मानव के रुप रंग पर मरते हो हरदम
कभी प्रकृति के निस्वार्थ प्रेम का भी आनंद लिया करो...-
priyanshi Bhatt
(©प्रियांशी भट्ट)
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मानवतावादी दृष्टिकोण, राष्ट्र प्रेमी, ईश्वर पर विश्वास
क्रोध से बोध की यात्रा में जाने वाल... read more
क्रोध से बोध की यात्रा में जाने वाल... read more
Joined 9 July 2021
12 JUL 2024 AT 20:50
6 JUL 2024 AT 12:09
इतराता हूं खुद में
मैं पंछी हूं मतवाला
काट दो पंख तुम चाहे मेरे
मैं कैद नहीं होने वाला ।
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1 JUL 2024 AT 17:19
दुनिया में नहीं खुद में ही नूर है।
वक्त चाहे कैसा भी हो खुद से दूर गुरूर हो...-
30 JUN 2024 AT 8:39
वो लड़ जाते हैं तुफानों से
तुम कम ना समझना उनको
जो हौसला नहीं हारते
वो विपरीत परिस्थितियों से मात्र लड़ कर ही
जीत जाते हैं ।
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28 JUN 2024 AT 18:27
ढलती जब-जब शाम याद आता है कि
एक शाम खुद को भी
यूं ही ढलते देखना होगा
कुछ यूं ही संसार के
भवसागर से पार उतरना होगा।-
28 JUN 2024 AT 18:14
तो पतझड़ बीत जाने पर सावन आता है,
जब फूल खिलते हैं ।
तब भंवरें गुनगुनाते हैं,
जब फूल खिलते हैं।
प्रकृति नवयौवना हो जाती है,
जब फूल खिलते हैं।
मानव मन मुस्कुरा उठता है,
जब फूल खिलते हैं।
प्रकृति ईश्वर चरणों अपना प्रेम रख देती है।-
27 JUN 2024 AT 7:13
उन्मुक्त पंछी बन उड़ना चाहती हूं
मैं क्रांति नहीं पर संसार से अपनी मुक्ति चाहती हूं।-