प्रियतम तुम बिन प्रीति तो, हमैं लगत है आधा
हम भी वैसै लगत हैं,जैसै कृष्ण बिन राधा-
हो दूर कहीं तुम,
मिल जाओ तो,
एक बात तुम्हें मैं बतलाऊँ।
चाँद से सुन्दर चेहरे पर,
कुछ लिखा है मैनें,
कहो तो तुमको दिखलाऊँ।
कभी दिखती हो,
कभी छिप जाती हो,
कैसे मैं तुमको समझाऊँ।
राह देखता हूँ तुम्हारी,
आ जाओ कभी तो,
प्रीति कि कृति तुमको सिखलाऊँ।।-
कभी छीन लेती है हौसले
और भरम में जीते हैं बेवजह,
जिंदगी तेरे नाम में
कई सिलवटें कई फासले।
मुझे पूछना है सवाल कई
जवाब जिनके हैं गुमशुदा ।
दुश्वारियों के फरेब में
इश्क कैसे सम्हल रहा ।
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पहली नजर में दिवाना हुआ
फ़िर धीरे-धीरे इस्क हुआ
संवाद कभी ना उनसे हुआ
नाम था उसका अनजाना
फ़िर उसके नाम को मैने जाना
उसके नाम मे भी था स्नेह
क्या बताउ उसका नाम प्रीति था
या प्रेम कि वो एक परिभाषा थी
कितना सोचू उसके नाम को ,
उसके नाम के हर इंसान से मोहब्बत कर ली
फ़िर भी पता नहीं क्यो ,अभी भी उसी का इंतजार हैं
🤫🤫🤫🤫🤫😘😘😘-
कुछ तो मेरा मुझमें मेरे जैसा रहने दो ,
इस "अल्हड़" में उस "प्रीति" को ज़िंदा रहने दो |-
मन की क्यारी दहक रही है सींच दो तुम मुझे वनमाली
पुलकित पुष्प नवयौवन देह कब तक करुँ मैं रखवाली
प्रीति के पग प्रेमरस से तुम मुझे भिगाओ करके फुहार
सराबोर हो जाए तन-मन हे-प्रियतम करो ऐसी बौछार-
......
मुझसे अज्ञात हो..
तो प्रस्तावना हूं
अंगीकार करोगे..
वह प्रथम प्रणय की
भूमिका हूं
छले गए हो..
आलोचना हूं
सबमे हूं ..बस अपनी नहीं
प्रेम का स्पर्श...प्रीति हूं।।
#प्रीति यादव
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