Rabindra Ram   (Rabindra Ram)
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Joined 5 January 2019


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19 HOURS AGO

" मेरी आवारगी की फिर सबब जान ने को हैं ,
तेरी तलब का एहसास फिर तुझे पे कैसे ज़ाहिर करें ,
ये इल्म भी इतना इतमिनान ना हुआ कभी ऐसे भी कभी ,
तुम से ज़हनी तौर पे तुम से मुहब्बत का फिर इकरार करें कभी . "

--- रबिन्द्र राम

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14 JUN AT 22:32

" कहीं कास की हम तुम से मिले ना होते ,
तेरा ख़्याल ज़ेहन में यू घर किया ना होता ,
मेरे हाल का इल्ज़ाम फिर किस पे‌ क्या लगते ,
इक ख़्वाबो-ए‌-ख़्याल तो कहीं से तुम मुनासिब होने देते ."

--- रबिन्द्र राम



                     

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5 JUN AT 22:54

" फिर जश्ने-ए-बदूर तुझे हम वहीं मिलेंगे ,
जिस एहसास के साथ तुमने मुझे छोड़ा था ,
तेरे बिनाई की बात हम आज किसी से कर लेते हैं ,
तेरे खसारे की भरपाई बात फिर किस से भला क्या कर लेते हैं? "

--- रबिन्द्र राम

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5 JUN AT 14:30

" Everything is expensive and everything is cheaper... it depends on what your taste is..."

--- Rabindra Ram

                        

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3 JUN AT 10:51

" आप को कब हुई इतनी मुहब्बत हम से ,
ज़िक्र कर लु की ख़्याल गवारा ही रहने दें ,
फकत एहसास तुम्हें भी हो ऐसे में कहीं ,
इस मयकसी का मजा ताउम्र यूं ही गुमनाम रहने दें ."

--- रबिन्द्र राम

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2 JUN AT 0:09

" कभी किसी के ख़्याल को अब भी खलीस नहीं होने दे ,
इक खौफ की मुहब्बत की आर में नफ़रत ना करने दे."

--- रबिन्द्र राम

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28 MAY AT 16:54

" कहीं हैं अगर कोई बात तो फिर बात नहीं,
दिल में तेरे सिवा और कोई जज़्बात नहीं,
छुपाना भी जानते हैं और भी जाताना चाहतें,
ये हैं कैसे ज़ख़्म-ए-मरज जिसका इलाज नहीं चाहते."

--- रबिन्द्र राम

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26 MAY AT 22:29

" कुछ इत्तेफाक हम भी रख लेते,
बात तेरी थी कुछ बातें हम रख लेते,
कोई बात किसी के बात पे आज बात फिर जुबान पे आते आते रह गया,
सोचा की तुमसे ही तुम्हारी सिकायत करते मुहब्बत का मारा था फिर बात दिल में दफ़न कर रह गया. "

--- रबिन्द्र राम

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23 MAY AT 12:16

" इस दौर में भी कोई कारवां कोई सफ़र हैं मेरा,
इस उलफ़त से फिर कौन हैं जो हमसफ़र हैं मेरा,
तसव्वुर के ख़्यालो को अब कौन सी निशान-दही‌ दे दी जाये ,
किसकी हाथ पकड़ के फिर उसे अपना हम-दम मान लिया जाये ."‌

--- रबिन्द्र राम

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22 MAY AT 13:05

तेरी ख्वाबो-ए-ख़्याल अब भी मुस्तैद है,
फिर किस बात की गवाही दी जाये ,
बेशक ना मुकम्मल ना हो कहीं इश्क़ मेंरा ,
हिज़्र में ही तन्हाई मुकम्मल कर दिया अधूरा इश्क़ मेंरा ."

--- रबिन्द्र राम

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