मेरा जी नहीं भरता, उन्हें कितना भी देख लूँ
कोई हक़ीम से पूछो क्या मैं बीमार हो गया हूँ।।-
जाने कब कौन किसे मार दे काफ़िर कह के
शहर का शहर मुसलमान हुआ फिरता है-
हमें हर मर्ज का ईलाज पता है
फिर भी हैं बीमार,बस यही खता है-
कैसी है ये जमात जो दहशत का कारोबार करती है
धर्म की नसीहतों के बीच कोरोना से बीमार करती है-
ख़ैरियत में तुझसे मिलने आएगा ना कोई भी
ऐ दिल-ए-नादां तुझे बीमार होना चाहिए ।।-
घर कर गई मोहब्बत आसार लग रहे हैं
मुझको सभी के चेहरे बेकार लग रहे हैं
ख़ुद्दाम थे कभी जो हर हाल में ख़ुदा के
वो लोग अब ख़ुदा के अवतार लग रहे हैं
हरकात दिल में होंगी वो इश्क़ ही से होंगी
क्यों बे-नक़ाब चेहरे बीमार लग रहे हैं
मक्तूब भेजकर तुम कुछ हाल जान लेना
मुझको तुम्हारे आशिक़ ख़ुद्दार लग रहे हैं
इमदाद दिल से करते तो लोग भी समझते
धोखा-धड़ी के हर दिन बाज़ार लग रहे हैं
लहजा अभी तुम्हारा सुधरा नहीं है 'आरिफ़'
अल्फ़ाज़ फिर अना के औजार लग रहे हैं-
जो आईनें में ही, तरह-तरह की जात ढूंढ लेते है,
वे फुरसत मिलते ही, थोङा बीमार हो लेते है ।
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मैं बीमार रहने लगा हूँ,कुछ महिनों से,
बस इसी का,राज जानने के लिए रोज सुबह,
उत्सुक लोग,मेरे दर पर जमावङा लगा देते है।-
महफ़िल में अल्फ़जो को यूँ बया कर छोटू , की किसी बीमार की दवा का इंतज़ाम कर लोटु
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