टूटी सी कोई बेल,न जाने कब की जुड़ी रही
सूखा था कोइ पेड़,जाने कब से खड़ा रहा
इक धागा ही था टूट गया,कोई बंधन था क्या'छूट गया'
जब तय थी'हद',क्यो तय कर ली,'सरहद'
अनजाने रिश्तेजुड़े रहे,जाने पहचाने छूट गए
बेमौसम जब बारिश आयी,फिर सावन आने छूट गए
मैं खड़ा रहा चौराहे पे,वो गली सुहानी छूट गयी
सब कुछ तो बोला बस,बात बताना भूल गया
जो खड़े खड़े मुस्काता है,क्या ज़ख्म पुराना भूल गया।
-