Unkahi Unsuni   (Unkahi unsuni)
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Unkahi unsuni
Joined 12 May 2020


Unkahi unsuni
Joined 12 May 2020
21 SEP AT 16:22

बहुत पीछे छूट गई मै गुम हो गई हूं
वापस जाना है वहीं कैसे नहीं पता
रास्ता भटक गई हूं खुद की पहचान नहीं पता
कुछ धुंधली सी यादें है पुरानी कि शायद ऐसी थी
न किसी से उम्मीद न कोई शिकायत अपने में खुश
दर्द में भी मुस्कुराने का हुनर ऐसा कि किसी को भी
चेहरे पर कभी शिकन न दिखी शायद ऐसी थी मैं
न कोई था न किसी का इंतजार की कोई मरहम बने
अपने दर्द का खुद मरहम थी शायद ऐसी थी मै
न किसी से जुड़ने की चाहत न किसी से छूटने का गम
कोई था ही नहीं गम कैसा शायद ऐसी थी मैं
फोन ,मोबाइल किसी की कोई जरूरत नहीं थी
सारा समय खुद में व्यस्त न किसी की जरूरत थी
न कोई जरूरी था शायद ऐसी थी मै
सारे समय को खुद में ही लगाए रखने वाली
फिर भी बहुत व्यस्त शायद ऐसी थी मै
बचपन के इतने दर्द भरे अनुभव से मिली सीख
से सीख चुकी थी खुद में व्यस्त रहना
यही जीवन है मानकर अपना किरदार निभा रही थी
जबकि मैं किसी भी रूप किसी भी किरदार में सफल नहीं थी
पर फिर भी बिना उम्मीद जी रही थी शायद ऐसी थी
कैसे ढूंढू कहां खोज अपने उस रूप को कैसे गुम हो गई
नहीं जानती पर वैसे ही बनना है जैसी थी
तब जी पाऊंगी अपना बचा हुआ जीवन वरना मुश्किल है
अब मेरा जीना मुझे वैसा बनना है जैसी थी मै.......

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1 AUG AT 2:20

इकतरफा रिश्तों का बोझ बहुत भारी होता है
न चाहते हुए आख़िरकार अंत में सब बिखर ही जाता है

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1 AUG AT 1:56

न दिल न कोई हसरत फिर भी ज़ख्म-ए-दिल दर्द की इंतहा नहीं,
अजीब है ये जिंदगी का फलसफा उम्र गुजर गई न लोग समझ आए न ये जिंदगी .....

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1 AUG AT 1:42

खुद की ही नज़रों में कितने गिर गए हैं
जीने की चाहत में मर गए
अच्छी नहीं थी जिंदगी मगर बोझिल भी नहीं थी
आज गुनाहों से भर गए
किससे मांगे माफी गुनहगार कोई और नहीं
खुद के यकीन पर उलझ गए
क्षणिक आकर्षण का शिकार ऐसे बनें
उसकी खुशी के लिए सब कर गए
नहीं कि अपने आत्मसम्मान की चिंता कभी
सिर्फ उसके साथ के लिए हर बेइज्जती सह गए
उसे मेरा साथ नहीं चाहिए था कभी
मगर उसकी शर्त पर जूतों पर ही रह गए
आकर्षण कभी प्रेम नहीं बन सकता
इतनी सी बात क्यों नहीं समझ पाए
कही से जलील करने की कसर नहीं छोड़ी
कितने मजबूर थे सब सह गए
बस अब नहीं होता सहन उसने मेरी औकात बता दी
बता दिया मै सिर्फ जूतों पर रहने के लायक हूं
नहीं हूं किसी रिश्ते के लायक खुद और सबके लिए बोझ हूं
जो तेरे साथ रहे सबको खा गई
इतनी भी मजबूर नहीं अब इन सांसों के बोझ सहने के लिए
सबको मुक्त कर दिया इस जीवन से कोई जुड़ाव नहीं किसी से
क्या इस शरीर से मुक्त होकर भी मैं मुक्त हो पाऊंगी
अपने अंदर की घुटन से उन सवालों से आखिर क्यों
क्या बिगाड़ा था मैने किसी का क्यों मुझसे ऐसे जुड़े
मेरे ज़ख्मों का मरहम बनकर उन्हें भरने की कोशिश हो
सबकुछ गहराई से जानकर मेरे दर्द मेरे ज़ख्मों को
इतनी बेरहमी से क्यों कुरेदने लगे क्या मैं इंसान नहीं
दर्द नहीं होता मुझे शायद अब नहीं होता
तभी जीने की चाहत मौत में बदल गई




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27 JUN AT 0:28

इस कदर बसे हो रूह में रहनुमा कहूं या हमसफर
यूं तो दूरियां है मीलों की, होते नहीं पल भी नज़रों से ओझल

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19 MAY AT 18:00





After all, life is over...
That's the time of end my life ✍️

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9 APR 2024 AT 4:08

The obsession of attachment kept destroying me, sometimes by getting bound in relationships, sometimes by forcibly tying myself without any relationship, I got nothing anywhere, hands were empty, completely empty in the desire to smile for a few moments, still I am breathing, what a strange story I am, which no one could read, the shine on the upper cover of the book kept attracting everyone, everyone wanted to touch it, no one wanted to read it, now I want to burn this book along with its upper cover, the end of the story is necessary now...

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30 NOV 2023 AT 22:15

न चित्र है न चरित्र फिर भी ज़िंदगी है इक चलचित्र

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3 NOV 2023 AT 4:20

जीवन इक बोझ सा क्यों है ,क्यों खालीपन रहा सबकुछ करके भी खुश क्यों नहीं रह सकी आखिर श्राप क्यों है ये जीवन ,क्यों जिंदगी का खालीपन कभी नही गया,क्यों अधूरी रही पूरी जिंदगी हमेशा दूसरों की खुशी में खुश रहने की कोशिश भी अधूरी रही ,आखिर क्यों है ये जीवन क्यों जीना दूसरों के लिए ,मेरा कुछ भी कभी मेरा नहीं रहा सब छिनता गया धीरे धीरे क्या सांस लेना जीवन है ,बहुत मन भर गया जीवन से,बहुत अभागन हूं दूर जाना चाहती हूं ,मुक्त होना चाहती हूं इस जीवन से अब कोई इच्छा नही ये सांसें बोझ है हर एक दिन जैसी थोड़ा थोड़ा खत्म हो रही हूं,शायद अभी कुछ कर्मों का लेख बाकी रह गया है इसलिए मुक्ति नहीं अभी ,ऐसे ही थोड़ा थोड़ा मरना है, बेरंग जिंदगी के दिखावटी रंग भी उड़ गए अब सब कुछ रंगहीन है,हर रंग श्राप हो गया, बेरंग जिंदगी को दिखावटी रंगों से ओढ़े रखा,वो सारे रंग छीन लिए,ईश्वर की हर सजा स्वीकार थी,ये सजा कैसे माफ कर दूं,ऐसा क्या गुनाह किया था, बस एक उपकार करके ही माफी है मुझे इस जीवन से मुक्त कर दे

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24 SEP 2023 AT 17:51

बेजान लाश फिर सांस क्यों
सबके लिए जीवन मेरा सिर्फ श्राप क्यों

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