माता का मातृत्व और पिता का पितृत्व और कुछ दे पाये या नहीं पर आपके कंधे पर जिम्मेदारियों का बोज नहीं आने देंगे
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माँ और ममता दो कोमल शब्द
जिनके सहारे हर औरत छल ली जाती है
क्या संतान सिर्फ औरत कि जिम्मेदारी है
पुरूष का पुरूषार्थ क्या सिर्फ गर्भाधान तक सीमित है
अगर नहीं
तो पिता और पितृत्व भी मातृत्व के समान हैं
समान रूप से जिम्मेदार ।-
पितृत्व
संगेमरमर सी शक्सियत पाई थी उसने
जिनसे भी मिला उन्ही हाथों ने तराशा था उसे
किसी ने मूरत की शक्लो-सूरत दे दी
सीढियों पर मज़ार की किसी ने रक्खा था उसे
लोग आते रहे उसे देखने को मीलों चलकर
दाम भी मुकर्रर किया गया देखने का उसे
लोग पत्थर भी कहते रहे देखते भी रहे
वो पैदा भी पत्थर ही हुआ और आखिरी तक पत्थर ही रहा
न वो पिघला कभी न कोई बदलाव ही मिला उसे
सुबह की किरणों ने चमक दी थी उसे हर सुबह
चाँद की रौशनी ने नहलाया था उसे
एक मज़ार किसी पीर फकीरे की थी शायद
कितनी ही बार शक्सियतों ने सिर झुकाया था उसे।-
बतलाता नहीं, जताता नहीं !!
सबसे छुपाकर करता है जो प्रेम आपको,
फ़िक्र आपकी होती है उसे भी !!
हां देखा है ,
प्रेम का एक रूप मैंने ऐसा भी ,
जो बयां नहीं होता आंखों से!!
हां, पितृ प्रेम होता है ऐसा ही!!
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"सफेद और क्रीम रंग के दो कुर्ते"
पिता से विरासत में मिले, मुझे
कई पैबंद थे उन पर,,,,,, पर कोई द़ाग नहीं था
मैंने अपने बच्चों को दिए, रंगीन कपड़े
हर खेल खेलने और जीतने का तरिका
पिता ने विरासत में दिया,,, मुझेे
हमेशा हारते रहे, मुझसे, अपनी ख़ुशी से हर खेल में
मैंने अपने बच्चों को दिए, केवल खिलौने
"अगले महीने जरूर तेरी साईकिल ला दुंगा, बेटा"
सब्र और आशा, ये आजीवन साथी
पिता से विरासत में मिले मुझे
अपने बच्चों की हर मांग होते ही पूरी की,, मैंने
पिता ने मुझे जीवन के हर रंग में जीना सिखाया
मैंने अपने बच्चों को स्याह रंग से बचाया
आज जब पीछे मुडकर देखता हूँ,,,,
तो पिता को साथ पाता हूँ
और, आगे देखने पर...
बच्चों को बहुत दूर,,,, दूर दौड़ता हुआ.....
पिता वो भी थे, पिता मैं भी,,, पर शायद.... !!!
कुछ कमी रह गई मेरे पितृत्व में ......॥-
बेटे, तुम भगवान न बनना...!
घर में कुछ और बाहर कुछ भी...?
ऐसा कोई काम न करना,
बेटे, तुम भगवान न बनना।।
यदि कोई सज्जन पीड़ित हो,
जड़ित हो चुका, पर जीवित हो।
कोई निर्बल करुण स्वरों में,
नारायण को ढूँढ रहा हो।
उस हित भाव समर्पण के हों,
आजीवन ऐसे ही जीना,
हे पुत्र...! मात्र 'इंसान' ही बनना।
घर में कुछ और बाहर कुछ भी...?
ऐसा कोई काम न करना,
बेटे, तुम भगवान न बनना।।-
🌺 पितृत्व 🌺
ख़र्चे कम नहीं थे मेरे,
उसे रोम रोम सजाने में।
बहुमुल्य वक्त लगा दिये,
उसको काबिल बनाने में।।
बड़ी मसकत किया था मैंने,
हे! प्रभु उसे पाने में।
पसीने छूट गये थे मेरे,
सबकी चाह पूराने में।।
मैं एक कसर न छोड़ा,
जिसकी भूख मिटाने में।
वो मुझे यूँ छोड़ गया,
रंगरेलियां मनाने में।।
रात दिन कर मदद किया,
जिसका कस्ती बनाने में।
वहीं आज लगा है पीछे,
मेरा कस्ती डुबाने में।।
ख़र्चे कम नहीं थे मेरे,
उसे रोम रोम सजाने में।
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एक शाषक पिता स्वरूप होता है
परन्तु एक पिता शाषक के जैसा
नही हो सकता..-