Sakshi Ajay Srivastav   (साज़)
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Joined 17 April 2021


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Joined 17 April 2021
30 APR AT 16:52

मुझे तुम्हें खुद से दूर करना नहीं आया ...
जिन रास्तों पर चलकर तुमने मेरे पास
आने की कोशिश करी
उन रास्तों पर मैं तुम्हें पहले से मौजूद
तुम्हारा इंतजार करते नजर आयी,
मैं नहीं कह पाई तुमसे कि
तुम्हारे जाने से ज़्यादा तकलीफ़
अब तुम्हारे लौट कर आने से होगी
तुम्हें जाते हुए देखकर जो आंसू
पलकों पर ओढ़ लिए थे
तुम्हें लौट कर वापस
बदला हुआ आता देख
मुझे नहीं मालूम कि वो
नदी से बह उठेंगे
या फ़िर पत्थर बन जाएंगे ...
हां मगर ये तय है कि दिल
तबाह हो उठेगा ...
' इश्क़ ' तबाही का खूबसूरत रूप है
जिसे दिल अपनी मर्ज़ी से चुनता है ।
- साज़

-


18 APR AT 22:09

माना तुम्हारी मोहब्बत समुंदर सी गहरी है
मगर मेरे दिल में कोई प्यास ही नहीं है...

तुम ख्वाबों में अपने जो रंग बुनते हो
मेरी उन सभी रंगों से दुश्मनी है ..

तुम खुदा मानते हो मुझको जाने क्यों
मेरी खुद की दुआएं नहीं होती पूरी हैं...।

तुम दिल निकाल के बाहर भी रख दोगे तो
पत्थर समझेंगी मेरी आँखें इतनी सूनी हैं...।


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17 APR AT 11:12

मां ने थाली लगाई है ...
अच्छी नौकरी
अच्छा पैसा
घर परिवार
जमीन जायदाद
सब परोस दिया थाली में ...

और मां प्यार ?
मां हंसने लगी ...प्यार से भला कभी पेट भरता है
इन सब के साथ वो भी तो मिल ही जाता है ...

अब मैं मुस्कुरा रही थी..
नहीं मां...इन सब से हम उसकी भूख को
मारने की कोशिश करते हैं...
और फिर थक हार कर ये मान लेते हैं कि ....

प्यार से भला कभी पेट भरता है ...
इन सब के साथ वो तो मिल ही जाता है ...।

- साज़



-


15 APR AT 18:12

जो चीजें हमें स्वीकार्य होती हैं
हम उनके लिए लड़ना छोड़ देते हैं
और फिर वो उदासी बनकर
जहन में बस जाती हैं ...
कुछ न कर पाने की उदासी से बड़ा
कोई दुख नहीं है ...।

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15 APR AT 16:59

एकतरफ़ा प्यार करना
ऐसा ही है जैसे एक पैर पर
खड़े होने की कोशिश करना ...
लड़खड़ाते रहना मगर
ये यकीन रखना कि
एक न एक दिन तो
संतुलन बन ही जायेगा ...
न बना तो ज़िंदगी खुद को
पैरों को और जमीन को
कोसते निकल जानी है ...
और जो बन गया तो समझो
सारी सेहत सुधार जानी है ...।

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13 APR AT 16:36

वो बहुत चाहती थी उसे..
मैंने सुना है वो कहा करती थी सबसे
कि उसके बिना जी नहीं पाएगी ...
वो जी तो रही है अब भी
मगर उसकी हर एक आहट में मैंने
उस आदमी की खुशबू आते देखी है ...
वो अपनी चलती हुई सांसों के जितना ही
उसका नाम लेना चाहती है
उसकी बातें करना चाहती है...
और मैं ..
मैं उन्हें अपने होंठों से रोककर
उन में अपनी बची हुई सांसें भरना चाहता हूँ...
मैं उसके लिए थोड़ा और मरना चाहता हूँ...
मैं... उसे जीता देखना चाहता हूँ ...।

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11 APR AT 22:04

बताओ हमको खुद से तुम
नज़र कैसे मिलाते हो
मेरे दिए गुलाब को जब
उसके बालों में सजाते हो

हम खामोश है अगर तो
इसमें तुम्हारी भलाई है
झूठी अदाओं का हुनर तुम
आखिर कहां से लाते हो

सबूतों के कटघरे में
हमें तुम न खड़ा करो
अपनी बदली शकल का अब
रंग उड़ाना चाहते हो ?

चलो अब जाओ जिधर के हो
वहीं पर ही रहो तुम
दोबारा मत कहना अब
कि तुम हमको जानते हो ...।

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8 APR AT 11:27

तुम नहीं हो ....

(अनुशीर्षक में)

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4 APR AT 2:25

बचपन में मुझे मेरी एक गुड़िया बहुत पसंद थी ...इतनी ज्यादा कि जब रिश्तेदारों के बच्चे छुट्टियों में आया करते थे तो मैं उसे छुपा दिया करती थी ...इस डर से कि कहीं कोई उसे मुझसे मांग न ले ..और मैं ऐसी कि उनके सामने उन्हें कभी ये नहीं कह पाऊंगी कि नहीं देना मुझे ये मेरी है ...हो सकता है फिर वो मुझे बुरा समझने लगें ....और नहीं भी तो मैंने खुद भी अगर उनकी रोती शकल देख ली तो भूल जाऊंगी कि मुझे ये कितनी पसंद है ...इसीलिए पहले ही चालाकी से उसे छुपा दिया करती थी ...मुझे प्रेम में कभी भी बांटना नहीं आया हमेशा स्वार्थी ही रही ...मेरी हमेशा से ही चाहत रही कि मैं या तो किसी का पहला इश्क़ या फ़िर आखिरी मुहब्बत बनूं ....मगर मैं बनी तो बस वो दीवार जिसके सहारे टेक लेकर लोग आंसू बहा सके ...या कुछ पल गुजार सके ...दीवार कभी भी घर नहीं बन सकती..वो बस घर सी लगती रहती हैं.....

दीवारों के कान होते हैं दिल नहीं ...।

खैर , तुम सोच रहे होगे ये क्या बेतुकी बातें मुझे सूझ रही है आधी रात को....बस यूँही याद आ गया था...छोड़ो तुम ये सब ..चलो बताओ उसके बारे में ....कितनी पसंद है वो तुम्हें ...?

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1 APR AT 15:56

जब वो सोकर उठी खुले बालों में
बैठे खिड़की निहार रही थी
तो आकर क्लचर उसने बालों में लगा दिया था ...
उस पल कुछ पल को जब वो उसे देखती रही
तो वो भी मुस्कुरा दिया था ....


(अनुशीर्षक )

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