेरी खुदखुशी का

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26 JUN 2023 AT 0:34

जिंदगी की हर उम्मीद यूँ हादसे में तब्दील होती रही
अब हर पल इक नए हादसे का इंतजार करते हैं

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