Nakul   (Nakul)
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Joined 29 December 2019


Joined 29 December 2019
29 JUL AT 11:57

नुजूमियों   से     रोज़    मुक़द्दर    पूछती    है
मैं  हूॅं   भी   या   नहीं   मयस्सर    पूछती    है

इक  जनवरी  से  ले  कर   पूरे   साल   तलक
उस की  भेजी  चिट्ठियाॅं  मिरा  घर  पूछती   है

मुझ से  ख़फ़ा   है   लेकिन   मेरी   ग़ज़लों  से
मैं   कैसा   हूॅं   वो    ये   अक्सर    पूछती   है

मैं    भी    झट    से    बांहें    फैला   देता   हूॅं
उस  की  फ़ोटो  जब   भी  बिस्तर   पूछती  है

सुर्ख़-रू   हो   जाते   हैं  अक्सर   कान    मिरे
हाल  मिरा  जब  वो  गाल  छू-कर  पूछती   है

किस   का   तवाफ़   करेगी  अब  जिद   मेरी
मेरी  अना  भी  अपना  महवर     पूछती    है

तिरा नाम पढ़ के फूॅंकता हूॅं ग़ज़ल पे  और  ये
दुनिया   वशीकरण   का    मंतर   पूछती    है

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26 JUL AT 23:06

बोलना पड़ता है बस बे-दिली से
मुझको निस्बत हो गई ख़ामुशी  से

पास थी मेरे किताबें लेकिन
मैं  बहुत  दूर    रहा    आगही   से

रोज़ इक वहम   मिरा   टूटता   है
रोज़ कुछ सीखता हूॅं ज़िदगी से

जल रही है मिरे अंदर इक  लौ
मैं मुख़ातिब हो रहा  रोशनी   से

वो जो चुप-चाप सा बैठा हैं ना
बात करनी है मुझे अब उसी से

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24 JUL AT 12:04

अल्लाह क्या है राम क्या ओंकार क्या
भगवा हरे रंगो का है व्यापार क्या

वो कौन है जिस की है सारी कूज़ा-गरी
वो दिखता कैसा, उसका है आकार क्या

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21 JUL AT 22:10

इश्क़ से जवानी अलगाव माॅंगती है
अब सरफ़रोशी टकराव माॅंगती है

ना कैंडल मार्च , ना सफ़ेद कबूतर
जवानी मूंछों पर ताव माॅंगती है

चलती है जब जब भी ज़ुल्म की आंधी
ज़मीन ख़ून का छिड़काव माॅंगती है

जब हर्फ़ उतरते हैं शूल से दिल में
तब तेग बदन पे घाव माॅंगती है

ललकारते है रण में धड़ जब काल को
मौत भी छुपने  को  छाव माॅंगती है

जीत किसी की भी हो पर याद रहे
लाशें अच्छा बरताव माॅंगती हैं

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19 JUL AT 14:12

तेरे ख़याल की जी-हुज़ूरी हो रही है
जैसै तैसे ग़ज़ल बस पूरी हो रही है

मैं ख़र्च रहा हूॅं ख़ुद को लिखते लिखते
और तिरी मुफ़्त में मशहूरी हो रही है

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18 JUN AT 21:49

पुरानी से पुरानी याद है
तेरी बातें ज़बानी याद है

तुझे गो याद ना हो मेरा किरदार
मुझे पूरी कहानी याद है

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5 MAY AT 16:50

हर  एक दिन  मुझे  इक एहतिमाल  रहता  है
वो  छोड़  देगा  मुझे  ये   ख़याल    रहता    है
  
मैं जानता  हूॅं  कि  ख़ाना-बदोश  दिल  है   वो
कहीं  जियादा  रहा  तो  भी  साल   रहता   है

मैं  रोज  कहता  हूॅं   उसको  हमारे   रिश्ते   में
उरूज  आ  गया  है  अब   ज़वाल   रहता   है

क़रीब आने  से  ही  तेज   हो   गई   धड़कन ?
अभी  तो  चाय  में   बाकी   उबाल   रहता   है

अभी  है  बाकी  तिरी  नाफ़  में  भॅंवर   पड़ना
अभी  तो  उंगलियों  का  कमाल    रहता    है

हो जाए कितनी ही तक़सीम दिल के खातों की
गो  पहले  प्यार  का   कब्जा  बहाल  रहता  है

ग़ज़ल को पढ़ के दो  आबा  रवां भी  कर  देना
ये  मेरा  आप  में   रिज़्क़-ए-हलाल   रहता   है

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3 MAY AT 18:40

ख़ूबसूरत      दराज़-क़द     लड़की
भोली-भाली अदब की  हद  लड़की

ख़ुद   बनाता  है   रब   कई    चेहरे
इस कहावत  की  तू  सनद  लड़की

हर  सफ़र  की  मिरे  वो  मंज़िल  है
मैं अज़ल तो  वो  है  अबद   लड़की

मेरे  ही  हक़  में   फ़ैसला   कर   तू
सबकी कर  दे  अपील  रद  लड़की

ख़ूबसूरत   बहुत   है   आंखें   तिरी
सुन ले पागल सी बे-ख़िरद  लड़की

तू   मिला   तो   बदल   गये   मानी
मैं अलिफ़ मुझ पे है  तू  मद  लड़की

रखने है चाॅंद की जबीं पे लब
कर दे झुक कर ज़रा मदद लड़की

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23 APR AT 21:28

ज़ाहिर के सांचे में ढलते ही नहीं
हम जैसे लोग कहीं खुलते ही नहीं

फिर कभी मिलेंगे कहने वाले
उम्र गुज़र जाती है मिलते ही नहीं

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2 MAR AT 22:50

ख़ुद लड़ता है पहले फिर ख़ुद ही  रोता  है
रोते   रोते   फिर   काॅंधे   पर    सोता   है

उस  के  ताने   भी   यूॅं   लगते   है    मानो
जैसे   कोई   धीरे   से   पिन   चुभोता   है

इस से ज़ियादा झूठी तसल्ली कुछ नहीं के
जो  होता  है  अच्छे   के   लिए   होता   है

कौन  से  जिहाद  से  ये   हूरें   मिलती   है
वो कौन  सा  पानी  है  जो  पाप  धोता  है

हर  वक़्त  तिरे  नाम  की   तस्बीह   फेरना
दिल भी जैसे किसी  मौलवी  का  तोता  है

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