Sakshi Ajay Srivastav   (साज़)
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Joined 17 April 2021


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Joined 17 April 2021
7 OCT AT 22:29

" इंसान अच्छा था "

ये केवल मरने के बाद सुनाई देता है ,
अगर आप जीते जी ये सुन पा रहे हैं
तो अपने आप से पूछिएगा
कि कब और किस तरह से
मारा है आपने खुद को....।

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21 SEP AT 23:19

वो सारे लोग जिन्हें मेरी फ़िक्र है ...सच में फ़िक्र ही है ...उनसे मुझे हमदर्दी है ..मैं उनकी ऋणी रहूंगी ..जाने कितने जन्मों तक ...मगर इस जन्म के लिए मुझे माफ़ी चाहिए...मैं अब हार रही हूं...तुमने मुझपर यक़ीन किया कि मैं लडूंगी और जीतूंगी ...मगर कुछ लोगों का हश्र लड़ते लड़ते मर जाना होता है ...मैं अब थक चुकी हूँ...मुझमें और हिम्मत नहीं बाकी रही ....मत कहो मुझसे ये कि सब ठीक हो जाएगा ...बस कुछ दूर और चलना है ...जाने क्यों कबसे तुम ये झूठ जी रहे हो और मुझे भी इसके सपने दिखा रहे...जबकि असल में कहीं कभी कुछ भी ठीक नहीं होता ये बात तुम्हें मालूम है..या शायद तुम भी किसी झूठे सपने में हो...सब और नए तरीकों से बिगड़ता जाता है ...सवेरा देखने की चाहत में मैंने कितनी ही रातें जाग कर बीता ली ...और अब ..अब मुझे नींद से भी डर लगता है ...जैसे मानो मैं जिस पल सोई उसी पल वो सवेरा हो जाएगा या मैं कुछ खो दूंगी या फ़िर सबकुछ खत्म हो जायेगा ... ये जागती आँखें अब सांसों को और मन को थका चुकी हैं... मैं सच में सो जाना चाहती हूँ .....
मेरे फ़िक्र करने वाले लोगों ...नहीं ...सच में फ़िक्र करने वाले ....मुझे जाने दो ...मुझे सोने दो ... मैं अब और नहीं जग सकती ...मैं और नहीं लड़ सकती .....।

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3 AUG AT 23:58

हम धीरे धीरे नहीं बड़े होते हैं
एक दिन अचानक से
कुछ ऐसा होता है
कि हमें पिछला जिया हुआ
सबकुछ भ्रम लगने लगता है
और फिर उसी दिन ...
हम बड़े हो जाते हैं..।
अपने भ्रम पर हमें हँसी नहीं आती
ना तरस आता है ....
वो भ्रम इतना खूबसूरत होता है
कि बस याद आता है ...
और हम चाह कर के भी हक़ीक़त से
बाहर नहीं निकल सकते ...
ज़िंदगी के उन मासूम पलों को हम
दोबारा नहीं जी सकते ...।

-साज़

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14 JUL AT 0:25

हम से पुराने समय की
औरतों की सोच को
इस तरह से दबा दिया गया
उन्हें ऐसा चुप कराया गया
उन्हें यूं समझा और सिखाया गया
कि वो अब औरत रहीं ही नहीं ...
वो अब शरीर से औरत
और सोच से मर्द बन चुकी हैं...
जिन्हें अपनी ही बेटियों बहुओं का
बोलना चुभता है ,
अलग ख्याल रखना
अखरता है ...
और फ़िर हर सुबह उनके
संस्कार और सूली पर रखी नाक को
देखकर बकायदा दर्शन करके ही तो
ये समाज सांस लेता है .....है न ?

- साज़







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6 JUL AT 10:02

तुम्हें जो कल्पना में बांधने की कोशिश करते हैं
गुनाह करते हैं ...

कल्पनाओं से परे हो तुम ...
प्रेरणा हो तुम ❤️

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3 JUL AT 22:25

आंसू तबतक ही निकलते हैं
जबतक दर्द सिर्फ़ दर्द हो ...
दुख न बना हो ...
दर्द जब पूरी तरह तुममें
घर कर जाता है
तो दुख बन जाता है ...
दुःख में बस उदासी होती है
मौन होता है ...
एक कतरा भी आंसू का नहीं होता
आंसू का न निकल पाना
सभी दुखों में सबसे ऊपर है ..।

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1 JUL AT 14:12

तुमसे मिलकर मैंने जाना
कि हक़ीक़त ख़्वाब से कहीं ज्यादा
ख़ूबसूरत हो सकती है ...

(अनुशीर्षक में)

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30 JUN AT 23:22

तुम्हारी आँखें हैं

या बादलों पर चढ़ा

कोई रूमानी लिहाफ़ ...



(अनुशीर्षक)

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29 JUN AT 20:31

सपने एक बार में नहीं मरते
वो धीरे धीरे करके टूटते हैं
आंसुओं को पी जाना सहज नहीं होता
मजबूरियों में खुद को तसल्ली देते रहना
और हर सुबह वापस उठकर
ऐसे श्रृंगार करना जैसे सबकुछ
उसी श्रृंगार उसी चेहरे की तरह सुंदर हो ...
ये सिर्फ़ औरतें ही कर सकती हैं ...

दुःख औरतों के माथे की बिंदी है
जिसे पहले वो बड़े गर्व से
और फ़िर आदतन ...
खुद ही खुद पर सजा लेती हैं...।

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18 JUN AT 15:48

तुम्हें इस बात से प्रेम रहा कि मैं तुम्हें प्रेम करती हूँ ...तुम्हें मुझसे कभी प्रेम नहीं रहा क्योंकि प्रेम में प्रेम करने से कहीं ज्यादा ..एक दूसरे को समझना जरूरी होता है ...हम ठीक ठीक न भी समझ पाएं तो भी कोशिश तो करते ही हैं कि हम ये जान सकें कि सामने वाला क्या चाहता है ,उसके मन में क्या है वो किस बात से दुखी है या कौन सी बातें हैं जो उसे खुश करती है...शायद यही वजह होती होगी कि लोग किसी के साथ होकर भी किसी को भूल नहीं पाते ...इसलिए नहीं क्योंकि उन्हें प्रेम नहीं मिल रहा बल्कि इसलिए क्योंकि कहीं न कहीं वो इंसान उसे ठीक से समझ नहीं पा रहा ...। फ़िर ये भी कहते हैं कि किसी को समझने के लिए उम्र काफ़ी नहीं होती ....पूरी उम्र लगाने के बाद भी हम उसे समझ नहीं सकते ....
झूठ कहते हैं...।

मुझे आज भी पता है कि तुम्हारे दिल का इलाज़ क्या है...

और तुम आज भी नहीं जानते ...मेरी नाराज़गी की वजह क्या है ...।

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