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बच्चों का क्या ही सोचना,जैसे तैसे बड़े हो ही जायेंगे
फ़िक्र तो ये कि भगवान कहाँ रहेंगे खुदा क्या खायेंगे।-
मैं अपनी हर एक झूठी बात में सच्चा था...
हां ये उन दिनों की बात है,
जब मैं बच्चा था...-
बचपन की बातें फिर से दौहराएँ हम,
आओ चलो फिर से बच्चे हो जाएँ हम!
नानी की गोदी में बैठें, सुनें किस्से,
हर बात उनकी सच मान जाएँ हम!
फिर से छुपाएँ कोई जुगनू को मुट्ठी में,
बरसाती पोखर में नावें चलाएँ हम!
फिर जाएँ गाँव की हदबंदी के बाहर,
जंगल-जलेबी और झरबेरी खाएँ हम!
डँटियाए फिर धूर्त कहकर कोई हमको,
बागों में जाकर हुड़दंग मचाएँ हम!
लगाएँ बहाने रोजाना छुट्टी के फिर,
तपती दोपहरी में साइकिल दौड़ाएँ हम!
जो भी मय्यसर हो मिल बाँटकर खाएँ,
एक टाफी के आठ हिस्से बनाएँ हम!
कुछ पल जीवन के झंझट भुला डालें,
परियों की दुनिया में कुछ पल खो जाएँ हम!
आओ चलो फिर से बच्चे हो जाएँ हम!-
चलो बच्चे बन जाते हैं,
प्यारी सी जिंदगी के आनंद लेते हैं..!!
बचपन की बचकानी हरकतें, शरारतें,
और प्यारी सी मासुमियत ले आते हैं..!!
बचपन की बड़ी खूबसूरत सी जिंदगी
को महसूस कर लेते हैं..!!
चलो अपनी अपनी आंखें बंद कर लेते हैं,
चलो बच्चे बन जाते हैं...!!!
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आँगन में नीम और बरगद मुरझाने लगें हैं,
लगता है घरके बच्चें अब मोबाइल चलाने लगे हैं।।-
बच्चे बन जाओ ख़ुशियाँ मिलेंगी
ज़िन्दगी को भी कश्तियाँ मिलेंगी
उम्र गुज़र रही है गुनाहों में तुम्हारी
ऐसी उम्र में तो कमज़ोरियाँ मिलेंगी
हर वक़्त दूसरों की बुराई करते हो
अच्छाई की कैसे यूँ पंक्तियाँ मिलेंगी
दिल से दिल मिले दिखेंगे "आरिफ़"
इन दिलों में भी तुम्हें दूरियाँ मिलेंगी
"कोरा काग़ज़" समझोगे दुनिया अगर
कलम पकड़ती तुम्हें उंगलियाँ मिलेंगी-
एक बंजर ज़मी पर आज फिर बरसे हैं बादल
फिर भूखे बच्चे को माँ ने सिर्फ़ पानी पिलाया है।
- सुप्रिया मिश्रा
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