Bhanu Pratap Bhadauriya   (©भानुप्रताप भदौरिया)
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Joined 17 September 2018


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Joined 17 September 2018

(जीवन)

सिमट गया अब बचपना, भटक गए सब यार।
अपने - अपने काम में, व्यस्त हुआ संसार।।१।।

उलझे उलझे आप में, है बस मन में याद।
नहीं सुखों को बांटते, दुःख की नहिं फ़रियाद।।२।।

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इस तरह जीवन की रवानी देख।
आंखों में भरा हुआ पानी देख।
जिंदगी जितनी है गुज़र जाएगी,
उसमें छिपी जिंदगानी देख।

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16 JUL AT 22:15

दिल तुम्हारा तोड़ कर चले जायेंगे।
एक दिन सब छोड़ कर चले जायेंगे।
बहुत ढूंढने पर भी नहीं पाओगे फिर
इस तरह मुंह मोड़ कर चले जायेंगे।

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"उम्मीद है... एक दिन सब बदलेगा।"

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(विरह - वेदना)

तेरे संग को ढूंढते, व्याकुल विह्वल नैन।
दिन नहिं कटते चैन से, बीत न पाती रैन।।१।।

बातें अपने प्रेम की, रह रह आतीं याद।
विरह वेदना में पड़ा, उर में जगा विषाद।।२।।

बारिश की बूंदें गिरें, करतीं मन को सर्द।
केवल हिय ही जानता, कितना होता दर्द।।३।।

नैन मूंद बैठूं कभी, होता चित्त गंभीर।
अंदर अंदर ही घुटे, नहीं बहे अब नीर।।४।।

प्रेम की कोरी कल्पना, नहीं प्रेम का अंश।
प्रेम की बातें अब लगें, ज्यों हो कोई दंश।५।।

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19 JUN AT 23:16

टूटे हुए दिल को फिर से संभाल पाना,
कितना मुश्किल होता है ये पल बिताना।

फोन बजता ही रहा घंटो उसके यहां,
न वह उठाया गया, न फिर हाल जाना।

सबसे नहीं बातें किया करो अपनी,
कोई पूछे भी तो बस हँस कर टाल जाना।

जिंदगी के सारे सितम चुपचाप सहता है,
बड़ा ही कठिन है जीने का सवाल जाना।

मसरूफ़ जिंदगी का इतना फलसफा है,
आता नहीं अब मुझे भी कोई ख्याल जाना।

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18 JUN AT 22:37

"सब कुछ सापेक्ष है।"

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बने हुए सारे अफसाने खत्म हुए,
टूट-टूट कर सब दीवाने खत्म हुए।

रफ्ता-रफ्ता दफ्न हो गए सब अरमां,
मिलने के फिर सभी बहाने खत्म हुए।

लगी उजड़ने खिली बहारें मौसम की,
वक्त आ गया सफ़र सुहाने खत्म हुए।

नई सदी ने बसा लिए हैं शहर नए,
बसे हुए कितने शामियाने खत्म हुए।

मसरूफ जिंदगी ने तोड़े रिश्ते नाते,
एक-एक कर दोस्त पुराने खत्म हुए।

बड़ी अकड़ थी, नहीं किसी की सुनते थे,
खबर मिली है आज फलाने खत्म हुए।

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सब कुछ मिल गया है मुहब्बत के फसाने में,
बस उसकी चिट्ठी की कमी है मेरे कुतुबखाने में।

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किसी को दूसरा मौका यहां कुदरत नहीं देती।
गम तो सैकड़ों देती है, पर कुर्रत नहीं देती।

जिओ जितनी मिली है जिंदगी खुल कर के तुम यारों,
जब भी मौत आती है कोई मोहलत नहीं देती।

कड़ी मेहनत से मिलती है बुलंदी आसमानों सी,
एक दो रात की मेहनत कभी शौहरत नहीं देती।

बड़ा पाकीज रिश्ता है, दुनिया में मुहब्बत का,
ये रूह को पाक करती है कोई तोहमत नहीं देती।

उसकी इक झलक को था आतुर ये जहां सारा,
नज़र आई तो जाना बात क्यों हैरत नहीं देती।

सदा ईमान से 'भानू' कमाओ, धन औ' दौलत तुम,
बिना ईमान की दौलत कभी सल्वत नहीं देती।

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