Rabindra Ram   (Rabindra Ram)
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Joined 5 January 2019


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26 APR AT 18:03

" फिर तुझसे यकीनन कैसे कब कहां क्या मिला जाये ,
हक़ीक़त बनाम की फिर इसे फ़साना ही रहने दिया जाये ,
तेरे हिज़्र कि तिजारत फिर किस से क्या करते तेरे तसव्वुर में,
जहां तक जाहिर बात बन परती फिर वही दहलीज तक जाहिर किया जाये. "

--- रबिन्द्र राम

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24 APR AT 18:26

यूं हासिल होने को हम भी हो जाये ,
हमें मुहब्बत से भी चाहे कभी कोई . "
ये इल्म तेरा यकीनन इल्म तेरा ही हो ,
तुम हमारे ख़सारे पे ग़ैर तो फ़रमाओ . "

--- रबिन्द्र राम

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21 APR AT 23:58

*** ग़ज़ल ***
*** फ़ुर्क़त ***

" आज इक दफा उस से मुलाकात हुई ,
फ़ुर्क़ते हयाते-ए-ज़िक्र अब जो भी हो सो हो ,
मुहब्बत में बचे शिकवे शिकायतें आज भी हैं‌ ,
आज उसे इक दफा गले लगाने को दिल कर रहा हैं ,
फकत अंजुमन कुछ भी तो कुछ बात बने ,
फ़ुर्क़त में उसे दाटने को जि कर रहा है ,
क्या समझाये की अब मुहब्बत नहीं हैं तुझसे ,
फकत तुझे महज़ इक याद की तरह रखी ,
तेरी तस्वीर आज भी इक पास रखी हैं ,
फिर जो कहीं मुहब्बत और नफ़रत की गुंजाइश हो तो याद करना ,
आखिर हम रक़ीबों से ‌दिल लगा के‌ आखिर करते क्या‌ . "

--- रबिन्द्र राम

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20 APR AT 1:32

*** Ghazal ***
*** Kindness ***

" You will remember me like this,
You will mention me a little,
Just that sometimes you wish to meet me,
And I pass by you silently,
If only there was a kind of companionship so that we could talk again,
I wish I could love you like before,
Sometimes my heart drowns in this thought of desire,
I want to get lost in you and never be able to get out of this sorrow,
Just think that the thoughts of desire are again in this desire,
I have met you but I have never been able to meet you like that."

--- Rabindra Ram

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14 APR AT 20:22

*** ग़ज़ल ***
*** नुमाइश ***

" क्यों ना तेरा तलबगार हो जाऊं कहीं मैं ,
मैं मुख्तलिफ मुहब्बत हूं इस दस्तूर से ,
क्यों ना तेरा बार बार मुसलसल हो जाऊं मैं ,
खुद को तेरी आदतों में कितना मशग़ूल किया जाये ,
तुझमें में मसरुफ़ कहीं जाऊं मैं ,
बात जो भी फिर कहा तक जार बेजार ,
तेरे ज़िक्र की नुमाइश की पेशकश की जाये ,
लो ज़रा सी इबादत कर लूं भी मैं ,
इश्क़ की बात हैं मुहब्बत कर लूं मैं ,
तेरे ख्यालों की नुमाइश क्या ना करता मैं ,
ज़र्फ़ तेरी जुस्तजू तेरी आरज़ू तेरी ,
फिर इस हिज़्र में फिर किस की ख़्वाहिश करता मैं ,
उल्फते-ए-हयात एहसासों को अब जिना आ रहा मुझे ,
जो तेरे ख्यालों के तसव्वुर से रफ़ाक़त जो कर रहा हूं मै . "

--- रबिन्द्र राम

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5 APR AT 23:45

*** ग़ज़ल ***
*** दरीचे ***

" गिले-शिकवे तमाम रखेंगे ,
मुहब्बत के दरीचे तमाम रखेंगे ,
फिर तुझसे कैसे और क्या मिला जाये ,
बात जो भी फिर गिला - शिकवा का क्या किया जाये ,
यूं रोज़ आयेदिन तुमसे सामना होता ही रहेगा फिर किसी ना किसी बहाने ,
मुहब्बत की पुर-ख़ुलूस मुहब्बत ही रहेगा ,
दिल को दिलासा ना देते तो क्या देते ,
इस एवज में दिल को तुझे मुहब्बत करने से सुधार तो नहीं देते ,
यूं देखना भी फिर देखना ही हैं यूं तसव्वुर के ख्यालों से ,
फिर किसी और की तस्बीर लगा तो नहीं देते ,
जो है सो है फिर किसी और को पनाह तो नहीं देते ,
दिल फिर इस इल्म से गवारा क्या कर लें ,
तुझे छोड़ के फिर से इश्क़-मुहब्बत दुबारा कर लें . "

--- रबिन्द्र राम

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3 APR AT 18:19

*** ग़ज़ल ***
*** करें तो क्या करें ***

" दिल गवारा ना करें तो क्या करें ,
तेरे बगैर फिर गुजारा ना करें तो क्या करें ,
उल्फते-ए-हयाते में ज़िक्र तेरा आज भी हैं ,
अब तेरा महज ज़िक्र भी ना करें तो क्या करें ,
मिलना तो मुकम्बल हुआ ही नहीं ,
तेरे हिज़्र में दिन और रात का गुजारा ना करें तो क्या करें ,
उल्फते-ए-हयाते ज़िक्र तेरा आज भी हैं ,
ऐसे भी इस रुसवाई में ना जिये भला तो क्या करें ,
मलाल हैं अब तेरे बाद मलाल अब कुछ भी ना रह जायेगा ,
तिश्नगी हैं अब मलाल कुछ भी तेरे बगैर मलाल कुछ भी नहीं रह जायेगा ,
रूह-ए-ख़्वाबीदा हूं जाने कब से इस उल्फत में तुझे मेरा ख्याल जाने कब आयेगा . "

--- रबिन्द्र राम

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28 MAR AT 22:55

" फिर तुझसे कब कहाँ कैसे यकीनन मिला जाये,
मयस्सर में तेरे ख्वाब कही मुकम्मल हो तो हो,
अब यार तेरे तलब की दुहाई क्या देता मैं,
कभी यार गैरइरादतन कभी ऐसे भी तो मिले होते ."

--- रबिन्द्र राम

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24 MAR AT 2:13

" कल'अदम कर दे ख्याले-ए-ज़िक्र तेरा ,
कोई ना कोई वास्ता नहीं फिर क्यों हैं ज़िक्र तेरा ,
ग़ुनूदगी में रहते हैं जानें मैं कब तक तेरे क़फ़स में रहूं ,
मलाल तेरा फिर कुछ यूं हो की फिर कोई मलाल ना हो तेरा . "

--- रबिन्द्र राम

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21 MAR AT 0:39

" तेरी ख़बर तो मिलने को मिलती ही रहती हैं ,
फिर तु ही कुछ इस कदर बेपरवाह हो गई ,
रफ़ाक़त के कुछ सलीके इख्तियार कर तो लें ,
फिर इस गुमनामी में तु फिर शिद्दत से मिले तो मिले . "

--- रबिन्द्र राम

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