ख़ुद को मेरी
प्रिय सखी
कहती है वो,
महफ़िल में
मेरा नाम लेने से
गुरेज करती हैं वो,
मुझे अपने से
कमतर समझती है वो।
या जाने मेरी लोकप्रियता से
डरती है वो।
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💫 रंग-रंग में उलझती ..
दिलो-दिमाग की उथल-पुथल 💫
ख़ुद को मेरी
प्रिय सखी
कहती है वो,
महफ़िल में
मेरा नाम लेने से
गुरेज करती हैं वो,
मुझे अपने से
कमतर समझती है वो।
या जाने मेरी लोकप्रियता से
डरती है वो।
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सजा के मेंहदी
मेरे नाम का,
प्रण लिया है
मेरे नाम का,
खुद ख़्याल रखूंगी
मैं, मेरे नाम का।-
शैव भी मैं
वैष्णव भी मैं
मैं शाक्त से अलहदा नहीं,
कोई नहीं भिन्नता मुझमें
मैं तुझसे
तू मुझसे अलहदा नहीं।-
अक्षय तृतीया पे सबको
एक अक्षय पात्र मिले
जो दे
वो दुनिया को
उसी से पात्र भरा रहे।-
रंगों से खेलने वालों के
खून से खेला गया है
क्या ये किसी धर्म में
जायज़ लिखा गया है?-
ज़ुल्म ओ सितम करने दो उसे यारों
होंगे जब और ज़ुल्म ओ सितम
मस्त शायरी निकलेगी
दम दमा दम-
ग़म तो मिलते हैं हर रोज़
कि शायरी गुम है,
लोग तो मिलते हैं हर रोज़,
कि हम गुम है।-
रोज़ डे पर
रोज़ को
रोज़ सा
सजाया गया,
कांटो संग
रोज़ डे पर
रोज़ को
विदा किया गया।-