कभी अमावस का कभी ईद का रूप
एक ही है परम पिता परमेश्वर और अनेक हैं उसके रूप-
Morning 🌞
किस उम्मीद से लगाएं सीढ़ियां हम फिर से
चांद हमारी छत से अब तक निकल चुका होगा-
आज सारे कवि पूर्णिमा वाले चाँद के पीछे पड़े है...
और मै तन्हां हो कर अपने चाँद को याद कर रहा हूं...
#क्या_साहेब-
प्रीत चाँद ने फिर दिखायी है।
निशा पूनम की जो आयी है।
क्षणभर तककर मैंने भी फिर,
रीत यह प्रीत की निभायी है।-
ये दग़ाबाज़ चालबाज़ तुम ही हो न
ओढ़कर सफ़ेद लिबास तुम ही हो न
आ गए हो इक रात के शहंशाह बनके
चस्मक से आज कुल कहकशाँ चमके
मैं मगर आऊंगी न झांसे में तुम्हारे आज
नींदें चुराने वाले जालसाज़ तुम ही हो न
महीना दर महीना भेस बदल आ जाते हो
फैला अपना रूप मन मेरा मोह ले जाते हो
इस दफ़ा कर दिए हैं सब झरोखे बंद मैने
आँखों से मन में उतरते बहरूपिए तुम ही हो न
चाँदनी तो आ गई है तुम्हारे बेहकावे में ही
चकोर ने भी कर लिया शीतलताई पर यकीं
मैंने तो मगर देखी हैं ऐसी झूठी पूनम कई
फिर घटकर खो जाने वाले महताब तुम ही हो न-
उस मुखड़े को देख के लजा जाता है,
जब वो सांवरा, सज-धज कर गोपियों संग रास रचाता है-