QUOTES ON #पिता

#पिता quotes

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21 JUN 2020 AT 8:23

कड़ी धूप में हैं बिल्कुल, ठंडी छाँव की तरह
शहर सी ये ज़िंदगी, हैं वालिद गाँव की तरह

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19 AUG 2019 AT 13:04

#बोझ

वृद्ध पिता
ढो रहा है
अपना बोझ
स्वयं ही ,

भारी जो
हो गया है
संतान के लिए
उसका बुढ़ापा... ..!!

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2 SEP 2017 AT 9:00

ये जो मुस्कान लिए बैठें हैं
पिताजी की पहचान लिए बैठें हैं।

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17 JUN 2018 AT 12:27

जो भी मिले हैं हर गम को छुपाते देखा है
पिता की फटी कॉलर को भी मुस्कुराते देखा है।

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12 MAY 2019 AT 13:51

पिता कहते थे
जीवन से जुड़ा पहला आदमी माँ की तरह सुन्दर होता है !

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16 SEP 2021 AT 9:05

होता बालक निर्दोष, निश्चिन्त, सबकुछ सरल समझता हूँ!
कभी जिद्दी, कभी अड़ियल टट्टू, कभी आँख का तारा बनता हूँ!

होता बेटा अपने माँ बाप का उत्तरजीवी सूचक से,
कभी राम, कभी श्रवण, कभी परसुराम सा बन जाता हूँ!

होता प्रेमी किसी प्रेयसी का गढ़ता प्रेम की परिभाषा,
कभी कृष्ण तो कभी शिव तो कभी कामदेव मैं बन जाता हूँ!

होता पति तो बन के अर्धनारीश्वर परिवार पोषक,
कभी मोम, कभी कठोर, कभी मासूमियत से निर्वाह करता हूँ!

होता बाप तो फस जाता दो पीढ़ियों के संतुलन में,
कभी चुप, कभी समझाइश, कभी आंख मूंद के चलता हूँ!

होता पितामह तो बन जाता हूँ छांव बरगद की मैं,
कभी लाचार, कभी अधिकार, कभी नसीहत से बातें करता हूँ!

होता पुरुष जो इस धरा पर, के महत्व पर गौर नहीं,
खग की भाषा खग ही जाने, सब पुरुषों को समर्पित करता हूँ!
_राज सोनी

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15 APR 2019 AT 18:00

एक प्रेमी की तरह बीच बाज़ार में,
बाहें फैला कर ज़ोर से चिल्ला कर
मोहब्बत का इज़हार करके,
अपने पिता से गले मिलना चाहता हूँ

शायद मोहब्बत की नई दिशा परिभाषित कर सकूँ।

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8 JUN 2017 AT 19:38

मौरंग, सीमेंट, रेत में फंसे सरियों के फंदे हैं
मेरा घर कोई इमारत नही पिताजी जी के कंधे हैं।

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जगत गी सघळा स्यूं
फुटरी फोटू
बाबौसा थांकै साघे
आवै है ।

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12 APR 2020 AT 21:48

सफाई में एक दिन मेरे बचपन का पुराना बस्ता मिला,
उसे देखते ही ऐसा लगा कि जैसे मेरा बचपन खड़ा हो मेरे सामने वो बस्ता टाँगे,
स्कूल यूनिफॉर्म पहने, गले में थर्मस लटकाये खिलखिला रहा हूँ मैं!
थोड़ी देर तो उसे हाथ में ले के देखता रहा, फिर अनायास ही चेहरे पे मुस्कान आ गई,
दिल छलाँगें मार रहा था, जैसे एक बच्चा कूदता है धरा पे खिलौने के लिए,
धड़कने इतनी तेज़ की आवाज़ अंदर ही अंदर मेरे कानों तक आ रही थी, धक-धक-धक-धक..
धूल इतना कि बस्ते का असली रंग दिखाई नहीं पड़ता,
लेकिन मुझे बहोत अच्छे तरीके से याद था उसका लाल रंग,
मुझे याद था कि दुकान पे मैंने पापा से जिद्द कर खरीदवाया था वो बस्ता!
मैं चाहता तो तेज़ तेज़ पटक कर सारी धूल निकाल देता,
लेकिन मेरी हिम्मत नहीं हुई उसे पटकने की, ऐसा लगा मानो कंही चोट न लग जाये उसे!
कीमत तो उसकी मामूली ही थी लेकिन अनमोल था मेरे लिए,
क्यूंकि अपने रेनकोट के पैसे से खरीदा था पापा ने,
उन्होंने खुद भीगना चुना मेरी एक छोटी जिद्द के आगे,
माँ का प्यार दिख जाता है बचपन से ही लेकिन पिता का प्यार बड़े होने पर ही समझ आता है,
बड़ा ही गहरा होता है प्रेम पिता का!

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