अभिलाषी ...   (©अभिलाषी...)
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Joined 27 October 2017


Joined 27 October 2017

खुलती नींद की सुबह हो तुम,
दोपहर की छोटी झपकी हो,
शाम की गरम चाय हो,
रात की लंबी बात हो,
एक आदत बन कर
अब भी साथ हो तुम,
सोचता रहता हूं जो,
बस वही बात हो तुम,

-



कोई खयाल तो होगा बेख़याली में
तेरा इंतजार हर ग़म और खुशहाली में।

मै दे न सका तुझे मलाल के अलावा
दिन गुजर जाता है वक्त ए बेहाली में।

मै कोई तो रहा होगा अपना या पराया
कोई मिलता नहीं इस कदर प्याली में।

मै क्या हूं और क्यों रहा अब तक किसी का
नाजायज दिल था मेरा बस तेरी यारी में।

कोई कितना महरूम रहे रिश्तों से अपने
साथ किसका मिला तुझे मां की क्यारी में।

हरदम ही मेरा दम घुटता रहाँ
इन बेकार की दुनियादारी में।

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कोई खयाल होगा तो बेख़याली में
तेरा इंतजार हर ग़म और खुशहाली में

मै दे न सका तुझे मलाल के अलावा
दिन गुजरता नहीं वक्त ए बेहाली में।

मै कोई तो रहा होगा अपना या पराया
कोई मिलता नहीं इस कदर प्याली में।

मै क्या हूं और क्यों रहा अब तक किसी का
नाजायज दिल था मेरा बस तेरी यारी में।

कोई कितना महरूम रहे रिश्तों से अपने
साथ किसका मिला तुझे मां की क्यारी में।

हरदम ही मेरा दम घुटता रहाँ
इन बेकार की दुनियादारी में।

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कोई बिजली कही तो गिरी होगी
कभी कोई जमीन भी हिली होगी
क्यू रोता है रात दिन के अंधेरों में
दिल की आवाज भी तूने सुनी होगी

मेरे मयखाने में मुकद्दर नहीं मिलता
मेरी शराब कभी किसी ने तो पी होगी

जिंदगी में गमज़दा भी रहे तो कैसे
किसीने मेरी हसीं सूरत भी देखी होगी

मै तो जागता रहा रातों में अक्सर
ख्वाबों को किसी की नजर लगी होगी

कोई किस कदर किसी का रहे अभिलाषी
मिलेगा वो मुझे जिसे मेरी जरूरत होगी।

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हम बहुत सम्भल के रहते है
बोलने करने में सहमे रहते है।

क्या न लग जाए तुझको बुरा,
ये हम समझ के रहते है।

मीरी कोशिश मेरे खुदा से भी
हम इतने डरे नहीं रहते है।

मै अकेला रह जाऊं तब वहां
ख्वाबों में भी तेरे असर रहते है।

लाख सांसे ले कर जिंदा रहे
बाकी सांसे तेरे नाम कर लेते है।

मै लौंडा नहीं आज कल का
मेरे बंदे मेरी कसम लेते है।

प्यार, इश्क और मुहब्बत बहुत हुई,
अब जिंदगी इबादत सी जी लेते है।

सुन न, समझ तो जरा मुझे अपना
क्यों हमें वो नाकाफ़ी समझ लेते है।

मै कौन था,अब क्या हो गया हूं,
अक्सर वो मुझे हल्के में ले लेते है।

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23 OCT 2024 AT 8:10

आओ न...
मेरे धमनियों में,
रक्त बन हृदय की शिराओं में,
मस्तिष्क तंत्रिकाओं के संदेश
सी प्रसारित,
अंग अंग में अवतरित,
तुम मुझ निर्जीव शरीर में,
एक जीव की प्रतिदिप्ती बन
प्रज्वलित हो जाओ न,
आओ न...

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7 OCT 2024 AT 17:36

तुझसे मिल के फिर तेरे मिलने तक
हर पल तुझसे मिला करता हूं
आ गले मिल लगा सीने से मुझे
ख्वाहिश ये तेरे नाम करता हूं।

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5 OCT 2024 AT 7:46

क्या क्या लील गए तुम, सब कुछ निगल गए तुम
कितने वर्ष बीत गए पर, हमे अल्पायु कर खुद
दीर्घायु हो गए तुम...
बाबा के हाथों के झोलों को,अम्मा की खनकती चूड़ियों को
मुन्ने के क्रिकेट बेंट को, उसके बस्ते से सिलेट को
न जाने तुमने क्या क्या खा लिया, फिर भी तू दुनिया को भा गया।
पुस्तको पे चढ़े कागजी जिल्द को, बिटिया की मिट्टी की गुड़िया को
बहु के माथे की बिंदिया को, पूजा से अपने ही भगवान को
तू तो पूरा का पूरा लील गया, फिर भी दुनिया को तू मिल गया
कहाँ कहाँ नही हो तुम, हमारे दुश्मन ही हो तुम
कभी हसीना के हसीन बालो में, कभी पुराने गुलदानों में
अक्सर नज़र बचाते रहते हो, बताओ तो और क्या चाहते हो?
दादा की पुरानी कुर्सी वो सड़ गई, कुर्सी वो तुझे पा कर अकड़ गई
योग भी होता था कभी, मिट्टी पे लेट कर
योग होता अब योगा मेट पर
तुझको बनाया तो हमने है, तू हमे खत्म करने पे तुला है
तेरी चुनौती भी खुलमखुल्ला है

बचा सको तो बचालो अपने घर और धरती को
तेरी सर्जरी करवाने वाला हर शक्श पहले आग में जला है।
मानव के हाथों में ही, उसका अपना भला है
पहली कोशिश जिसने की, उसे प्रतिफल भी मिला है
मुश्किल कुछ नही यहां पर, क्या मानव हमेशा से
प्लास्टिक की गोद मे पला है।

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26 SEP 2024 AT 17:21

चल मैं एक पहाड़ बन जाता हूं
शांत अटल सा विशाल धरा पर
तुम एक बहती नदी बन जाना
मुझ पर कई पेड़ो को उपजाना
आकाश को चूमते वृक्षों के बीच
तुम अठखेलियां करते झरते जाना
नदी से पहाड़ का रिश्ता हमेशा रहा
पहाड़ों ने नदियों को रास्ता दिया
पहाड़ कभी प्यासा नही रहा।
न ही उसने अपनी प्यास दिखाई।

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16 SEP 2024 AT 22:25

बहुत कोशिश की कि न मिले तुमसे
बहुत जतन किया की न याद करे तुम्हे
जाने कौन सी बात है पास लाती है तुम्हारे।

तुम हरियाली हो, तुम हो खुशनुमा मौसम
तुम बर्फीला पहाड़ हो, या झील कोई
हर वक्त जो पास बुलाती हो मुझे।

समंदर सी हंसी लेकर तुम
लहरों की सी मुस्कुराहटें
क्यू मुझ से शर्माती हो।

मेरा क्या वजूद तुझ सा
मेरी क्या मजाल छूने की
क्यू सोने सा भाव बढ़ाती हो।

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