Rabindra Ram   (Rabindra Ram)
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Joined 5 January 2019


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30 APR AT 14:53

" अब तो रुसवाई का ये आलम हैं‌ ,
मैं मयस्सर हूं तुम्हें तुझे ख़बर नहीं‌ . "

--- रबिन्द्र राम

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28 APR AT 23:17

" वो ग़ैर थी आंखें उसकी उसके आंखों को इल्म का इल्ज़ाम क्या देते,
इस अज़िय्यत में फिर रखा क्या था ओ जो ज़रा‌ तजाहुल पहचाने लगे थे मुझे . "

‌--- रबिन्द्र राम

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26 APR AT 22:19

" कास की इसी ख़्याल से मुकर जाता मैं ,
रफ़ाक़त के सिलसिले जो भी बनाना था मुझे‌ ,
तेरे मिलने के पहले कहीं तो मुकर जाता मैं ,
ये इल्म ये एहसास कैसे रफू करु जाने से कब खुला है . "

--- रबिन्द्र राम

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19 APR AT 20:19

" इक दफा तुम्हें याद तो करता ,
बात ज़रा सी थी तेरी बात तो करता ,
बज़्म एहसासों के दौर से किस तरह से निकल आते,
बात तेरी और मेरा था फिर तुझे कैसे भीड़ में छोड़ के आ जाता,
मुश्किल कुछ भी तो नहीं अब ये रियायत मुझे आसान लग नहीं रहा,
फिर तुझे किस के भरोसे पे तुझे घर छोड़ के नहीं आता . "

--- रबिन्द्र राम

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16 APR AT 20:30

" क्या पता था इन पामाल रास्तों का भी सफ़र करना पड़ेगा ,
खुद को तेरे रुबरु होने कैसे रोक पाते ,‌
हिज़्र ऐसे होगा फिर तेरे ना होने का ,
मलाल ऐसे होगा की तेरी भरपाई ना होगी. "

--- रबिन्द्र राम

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15 APR AT 22:47

" फिर यूं तो तेरे नाम के तेरे तसव्वुर के लोग और भी मिलेंगे,
लहज़ा मैं फिर कैसे बदल‌ ना दूं तुम ख़ाक नसी ना होंगे . "
कसमेंकस हैं ख़ाकनसी यादें तेरी गुलजार आज भी‌ ,
जो हिज़्र हुआ तो क्या हुआ मुहब्बत गुलफाम आज भी
--- रबिन्द्र राम

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8 APR AT 17:36

" ख़्वाहिशें तुझ तक पहुंचे तो हम भी बात करें ,
इस ज़ब्त में फिर तुमसे कहा तक ना मुलाक़ात करें ,
सिलसिला जो कुछ भी हो ये दिद सिलसिलेबार रखना,
हम जिस ज़ब्त में रहे ख़्वाबदिदा मुनासिब करते रहना. "

--- रबिन्द्र राम

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5 APR AT 23:16

" कोई रुख हो कोई कारोबार हो,
इस मुहब्बत में भी कोई मेरा दार-मदार हो ,
तिजारत फिर किस से मैं क्या करु ,
ये एहेदिल फिर से तेरा कसूरवार हो ,
तलब हैं ये दिल तुम्हारी चाहत में ताउम्र गुजारु ,
ये मुहब्बत की बन्दीशे हैं कि फिर किसी और का मुझे होने नहीं दे रहा. "

‌--- रबिन्द्र राम

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3 APR AT 23:18

" बाकायदा तुझे आंख भर देखू तो सही,
दिल जिस ख़्याले-ए-शौख से लबरेज़ हैं,
मुमकिन हो तो कैसे तेरे यूं क़रीब होना ,
तिश्नगी हैं ख़्याले-ए-वस्ल से तुम मिले ही नहीं. "

--- रबिन्द्र राम

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2 APR AT 14:50

" ग़ैर-इरादादन हमउम्र का ख्याल ये भी है,
तकाज़ा कुछ भी इश्क़ में इम्तिहान से गुजर बसर करना सितम ये भी है,
बेशक तुम ना मिले बकायदा मैं तुम्हें मिल रहे थे ,
रंजीशे कुछ नागवार मयस्सर ना जो तुम हमें ना भी मिले ."

--- रबिन्द्र राम

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