.. तितलियों के रंग चुभते हैं.. कांटे.. फूलों से लगते हैं
अरे.. यह क्या .. यह कौन रूबरू सा है
दीवारों में कोई कुछ यूँ सा है.. के पत्थरों में उसकी ख़ुश्बू सी है..
पऱ क्यूँ माथे पे लहू सा है,
देखो ना.. यह आँसु भी उसका है.. यह हँसी भी उसी की है..
लाल बिंदी.. लाल चूड़ियाँ.. उफ़्फ़.. कितना ख़ूबसूरत लगता हूँ मैं..
जब आईने में सजता हूँ मैं,
श.. शश..चुप.. मैं सांस रोक कर बैठा हूँ..
सुबह से शाम हो गयी.. यह हवा कितनी बातें करती है,
मैं कितना बिछुड़ा-बिछुड़ा हूँ...
के दिन को तलब है महखाने की... औऱ मेरी रात कोठे पे बैठी है,
अच्छा.. क्या कहोगे ग़र में.. आग से बारिश कर दूँ तो..
चलो.. मैं दिखाता हूँ तुम्हें.. धूएँ से बादल कैसे हो जाते हैं...
मुहब्बत में.. पागल... ऐसे हो जाते हैं.. हा हाहा.. "मेरी तरह"
अब.. कोई साये से कह दो ना दूर रहे..
...मुझे अकेले में उससे मिलना है!!
"मनकीबातें" a.rana-
अब ना मुझे कहीं जाना है
ना किसी के आने का इंतजार है,
मिथ्या सी सारी खवाईशें
क्षणभंगुर सा सारा संसार है,
समुंदर ही समुंदर फैला है
ना कोई आर है ना पार है,
कश्तियों में तो सब बैठे हैं
पऱ नहीं हाथ में पतवार है,
पानें को है कुछ भी नहीं
औऱ खोने को बेशूमार है,
ज़िन्दगी.., आज रुके तो पता चला
के तुझ से कितना प्यार है..!-
चाहे यह परियों के तिलिस्म झूठे-सचे हैं,
अच्छे हैं ख़्वाब सोने दो,
बच्चे कच्ची नींद उठते हैं तो रोते बहुत हैं,
कह दो दिये से, के हमें अंधेरा पसंद है
के कुछ-कुछ तेरी ही तरह हम
रौशनी में तन्हा होते बहुत हैं,
कौन कम्बख़्त ख़ुश है
तेरी गिरफ्त से निकल कर मुहब्बत,
बता.., हमनें भी बाहर जाने के रास्ते सोचे बहुत हैं..!-
बातों ही बातों में ज़िन्दगी से..
जब बात.. मुहब्बत की चलेगी तो पूछुंगा,
क्यूँ... किसलिये... दिल तोड़ा था...
वो.. कभी मिलेगी... तो पूछुंगा,
अभी शज़र है घना-घना... अभी मौसम फ़स्ल-ए-बहार है
पतझड़ में जब शाखाओं को.. पत्तों की कमी खलेगी.. तो पूछुंगा,
अभी तो आलम है जवां-जवां.. अभी तो वो बज़्म-ए-चिराग़ हैं
कहीं.. क़भी जब तन्हाइयों में.. वो बन शमां जलेगी.. तो पूछुंगा,
पूछुंगा.. क़भी जब दूर क्षितिज पे..
उम्र का आफ़ताब.. महीन सा हो जाएगा..
...अंधेरा जब डराएगा
अभी तो भरा-पूरा दिन है.... जब शाम ढ़लेगी... तो पूछुंगा,
"हाँ"... क़भी... बातों ही बातों में ज़िन्दगी से..
जब बात.. मुहब्बत की चलेगी.. तो पूछुंगा!— % &-
मुझमें ही चिता जल रही थी ,मेरे लाश की
तेरे बाद थी ख़बर ना , मुझे आस-पास की
यक्ष बन के मन था मेरा , कर रहा सवाल
जो भूल गया उसका ,क्यों करते हो ख़याल?-
सुनो
मुझे नही पता ये प्रेम क्या होता है पर हाँ शायद कुछ तो है खास इसमें जबसे तुम्हे अपना कहा है बाकि सबने पराया कर दिया है । का जाने का का कहते हैं सब लेकिन हमको बस एतना मालूम है की हमारे में तुम डिपेंडेंट होके बस गए हो । हमारे लिए अब इ जरुरी नही है की तुम हमारे सामने हो या नाही हो , भला इ भी कउनो बात हुआ का की खुद को देखने के लिए हमेसा शीशा लेके घुमे।
हमको आज भी याद है पहली बार जब तुमको देखे थे , अरे तुमको का तुम्हारा जो पियरका टी-शर्ट था न उसको देखे थे मने की तुम पहिन क आये थे चेहरा नाइ देख पाये रहें पर तब्बो तुम्हारा एक छवि बना लिए थे मन में । तुमको याद है? जब पहली बार गुज़रे थे तुम हमारे बगल से लेकिन चेहरा इतना नीचे किये रहे की धरती मैया जैसे का दिखा रही हो । इहै तो भा गया मन को बिना देखे घर कर गए । उ समय अइसन लगा की बस धड़कन धौकनी बन गयी है और हम आसमान में उड़ रहे हैं ।
शायद यही प्रेम नामक व्याधि के शुरू होने के लक्षण थे । सैलून बीत गए हैं पर जानते हो आज भी मेरा favorite काम तुमको मुंडी निच्चे कर के चोर नज़र से देखना है ।तुमसे लड़ना झगड़ना सब है पर साला इस लड़ाई का एक ही finishing line है : अरे माफ़ कर दो न ......!
अब सबको थोड़ी न बताएँगे हमारा उ नाम जो तुम दिए हो , प्रेम में मरना आसान होता है हम तो ज़बरका रास्ता चुने हैं ,
(In caption👇👇👇)-
लगता है तुम्हें बेवफ़ाई किये हो चुका है ज़माना
प्यार करते हो ? जानां अब ये झूठ हुआ पुराना ...।-
मेरी मोहब्बत का इम्तेहान मत लो ,
है इश्क तुमसे इतना प्रमाण मत लो ,
दिल तो कब का सौंप चुका हूं तुमको ,
बस जान बाकी है अब जान मत लो ।।
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अजब चिराग
दिल के जैसा
दिन-रात जलता
रहता है यूँ ही
थक गया है
वो हद्द से कहीं
ज़रा हवा से
कहो बुझाए उसे ।।-
कुछ शब्दों को अंदर ही रखना बेहतर होता है
होठों पर आते ही आंसू ला देते है
सफर था सभी के लिए
बन गया है खुद के लिए-