विकास सिंह पटेल'शब्द'   (विकास सिंह पटेल 'शब्द')
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आगंतुक को नमस्कार🙏🙏
Joined 29 February 2020


आगंतुक को नमस्कार🙏🙏
Joined 29 February 2020

प्रतिदिन प्रतिक्षण अनगढ़े
छलावे से छला जाता हूं
मेरा पहला विरोध खुद से हैं।

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जाया ही जाने दो
ये ग़म हैं,
आंखों में आया तो
रोएगा बहुत।

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प्रेम सलीका सीखता है,
बशर्ते वो प्रेम हो....।

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प्रेम सलीका सीखता है,
बशर्ते वो प्रेम हो....।

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आप एकांकी न हो
इसलिए प्रेम चुनते हैं
प्रायः प्रेम आपको
एकांकी बना देता है..?

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जब मन बोलता है
तब आंखे सुनती हैं,
चुप बैठा शख्स
अक्सर खामोश नहीं होता

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मुझे प्रतिदिन
एक न्यायोचित विषय की
आवश्यकता होती हैं,
जिसके बारे में मैं लिख सकूं
एक "कविता"
गढ़ सकूं कुछ क्षदम रूप
संवेदना की पराकाष्ठा मे पहुंच
झकझोर सकूं
आम जनमानस को,,
नरमुंडों की भीड़ ढूंढती "स्तंभ"
ताकि बांधकर खुद को
चल सके जी हुजूरी में,
व्यस्थित करने के नाम पर
डकार मारती व्यवस्था,
चरवाहा जानता हैं
चारे की जरूरत नहीं इनको।।

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और धीरे धीरे बढ़ चलते हैं
इंसान के कदम
उस दिशा की ओर,
जहां से वो
किसी दिशा की ओर
नहीं जाना चाहता।

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हर तबाह शख्स
गुनहगार नही होता ..?

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चलने का बोध होना
अच्छी बात है,
रोड आपकी है
ये ख्याल गलत है।

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