आराम और सुकून से भरे त्यौहार जैसी थी
या यूं कह लो कि वो पूरे इतवार जैसी थी-
A Tribute to LEGEND
'ग़ज़लों का जादूगर', 'रेख़्ता का ताजदार' गया
एक और 'लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का जानकार' गया
शायरी, नज़्में, ग़ज़लें उन्होंने पढ़ीं थी कुछ ऐसे
के उनका इक-इक अल्फ़ाज़ दिल के आर पार गया
बढ़ जाती थी रौनक-ए-महफिल जिनके होने से
उनके साथ ही साथ वो पूरा "दौर-ए-शानदार" गया— % &-
कोई मुसव्विर होता तो फक़त तेरी सूरत ही बना पाता
कलमकार हूं, तो पहले रिश्ते की रूहानियत लिखूंगा-
देखो! बीत गई अब वो चंद दिनों की बंदीशे
चलो आओ, अब हम तुम हर दिन इश्क़ करते हैं-
कुछ चीज़ें इसलिए भी ख़ास होती हैं क्योंकि
इनके पीछे कोई वज़ह नहीं होती
बल्कि इनकी वज़ह से कुछ चीजें होती है।
जैसे वो गुलाब का फूल...-
'ज़िंदा' तो वो है , जो सदा 'सफ़र' में रहते है
'मंज़िल' तो मेरी नज़र में 'मौत' का दूसरा नाम है-
आज फ़िर,
आज फ़िर हमें उठने में देरी हो गई
क्या करें??
तेरे ख़्वाब हमें ख़्वाब लगते ही नहीं कभी।-
आंखें अक्सर अपनी, वो बंद रखता था
जैसे कोई राज़ गहरा,,, दबाया हो उसने-
थी ख़ता निगाहों ने की,, तो इनके भरोसे ही रहें बैठे
और हमने दिल की बातें कभी,, जुबां पे नहीं रक्खी
रास्ते में रहेंगे तो कभी न कभी हम मिल ही जाएंगे
ये सोच कर मैंने इस सफ़र में मंजिलें ही नहीं रक्खी-