वक़्त, उम्र का पता ना चला
मन तो वोहि रहा, मुझे मेरा पता ना चला,
वो दौड़ना-कूदना अब कहाँ होता है
बैठे-बैठे ही बस देखना, सपनों का जहाँ होता है,
क़भी मौसम गर्म क़भी सर्द होता है
कल जो जख़्म बने थे,आज उनमें दर्द होता है,
प्यार-मुहब्बत का पता ना चला
यादें तो बोही रहीं, वो उसके वादे का पता ना चला,
बाल काले थे सफ़ेद हो गये
पाओं की गति धीमीं, यूँ लगे रस्ते तेज हो गये,
बदले सब कैसे अपने, पता ना चला
कब हुई सुबह, कब शाम
कब आया अंधेरा पता ना चला
"मन तो वोहि रहा, मुझे मेरा पता ना चला..."
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