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हर किसी से उलझने की आदत नई लगी है
जब तहकीकात की तो पता चला
उनके जाने के गम में मेरी लाश मेरे ही अंदर पड़ी है-
कांच के बाहर की परत
मुझ जैसी है।
बूंद जैसी तुम
छूकर गुजरती रहती हो।
न तुम रुकती हो,
न मेरा मन भरता है।-
प्यार से ढका जाना चाहिए
ठीक वैसे ही
जैसे ढक देता है आसमान
धरती को
पर धरा का वजूद
जस का तस वहीं क़ायम
.
हम सभी को नीला आसमाँ होना होगा
बिना किसी का आसमाँ छीने..-
एकतरफा इश्क़ कम्भख्त
अधूरा ही रह जाता है
अब इबादत में मांगू क्या
वो खुदा भी तो उसका
जिक्र सुनकर ही रुठ जाते हैं-
तुम्हारी कहानी-ए-इश्क़ कैसे पूरी होती ऐ क़ातिल
बददुआ किताब में दम घुटे गुलाब की थी।-
जो मीरा तुमने किया...
कान्हा ने तुम्हे अपनाया नहीं
फिर भी तुमने सिर्फ उसी को प्रेम किया,
ना कहा उसे बेवफा,
ना मिलन की उम्मीद की कोई
सच मे तुम्हारा प्रेम सच्चा प्रेम था,
ऎसा ही प्रेम मैं करना चाहता हूँ
ए मीरा मैं तुमसा होना चाहता हूँ...
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