ये जो कागज के फूल है ।
ये महकते नहीं क्या ?
मेज़बानी करते - करते,
कभी थकते नहीं क्या ?
हमें तो दीदार से ही,
नशा - सा हो जाता है ।
उनके छूने से ये,
बहकते नहीं क्या ??-
कभी सोंचा है तुमने
तुम्हारी हर राह जो
मुझ तक न आती
तो आख़िर कहाँ जाती?
तुम्हारे बहकते क़दम जो
मुझ तक न आते
तो किस राह जाते?
जो मैं न होती तुम्हारे जीवन में
तो किस पर लुटाते यूँ
अपना पागलपन सा प्यार,
किस के लिये हर घड़ी तड़पते
किस को यूँ चिढ़ाते;
क्या सिर्फ़ इसलिए हो तुम मेरे
क्योंकि हूँ मैं तुम्हारी?-
अब वो बासंती अहसास कहाँ महकते हैँ ,
अब लोगों के दिल कहाँ जज्बात समझते हैं ।
नव कुसुमों और पल्लवों की तरुणाई देखकर ,
अब लोगों के दिल कहाँ कुस्मित पल्लवित दिखते हैं ।
कोयल की बौराई सी कूक सुनकर ,
अब लोगों के दिल कहाँ टीसते दिखते हैं ।
सरसों के सुनहरे खेतों में जाकर ,
अब लोगों के दिल कहाँ सोने से दहकते दिखते हैं ।
पलाश के जंगलों से गुजरकर ,
अब लोगों के दिल कहाँ धधकते दिखते हैं ।
कोरी अदृश्य कल्पना को संजोकर ,
अब लोगों के दिल कहाँ वास्तविकता से गुजरतें हैं ।
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तेरी आँखों से तुझको देखूंगा तेरी बातें मानकर
रुकूँगा नहीं चला जाऊँगा मैं,अपनी आँखें सेंककर-
" लिखता हूं तुझे शामों शहर क्या अंदाज़ लेकर फिर रहे हैं ,
कुरवत हो की कही तु दिखे मैं बहकते हुए सम्भल जाऊ . "
--- रबिन्द्र राम-
ये जो मनमर्जियां है ना तुम्हारी
कही बन ना जाए एक दिन मजबूरियां हमारी....-
हमने कहा बहकते क्यूँ हो
क्या नशा किया है शराब का
नशा तुम्हारा क्या कम है
आंखों से इतनी पिला देती हो तुम
लड़खड़ाते ये कदम हमारे-
तेरी यादों की खुशबू से हम महकते रहते हैं,
जब जब तुझको सोचते हैं हम बहकते रहते हैं…-
बहकते अश्क की जुवान नहीं होती,
लफ़्ज़ों में मोहब्बत बयाँ नहीं होती,
अगर मिले प्यार तो कदर करना,
किस्मत हर किसी पर मेहरबाँ नही होती ।।-