Rabindra Ram   (Rabindra Ram)
4.2k Followers · 10.0k Following

read more
Joined 5 January 2019


read more
Joined 5 January 2019
4 HOURS AGO

" बेशक हमें नज़रअन्दाज़ कर दीजिये,
हम इतने भी खैर गैर जरूरी तो नहीं,
मेरे बोसे में फिर कहीं तेरा नाम ना आये,
काश की हम भी थोड़ा रक़ीब हो गये होते,
हम मुनाफ़िक़ ना हो सकेंगे इस दायरे-ए-हिज़्र में
तेरे बाद हम फिर किसी के ना हो सकेगे वस्ले-ए-आलम में."

--- रबिन्द्र राम

-


30 JUL AT 21:59

" ऐसा तो नहीं था दिल मेरा किसी पे आया नहीं,
हम हो के भी मुहब्बत में मुहब्बत को गवारा ना कर सकें ,
वो दुर जा रही थी मेरे नजरों से ख़ैर कहीं ,
मेरे एहसासों को तवक़्क़ो' से वयान ना कर सकें ."

--- रबिन्द्र राम

-


29 JUL AT 18:46

" तेरे बाद फिर हम किसको फिर क्या मिलेंगे,
इज़ाफ़ा कर के जो तुम महरुम छोड़ जाओगे,
इतना इतमिनान फिर हम किस बात करेंगे,
जो मिल‌ के भी हमें आधा अधूरा ता'बीर छोड़ जाओगे."

--- रबिन्द्र राम

-


27 JUL AT 0:26

*** गज़ल ***

*** इश्क़े-ए-मुकर्रर ***

" इक इश्क़ की ख्वाहिश फिर कहा लया हैं हमें,
बे बुनियाद का शक्ल का तसव्वुर आज़माया हैं हमें,
इक ख़्वाब सा मुसलसल हैं कोई,
फिर कहीं को बात मुकर्रर कर कोई,
वेशक इश्क़े-ए-वफ़ा आजमाते कही हम,
इक्का-दुक्का ही सही कोई बात बताते हम,
क्या पता तुम्हें हम क्या मिलेंगे,
हसरतें-ऐ-मुकाम जो तुम ठहर जाये कहीं,
दिल के बंदिश को लिए फिर रहे ,
क्या पता तु कहा कब मिल जाये कहीं ,
फिर कब ये बातों से मेरे ज़ाहिर हो,
वेजुबान दिल इस अल्फाज़े-ऐ-ज़िक्र में माहिर हो,
सलिका अब कुछ इस तजुर्बा का ज़रा इल्म सो हमें,
कहीं से तो इक दफा मुहब्बत करने देना हो हमें. "

                        --- रबिन्द्र राम

-


24 JUL AT 23:10

" तेरी बेरुखी की मुख्तलिफ बात समझेंगे,
हो कहीं मुहब्बत तो तुम्हें साथ समझेंगे,
राब्ता मुहब्बत का हम जार - बेजार समझेंगे,
लुफ्त अब जो भी उठा ले मुहब्बत को गुमनाम समझेंगे,
हो इश्क़ की दुश्वारीया फिर कहीं तो क्या करें ,
जो न किये हो इकतरफा मुहब्बत तो ,
वो तिशनगी मुहब्बत की ख़ाक समझेंगे ."

--- रबिन्द्र राम

-


23 JUL AT 1:20

" क्या पता तुम्हें फिर कैसे कब कहां फिर मिलेंगे ,
जुस्तजू मुन्तजिर हो रहे किसी आरज़ू में,
फिर किसके खलिश का तुम्हें अंदाजा हो ,
मिलते तो बेशक हो पर उस तरह से नहीं. "

--- रबिन्द्र राम

-


22 JUL AT 14:43

" क्या पता मैं किस तरह तुम्हें मुख्तसर हो जाऊं,
क्या पता किस बात पे तेरी इक और मुख्तलिफ बात हो जाऊं,
मैं अजनबी हूं और तुम कहीं ग़ैर ठहरें इस शहर में,
इस इज़ाफ़े में मैं तेरा सरा का सरा तेरा बेशुमार हो जाऊं."

--- रबिन्द्र राम

-


16 JUL AT 23:40

" थोड़ा इतराने दे हमको मुहब्बत को‌ मुहब्बत की तरह करने दे ,
हो बात जो बात इस बात पे थोड़ी हक़ीक़त ब्यान करने दे इस फसाने में,
फिर जहां तक कुछ बातें बनें इन बातों में ,
तेरा ज़िक्र यूं लाजमी हैं तो फिर इतना इश्क़ लाजमी तो करने दे. "

‌‌ --- रबिन्द्र राम

-


15 JUL AT 10:00

" इस जहान में जाने मैं किस के कफस में रहा हूं ,
मैं जाने किसकी हिजरत में मुहब्बत के बगैर रहा हूं ,
इस इल्म का मुन्तजिर हुआ हूं फिर इत्मीनान क्या करें,
कहीं भी इश्क़ की गुंजाइश में फिर जाने किससे प्यार क्या करें ."

--- रबिन्द्र राम

-


11 JUL AT 23:55

" यूं इरादातन तालुक कुछ भी ना था तुमसे,
मुहब्बत का भरम हम फिर किस पे आजमाते,
गर्दिश भी थे हुजुम भी थे मुहब्बत नामचीन हुई ,
इस से पहले हमें तेरे जाने फिर कभी ताकाजा ना हुई ,
बेशक तु मुझे मयस्सर ना हो कभी कही ,
इस अज़िय्यत से कब तक हम यूं रुबरु होते रहेंगे ."

              --- रबिन्द्र राम

-


Fetching Rabindra Ram Quotes