जिंदगी के पन्ने उलटते गए
और कहानी भी पूरी न हुई।-
किसी को सुनाई नही देती
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कभी जिनका मिलना
मुकद्दर में लिखा नहीं होता,
उनसे मोहब्बत हो या दोस्ती
कसम से बेहिसाब होती है।-
काश दिल ही धड़कन पर यही सोचे,
कि में क्यों इस मिट्टी के जिस्म से इश्क की
गुस्ताखी करूं
ताकि बच जाए वजूद मेरा जर्रा जर्रा होने से ।-
की
महक तभी तक महकती भी ,
जब तक रूहे बंदगी की जाए,
जिस्म की चादर को चुने की चाह
अहसास को खत्म करदेती है
और गुलाब ए इश्क की राख
फजाओ को भी धूमिल कर देती है ।
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ए दिल ये कैसा ख्याल था मन का
कि हम उनके ख्याल से आगे ही न गए!
और दिल की तवज्जो तो देखो
उन्होंने विसरा दी बंदगी मेरी ।।-
मैंने सोचा हम भी करले कुछ
खुद्दारी के नियम तय,
क्योकि इसके सदके तो हम
अपना जीवन भी वार दें,
पर खुद्दारी को ज़माने में हारने नही देंगे ।-
क्योकि कभी कुछ पल में,
एक दिन जब ऊब
जाओगे सबसे तुम ढूंढना सुकून
मेरे अपनेपन को याद करके!-
कभी भी 35 और 37 एक साथ नहीं रह सकते
उनके बीच 36 का आंकड़ा है
अब तेरे ओर मेरे दरमियान भी यही
35 औऱ 37 वाला तथ्य रह गया
36 के अहसास के साथ ताउम्र के लिए
सुक्रिया ऐ ज़िंदगी
आईना साथ रखकर चलने के लिए ।।
अर्थात, रहित ज़िन्दगी को अर्थ देने के लिए ।।-