QUOTES ON #परिधि

#परिधि quotes

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9 APR 2021 AT 22:37

सूर्य का क्षितिज पर जब होता आवरण,
करता जब पृथ्वी की धुरी पर परिभ्रमण,
तब समर्पित सुमन सी स्त्री,
आठों पहर एक पग पर,
सजा हृदय प्रणय से,
मुखरित मुस्कान होठो पर,
अपने दैनिक क्रिया कलाप हेतु,
चल देती नापने अपने परिधि की ओर
बाँधकर गीले बालों का जूड़ा....

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3 JAN 2020 AT 17:30

तुम प्रेम की परिधि
मैं वेदना का व्यास हूँ।
जितनी दूर हो मुझसे
उतना तुम्हारे पास हूँ।

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31 MAY 2023 AT 22:42

तुम कभी नहीं हुए मुझ से दूर
यह मेघशून्य आकाश गवाह है
इस बात का

तुम बसे हो मुझ में
गहरे बहुत गहरे कहीं
जीवन-रस की तरह घुले हो
मेरी आत्मा के रस में
तुम कभी नहीं हुए मुझ से दूर...........


तुम हो यहीं आस-पास
जैसे रहते हो घर में
यह एक अकेला कमरा
भरा है तुम्हारे होने के अहसास से
सिर्फ़ देह का होना ही
सब कुछ कहाँ होता है !
तुम कभी नहीं हुए मुझ से दूर...........


तुम्हारी यादों की परिधि से घिरी मैं
पर तेरी मधुर स्मृति में ,
सुख का होता है भास !
वो मिलन-क्षणों की स्मृति ले ,
मुझमें आ स्वप्न संजोते है ।
तब तब तेरी छवि को निहार,
मन तुममें विचरण करता है
तुम कभी नहीं हुए मुझ से दूर...........

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17 APR 2021 AT 13:24

मैं मौन चुन लूँगी प्रिय...!

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9 MAY 2021 AT 22:55

तेरे रिश्तों की परिधि में
मैं विकल्प नही प्राथमिकता हूँ
ये जान कर
मेरे अधरों पर
मुस्कान के पान से रची
लालिमा उभर आती है

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18 JUN 2020 AT 21:28

काश! मैं भी उस वृत्त की तरह उसकी ,
परिधि (पत्नी) होती ।
लेकिन किस्मत ने ,
त्रिज्या (प्रेमिका) बना‌ रहने दिया ।।

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26 JUN 2017 AT 10:11

सखा........

मैं धीर धरा सी थी
तुम विस्तृत नभ थे
प्रेम तुम्हारा अकिंचन
अग्नि सा ये भाव मेरा
जल सा जलजल ये परिधि
पवन सा ये व्यक्तित्व तुम्हारा
कैसे तोडूं अपने भीष्म वंचना को
सखा लो आज लिख दी एक पाती मैंने
पंचतत्वों को मैंने दी विदाई एक कागज़ में लपेटकर

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4 JUL 2020 AT 23:55

हमारे दरमियाँ
एक अनदेखी
परिधि रेखा
है ,,
जो अंत में
वापस ले
आयेगी तुम्हें
मेरी ओर ,,,,

परिधि :- वृत की रेखा

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22 APR 2018 AT 5:02

तुम मेरे जीवन के वृत्त की परिधि से बाहर हो
मगर आज भी केंद्र हो तुम

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13 MAY 2018 AT 8:35

बाहों के घेरे में बाँधकर वो सुरक्षित परिधि होती गई,
बच्चों की फिक्र में माँ दिन ब दिन आधी होती गई..

उधर कैंटीन में पिज्जा बर्गर अच्छे लगने लगे थे अब
इधर ना जाने कैसे माँ की बनाई दाल सादी होती गई..

तिनका तिनका जोड़ जिसने घर बाँधकर रखा कभी
वही अपनी उम्र के अंतिम पड़ाव पर अकेली होती गई..

जिसकी मीठी लोरियाँ सुनकर ही नींद आती थी कभी,
कम बोलने वाली वही माँ बुढापे में बड़बोली होती गई..

बाहों के घेरे में बाँधकर वो सुरक्षित परिधि होती गई,
बच्चों की फिक्र में माँ दिन ब दिन आधी होती गई..

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