आना जाना छोड़ चुके पर्वो से नाता तोड़ चुके
रखकर पत्थर अपने दिलों पर घर से मुख है मोड़ चुके
किस का दिल करता है यारों घर का सुख चैन गंवाने को
फिर भी हम घर छोड़ आये जीवन सफल बनाने को
नैन के माँ में बस्ता सपना मैं अब काबिल बन जाऊं
कर-कर चिंता बुढ़ी हो गई कभी तो खुशियां दिख लाऊँ
बाप से मेरे चला ना जाता फिर भी काम को जाता है
और मेरा खर्चा भिजवाने को रोज कमा कर लाता है
छत वो घर की टपक रही है जिसके नीचे सोते हैं
जब जब बाहर हुआ मेरिट से मुझसे ज्यादा रोते हैं
पता है तुमको, पता है रब को मेहनत में मेरे कमी नहीं
और वह जीवन क्या है जीवन यारों जिसमें किस्मत से ठनी नहीं
माना चलती कठिन परीक्षा मेहनत मेरा हथियार है
माँ-बाप से ले कर दुआ मैं रण को तैयार हूँ
सब्र का मैया बांध ना टूटे गला किस्मत का घोटूंगा
चंद महीने बाकी हैं बन SDM लौटूंगा...
Unknown-
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