हम धीरे धीरे नहीं बड़े होते हैं
एक दिन अचानक से
कुछ ऐसा होता है
कि हमें पिछला जिया हुआ
सबकुछ भ्रम लगने लगता है
और फिर उसी दिन ...
हम बड़े हो जाते हैं..।
अपने भ्रम पर हमें हँसी नहीं आती
ना तरस आता है ....
वो भ्रम इतना खूबसूरत होता है
कि बस याद आता है ...
और हम चाह कर के भी हक़ीक़त से
बाहर नहीं निकल सकते ...
ज़िंदगी के उन मासूम पलों को हम
दोबारा नहीं जी सकते ...।
-साज़-
जी रही हूँ मैं तुमको हर एक सॉंस में अपनी...❤️
_____... read more
हम से पुराने समय की
औरतों की सोच को
इस तरह से दबा दिया गया
उन्हें ऐसा चुप कराया गया
उन्हें यूं समझा और सिखाया गया
कि वो अब औरत रहीं ही नहीं ...
वो अब शरीर से औरत
और सोच से मर्द बन चुकी हैं...
जिन्हें अपनी ही बेटियों बहुओं का
बोलना चुभता है ,
अलग ख्याल रखना
अखरता है ...
और फ़िर हर सुबह उनके
संस्कार और सूली पर रखी नाक को
देखकर बकायदा दर्शन करके ही तो
ये समाज सांस लेता है .....है न ?
- साज़
-
तुम्हें जो कल्पना में बांधने की कोशिश करते हैं
गुनाह करते हैं ...
कल्पनाओं से परे हो तुम ...
प्रेरणा हो तुम ❤️-
आंसू तबतक ही निकलते हैं
जबतक दर्द सिर्फ़ दर्द हो ...
दुख न बना हो ...
दर्द जब पूरी तरह तुममें
घर कर जाता है
तो दुख बन जाता है ...
दुःख में बस उदासी होती है
मौन होता है ...
एक कतरा भी आंसू का नहीं होता
आंसू का न निकल पाना
सभी दुखों में सबसे ऊपर है ..।
-
तुमसे मिलकर मैंने जाना
कि हक़ीक़त ख़्वाब से कहीं ज्यादा
ख़ूबसूरत हो सकती है ...
(अनुशीर्षक में)
-
तुम्हारी आँखें हैं
या बादलों पर चढ़ा
कोई रूमानी लिहाफ़ ...
(अनुशीर्षक)-
सपने एक बार में नहीं मरते
वो धीरे धीरे करके टूटते हैं
आंसुओं को पी जाना सहज नहीं होता
मजबूरियों में खुद को तसल्ली देते रहना
और हर सुबह वापस उठकर
ऐसे श्रृंगार करना जैसे सबकुछ
उसी श्रृंगार उसी चेहरे की तरह सुंदर हो ...
ये सिर्फ़ औरतें ही कर सकती हैं ...
दुःख औरतों के माथे की बिंदी है
जिसे पहले वो बड़े गर्व से
और फ़िर आदतन ...
खुद ही खुद पर सजा लेती हैं...।
-
तुम्हें इस बात से प्रेम रहा कि मैं तुम्हें प्रेम करती हूँ ...तुम्हें मुझसे कभी प्रेम नहीं रहा क्योंकि प्रेम में प्रेम करने से कहीं ज्यादा ..एक दूसरे को समझना जरूरी होता है ...हम ठीक ठीक न भी समझ पाएं तो भी कोशिश तो करते ही हैं कि हम ये जान सकें कि सामने वाला क्या चाहता है ,उसके मन में क्या है वो किस बात से दुखी है या कौन सी बातें हैं जो उसे खुश करती है...शायद यही वजह होती होगी कि लोग किसी के साथ होकर भी किसी को भूल नहीं पाते ...इसलिए नहीं क्योंकि उन्हें प्रेम नहीं मिल रहा बल्कि इसलिए क्योंकि कहीं न कहीं वो इंसान उसे ठीक से समझ नहीं पा रहा ...। फ़िर ये भी कहते हैं कि किसी को समझने के लिए उम्र काफ़ी नहीं होती ....पूरी उम्र लगाने के बाद भी हम उसे समझ नहीं सकते ....
झूठ कहते हैं...।
मुझे आज भी पता है कि तुम्हारे दिल का इलाज़ क्या है...
और तुम आज भी नहीं जानते ...मेरी नाराज़गी की वजह क्या है ...।-
प्रेम जब अपने उच्चतम स्तर पर
पहुंच जाता है
तो पाना या खोना जैसी चीजें
मायने नहीं रखती हैं
बस उस एहसास का होना ही
काफी होता है ...
किसी का हमारी ज़िंदगी में
न होने का दुख
कभी भी उसके होने की यादों से
जीत नहीं सकता है...
फिर कभी हम जब किसी और को
उस तरह के प्रेम में देखते हैं
तो दिल बस दुआएं देता है ...
और अपने प्रेम की यादों में खो कर
आनंदित हो उठता है ....।-
उन्हें अब ग़म है हमसे दूर होने का,
जब पास थे तो हमसे दूर रहते थे।
बड़े ही प्यार से ज़हर पिला दिया,
मेरी हर बात पर मंज़ूर रहते थे।
कभी सोचा है पत्थर क्यों बने हम,
इश्क़ में तो पहले चूर रहते थे।
अब याद में ही घंटों बर्बाद करते हैं,
साथ थे तो समय से मजबूर रहते थे।
तुम्हारे नाम पर अब ख़ामोश रहते हैं,
मेरे हर ज़िक्र में तुम ज़रूर रहते थे।
- साज़
-