वह शक्ति हमें दो दयानिधे, कर्त्तव्य मार्ग पर डट जावें!
जिस देश-जाति में जन्म लिया, बलिदान उसी पर हो जावें!-
इश्क़ ख़ुद ही मर गया है कोई क़ातिल क्या करे
ज़ख़्म ही है इश्क़ में अब कोई बिस्मिल क्या करे
ज़िन्दगी को और क्या-क्या चाहिए ज़िन्दा तो है
मौत ख़ुद ही आएगी वो आज हासिल क्या करे
चीर कर दिल आएगी ही याद बाहर एक दिन
ग़म समंदर की तरह हो उसमें साहिल क्या करे
गर समझ सकते नहीं तुम दर्द उसके आज भी
है मोहब्बत भी अमीरी उसको जाहिल क्या करे
काश 'आरिफ़' भी कभी दिल को लगाकर देखता
इश्क़ करता रौशनी फिर कोई झिलमिल क्या करे-
वक़्त आने दे बता देंगे , तुझे ए आसमां
हम अभी से क्या बताएँ , क्या हमारे दिल में है ।
दूर रह पाए जो हमसे , दम कहाँ मंज़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना , अब हमारे दिल में है ।-
इक दूजे पर फ़ना होने से शुरू हुआ था ये इश्क हमारा,
पर खत्म फ़कत मिरे कल्ब के बिस्मिल होने से हुआ है..-
हार बैठे अभी-अभी दिल को
दर्द होता कहाँ है बिस्मिल को
इक समुंदर बता जहाँ डूबें
कौन पूछे जनाब साहिल को
अपना ग़म पूछकर करूँ क्या अब
सिर्फ़ पत्थर मिले हैं मंज़िल को
ज़िन्दगी भी नहीं रही अपनी
याद रखते हैं सब ही बातिल को
रोज़ जाना जगह-जगह 'आरिफ़'
जान जाते हैं लोग राहिल को-
तुम चाहो तो क्या मुश्किल है?
तुमसे वाबस्ता मंजिल है..!
नज़र जो तुमने डाली मुझ पर,
पास तुम्हारे मेरा दिल है.!
सब कुछ तुझ पर हार चुका हूँ,
तू मेरा अंतिम हासिल है.!
ख़्वाहिश आकर ठहरी तुम पर,
तू ही रौनक तू महफ़िल है.!
स्याह अंधेरे दूर तलक हैं,
राह दिखाती तू कंदील है..!
तेरे दम से लिखता हूँ मैं,
मान रहा हूँ तू काबिल है.!
कुछ तो ऐसी बात है तुझमें,
स्वतंत्र अगर तेरा बिस्मिल है!-
रात का रंग जुल्फ़ों में शामिल हुआ,
हुस्न तेरा सनम और क़ातिल हुआ.!
सुरमई आंख में ख़्वाब सजने लगे,
नींद का ये सफ़र आज मुश्किल हुआ!
जागने की कोई चाह अब तो नहीं,
दिल मेरा इश्क़ में तेरा बिस्मिल हुआ.!
चलते चलते मुझे राह ये भा गयी,
तेरी हसरत में रस्ता ही मंज़िल हुआ.!
चैन खामोशियों में मुझे मिल रहा,
दिल की सूना शहर आज महफ़िल हुआ!
सोचने की इजाज़त वफ़ा में नहीं,
क्या गंवाया यहां और क्या हासिल हुआ?
उनकी राहें हो रौशन यही है दुआ,
जल रहा है स्वतंत्र जैसे कंदिल हुआ..!
सिद्धार्थ मिश्र
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हम देश बचाना चाहते हैं,
वो देश उजाड़ा करते हैं.!
हम ढंकते है सीमाओं को,
वो लज्जा उघारा करते हैं.!
वो लोभी हैं बस सत्ता के,
हम देश सम्भाला करते हैं.!
आज़ाद के हम दीवाने हैं,
बिस्मिल से गुजारा करते हैं.!
स्वतंत्र,हमी मतदाता गण,
भारत को संवारा करते हैं..!
हम सभी आम भारतवासी ईमानदार करदाता के संग्रहित करों से सत्ता के नाजायज शौक पूरे होते हैं।
सिद्धार्थ मिश्र-
ऐ दिल है बिस्मिल तुझी से जहां
तू मक़बरा और तू ही मकां
जब तक न धड़के है, नाशाद तू
सौ आहें निकलें तू धड़के जहां
सूरज, सितारों के संग चाँद है
मज़हब में सब, बस न रब का निशां
मुद्दत हुई हमसे बोले न वो
शिद्दत से थे जो बने जाने जां
दे दूं तुझे जो भी मेरा है वो
पर नाम रिश्ते का पूछे जहां
माँगूँ खुदा से मैं इतनी नज़र
देखूँ जो कर दे वो ख़ुद को अयाँ
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हो गया हूँ तेरे इश्क़ में बिस्मिल कुछ इस कदर...
अब "ज़ख़्म" भी तुम,और "मरहम" भी तुम हो !!-