बचपन की बातें फिर से दौहराएँ हम,
आओ चलो फिर से बच्चे हो जाएँ हम!
नानी की गोदी में बैठें, सुनें किस्से,
हर बात उनकी सच मान जाएँ हम!
फिर से छुपाएँ कोई जुगनू को मुट्ठी में,
बरसाती पोखर में नावें चलाएँ हम!
फिर जाएँ गाँव की हदबंदी के बाहर,
जंगल-जलेबी और झरबेरी खाएँ हम!
डँटियाए फिर धूर्त कहकर कोई हमको,
बागों में जाकर हुड़दंग मचाएँ हम!
लगाएँ बहाने रोजाना छुट्टी के फिर,
तपती दोपहरी में साइकिल दौड़ाएँ हम!
जो भी मय्यसर हो मिल बाँटकर खाएँ,
एक टाफी के आठ हिस्से बनाएँ हम!
कुछ पल जीवन के झंझट भुला डालें,
परियों की दुनिया में कुछ पल खो जाएँ हम!
आओ चलो फिर से बच्चे हो जाएँ हम!
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