नज़र में बिठाना ही चाहते रहे
तुम्हे पर बिठा न सके।
एक पल को भी जो गुजरा
वो लम्हा भुला ना सके।
हमारा कौन है बाप है ना मां
है कोई, हमे गले लगा सके।
शराब में डूब जाऊं तो मुनासिब हो
शरीफ है वो, हमे ज़हर पिला ना सके।
एक ही सफर था आखरी भी है
जाते जाते कोई हाथ हिला ना सके।
यूं तो हम होते नही रुसवां
हो कोई जो हमे मना सके।
जीलो जिंदगी अपने अंदाज से
रिश्ता हो कोई तो बुला सके।
मुझे तुम नज़र से गिरा तो चुके हो
अब कभी भी नजर उठा न सकोगे।
जाने क्यू मुझे अंदाज ए उम्र हो चला है
दो कदम ही सहीं पर मिला ना सकोगे।
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