बच्चों के हित के लिये स्थापित नियमों को तोड़ना पड़े, तो वह भी तोड़ना चाहिए।
यही सीख हमें रामचरितमानस के इस प्रसंग से मिलती है।-
सांसो का सफ़र है यह जीवन
तुम्हारे जन्मदिन पर
कहता है यह मन
तुम ही मेरी सांस हो-
घर-आंगन को महकाने आई
नन्हीं-सी एक चिरैया,
कुछ लोगों को रास न आई
आंगन में गूंजी उसकी किलकारियां।
पैदा हुई घर में लड़की
जान ये सबके चेहरे मुरझाए,
मानो घर में बच्चा नहीं
कोई अभिशाप जन्म पाए।
ना जाने सजा किस गुनाहा की
उसने पाई ,
जो पैदा होते ही
छीन ली गयी सांसे उसकी।
आँखें खोल इस दुनिया को
देख भी ना पाई ,
उससे पहले ही बंद कर दी
गयी आँखें उसकी ।।-
मेहंदी पीसी जाती रही,निखारने के इरादे से,
बिटिया की ये हालत मुझसे नहीं देखी जाती।-
खुदा बेटियों की तकदीर फुरसत में बनाता है
तुम्हे दर्द नहीं होता उनकी लकीरे मिटाने में
लोग तरस जाते है एक औलाद को पाने में
तुम्हे तरस नही आता बेटियां जिंदा जलाने में-
हृदयांगन पल्लवित कोमलांगी कलिका सी तुम,
स्नेहसिक्त अहसासों से परिपूर्ण अनविका सी तुम।
कभी साहस की प्रतिमूर्ति बन सूर्य-आभा सी दीप्त हो,
तो कभी पत्तों पर पड़ी नन्ही-नन्ही मिहिका सी तुम ।
निश्छल मन से महकाती हो घर के आंगन को ,
उम्मीद के आसमां की चमकती हुई निहारिका सी तुम।
टूटती हुई आशा को हौंसले का दामन थमाती हो,
निराशा के कुहासे में प्रज्वलित वर्तिका सी तुम।
दुनिया जहान के लिए चाहे तुम आम सही ,
पर मेरे लिए कोई सलोना स्वप्न अद्विका सी तुम।
.......... निशि..🍁🍁-
मायके मे बेसब्र होकर जीने वाली बिटिया को,,,,,
सब्र करने वाली बहु बना देती है,ससुराल की दहलीज ।-