अभिलाषी ...   (©अभिलाषी...)
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Joined 27 October 2017


Joined 27 October 2017

जिंदगी बहुत बदल गई है 
इक तो जिंदा रहने की कवायद
और तेरी कमी भी हों गई हैं। 

मैं मसले मलाल के झेलता हूं 
जीते जी खुदखुशी हो गई हैं। 

हंसना हंसाना भूल गया हूं 
वक्त, आसूंओं की नदी हो गई हैं। 

नज़रे टिकी रहती है उन लम्हों में 
पलकें अब पथरीली हो गई हैं।

बैठा रहता हूं अंधेरे कमरे में देर तक
अंधेरों से अपनी दोस्ती हो गई हैं।

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नज़र में बिठाना ही चाहते रहे
तुम्हे पर बिठा न सके।

एक पल को भी जो गुजरा
वो लम्हा भुला ना सके।

हमारा कौन है बाप है ना मां
है कोई, हमे गले लगा सके।

शराब में डूब जाऊं तो मुनासिब हो
शरीफ है वो, हमे ज़हर पिला ना सके।

एक ही सफर था आखरी भी है
जाते जाते कोई हाथ हिला ना सके।

यूं तो हम होते नही रुसवां
हो कोई जो हमे मना सके।

जीलो जिंदगी अपने अंदाज से
रिश्ता हो कोई तो बुला सके।

मुझे तुम नज़र से गिरा तो चुके हो
अब कभी भी नजर उठा न सकोगे।

जाने क्यू मुझे अंदाज ए उम्र हो चला है
दो कदम ही सहीं पर मिला ना सकोगे।

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सब कुछ तो मिटा दिया है
तेरा अब छूटा है कुछ तो बस
सामान उम्मीद इंतजार प्यार का
एक अरसे से आखरी लम्हे तक
बस बेसबब, बेइंतहां और बेवजह।
इल्म भी है नतीजा ए इश्क का
खुदा से भगवान होते आसमान का
और फिर मेरे डोलते ईमान का
है इल्म मुझे बदनसीब हिसाब का
कुछ मुकम्मल हो न हो कभी
एक इनायत तो हो
तुझसे मुक्कमिल मुलाकात का
एक पुराने एल्बम ने कहा है
फोटो नही यहां किसी जस्बात का
तेरी आंखों से तो उतर ही जाऊंगा
रंग नही मैं मसकारे खाक का
आशिकी में उलजलूल सब होता है
मैं भीं तो बंदा हुं शायर-ए-ख्वाब का।

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मौत ने नही जिंदगी ने अलग किया 
हमने जीते जी मौत को जी लिया 

कोई आहट है न कोई बहाना होगा 
बहेंगे जो आसूं उसमे नहाना होगा।

एक आवाज आएगी कभी अंदर से 
खामोशी से सब दबाना होगा।  

वो चांद कभी अकेला नहीं हो सकता 
अब उसे साथ साथ निहारना होगा। 

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मिलते रहें है हम बच्चो के लिए
मिलते रहेगें बच्चों के बहाने ही सही
बस नहीं रहेगा वो,
जो कभी रहाँ भी नही
तेरे मेरे बीच का वो रिश्ता
जो हमने कभी समझा ही नहीं।
मैं ही मैं रहूं तो क्या रहूं?
हमने अपना समय खोया है
बस और क्या कहूं
बस कहने को ही नही होता
सुनना और सुनी बात को
समझना भी पड़ता है
और फिर समझ कर ही
बोलना और करना पड़ता है
बस यहीं तो रिश्ता होता है।
और बस वही रिश्ता होता है।

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दिल का वो सवाल
और दिल का वो बवाल
रह गया दिल ही में
नही पूंछा वो सब कुछ
जो पूंछना था और
पूछा था नाम उसका
जो नही पूछता है तुम्हे
और पूछा था कोई काम
जो मैं कर पाऊं तुम्हारे लिए।
और भूल गया था खुद को
जो मिला था मैं तुमसे
तुमसे नही पूछा
कब तक रहोगी
मेरे दिल में।

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कि मिलोगे कब?
और जब मिलोगे
तो कितना मिलोगे
मिलोगे तो मिल भी पाओगे ?
या फिर मुलाकात
सवालों की होगी या
फिर अधूरी सी होगी
वो शाम
तुमसे नही पूछा ।

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फसल चाहिए खेतो से
पानी चाहो गर नदियों से
जंगल मांगो जमीनों से तो
तुम्हे बादल होना होगा।

पहाड़ों पर घूम आना
धूप में छतरी बन
चादर इस धरती का
तुम्हे बादल होना होगा।

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मेरी कोशिशों की नदी पे
कोई बांध बना था शायद
उम्मीदें डूबी थी बहुत
बस्तियां हुई थी बेरस्ता
और फिर बस रहा था शहर
जहरीली सांसों के लिए

उसके खेतो से निकली थी
सड़क एक नई नई
ढाबा उसी किसान का था
जिसने खोया था खेत
राहगीरों की थकान के लिए

पानी भर भर कर पी लिया
जाने कितने जतन कर लिया
दूरियां सारी घट जाती थी
घाट पे थकान मिट जाती थी
मटका भरा था खानदान के लिए।

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