म्हारी मरुधर री कलम   (म्हारी मरुधर री कलम)
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Joined 31 March 2018


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मै घणा मूंगा तौ कोनी ,
पण हस मीठा बौळौ तौ ,
समझौ थां का हि हां ॥

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आज कि दुनियां मतलब पर चाळै ,
औरु मै भरौसा पर चाळ बा वाळौ मिनख हूं !!

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हेत , प्रेत अर सेहत कि
घणी बांतां मानै म्हारौ गांव !
सूरज - चंदो , तारा , टीबा
री गोद में रम्तौ म्हारौ गांव !!

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रगड़ रगड़ , जाग जाग कर दिज्यों ,
हाथ साफ , मन साफ , विचार साफ
फेरू इस्यो ळिखो ,
कि कागज पर आखर चमक उठे ,
अर बांच बा के मन मेंं एक ही भाव उठे ,
कि कतौइ दौरो हूंज्या हूँ ,
पर घर हूँ बारै नि ज्याउं ॥

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इ पर और बि पर दोष मत काडो ,
कियां निवड आं , बौ गेळौ काडो ,

गाँव , ढ़ाणी , गुवाड आयौडा परदेसी मेहमान ,
पेहळी नुहाऔ बानें तातौ पानी कर जुजमान ,

धोक , आशीष , ळाड कौड
पछे घणा कर ळीज्यों ,
पेह्ळी घर घर हांचौ जाप्तौ कर ळीज्यों ,

दिखै किमें बूखार का घुन ,
गासा , उकाळी कि नी दैनी
बिनें ओही है केह्नी ,
सीदौ डाक्टर कौ गेळौ चुन ,

गाँव , ढानी अर गुवाड है आपणी ,
इ महामारी हूं है सघळा नें बचानी ॥

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मान्यौ ,
थांकी बात ने थे सेरा रेह र
' मॉर्डन '
हुगा ,
म्हारी भाषा रेय गी
गाँव- गुवाड़ी , ढाणी- चुगा ।

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देख भाई , मे सॉस कै साघै नीं
देशी घी कै साघै रोटी खा बा ळा मिनख हा !!

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कोइ दिल्ल ळ्यार बैठ्या है ,
कोइ दिमाग ळ्यार बैठ्या है ,
म्हारै उं मतलब घणु हि है ,
ज्णेइ
म्हारे उं रिश्तो बना र बैठ्या है ॥

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जिन्दगी छोटी है , पण इती भी कोनी
कि थै थां कि , नित काली करळ्यौ !!

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कि दिल्ल मै दबी आ बांतां नै ,
कागद पर उतारी रांतां नै ,

कि काळ आखरी बात हूवैळी ,
प्रीत थारळी छूट ज्यावैळी.......

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