आओ बैठो आज तुम्हारी पेंशन बाँध देता हूँ
ए-दर्द सुन अब हर महीने बाद मिलाकर मुझसे-
कुछ मत कहो
उनकी सुनो और सुनते रहो
बस हां में हां मिलाते रहो
उनका गुणगान गाते रहो
बस उनकी जय जय कार करते रहो
भूख प्यास की ना बात करो
मरते रहो सबको मारते रहो
अपने हित की बलि चढ़ाते रहो
वो बेचते रहे आप देखते रहो
राष्ट्र हित में सब त्याग करो
पुरानी पेंशन भूल जाओ
जागो जागो युवा जागो
आओ मिलकर कुछ काम करो
साहब से सवाल करो
उनसे कुछ फरियाद करो
साहब कुछ तुम भी त्याग करो
सब्सिडी की मलाई त्याग करो
छोड़ो पेंशन जीवन आम करो
कुछ तो शर्म करो
साहब हम पर भी रहम करो
दे दो पुरानी पेंशन
दे दो अधिकार हमारा
अब ना अत्याचार करो
निजीकरण बंद करो
युवा को रोजगार दो
#ops #ops #ops
।। अनिल प्रयागराज वाला ।।-
कल रात पड़ोसवाली दादी अम्मा
मर गयीं,हाँ जी मर गयीं
सारा परिवार जिंदा था
जिससे,वो बुढ़िया मर गयी
'गम'दादी के चले जाने का
नहीं था,किसी को
मलाल ये था, कि अब
पेंशन नहीं मिलेगी।
वही कोने पर
फफक-फफक कर
रो रही थी बहू
जिसने कई सालों से
दादी के कमरे में
कदम नहीं रखा था
बेटा भी ग़मगीन बैठा था उदास
आखिर अब घर का खर्च
कैसे चलेगा........?
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व्यवस्थाओं में थोड़ा बदलाव
मुझे भी चाहिए
हां! पेंशनर्स वाला सुकून
मुझे भी चाहिए।-
जाने वाला चला गया,अब
किसका रस्ता देख रहे हो?
आज गिरते हैं अश्रु तुम्हारे,
कलप रहा आज हृदय यह,
स्मृति में चलचित्र बनी हैं,
नेकी वाली सारी बातें,वो
जो तुम्हें सिखाना चाहा वह।
बेटा!.. बेटा!...पुकार उसकी,
तब न तनिक सुहाती थी तुझको,
तेरा न खाया,अपनी पेंशन से ,
वह ही खिलाता था तुझको।
सत्य बताओ.........
तुम्हें दुःख वृद्ध पिता के जाने का है, या
अब वह पेंशन बन्द हो जाने का है.....?
-रेणु शर्मा
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कल बूढ़ा बैंक गया था... इतनी खबर कानों में पड़ते ही घर में झगड़ा शुरू हो गया।
खबर मिली है कि रोटी दी या नहीं, इस पर नहीं,
झगड़ा पेंशन पर हो रहा है। ......शाम हो आयी है और इधर बूढ़ा सुबह से भूखा है।-
एक पेंशन
जिससे इंसान
मुक्ति चाहता है,
लेकिन वह जीवनभर
मिलता रहता है,
वह है " टेंशन "।
? ? ?-
क्या यह सही है..................?
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हो ना कटौती ऐशो-आराम की,
रोक दिए वेतन भत्ते,पेन्शन तमाम की।
कार्यकाल पाँच से दस वर्ष,
कटती है जिन्दगी आराम की।
हमने यहाँ काट दी उम्र सारी,
बदले में NPS हमारे नाम की।
निभाते रहे ईमानदारी से फर्ज अपना,
पर आश्रित बुढ़ापे की हर शाम की।
ना मंत्री,ना नेता,ना कहीं के विधायक हम,
क्यों नहीं समझते दुविधा,कर्मचारी आम की।
ना हो कटौती ऐशो-आराम की,
रोक दिए वेतन भत्ते पेन्शन तमाम की।(-Sonali Tiwari)
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स्वरचित एवं मौलिक-सोनाली तिवारी"दीपशिखा"
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