सोचते हैं कि कब उनसे मुलाकात हो
रूबरू फिर आपस में जज्बात हो
मुकद्दर मेरा फिर मुस्कुराने लगे
कुछ तो बेहतर मेरे हालात हो-
क्या है ज़िन्दगी....
ये ज़िन्दगी हमारी है!
ये कितनी प्यारी है?
ये कितनी हमारी है?
संस्कारों की बेड़ियां,
आदर्शों की नीतियां,
परम्पराओं की गुलामियां,
ज़िन्दगी की लाचारी है,
ये कितनी प्यारी है ?
ये कितनी हमारी है?
दुसरों का ही सोचना,
इच्छाओं का गला घोंटना,
जीवन को ही कोसना,
सांसें तो हमारी है,
हुकूमत ही जारी है,
ये कितनी प्यारी है?
ये कितनी हमारी है?
मजबूरियों की महामारी है,
ये ज़िन्दगी हमारी है!
ये कितनी प्यारी है?
ये कितनी हमारी है?-
हर "घर" जब सजेगा
"दुल्हन" सा लगेगा...................…०
"रीत" का मुस्काना
"दीप" को जलाना………………………०
"जगमगाते" "दीप"
"नवज्योति" जलाना.......................०
"हंसी" "खुशी" से
"खुशियां" मनाना..........................०
बड़ों का "पैर" छूना
"आशीर्वाद" लेना...........................०
"आज" दीवाली
"अच्छे" से मनाना..........................०
लड्डू भगवान को
फिर सबको खिलाना........................०-
मैं अपनी बेटी को विरासत में
कोई बोझ...कोई मजबूरी नहीं दूँगी
मेरी परवरिश पर
प्रश्न उठता है तो उठे...पर..
मैं उसे दूँगी सपने देखने की
आज़ादी और
सपने पूरे करने का जुनून....
उड़ने को नीला आसमान
और कुलांचे भरने को
मखमली घास में लिपटी धरती..
हाँ मैं उसे विरासत में दूँगी
सिर्फ़...'मुट्ठी भर प्रेम'-
मां ने ख़ास तौर पर
तुम्हारी पसंद के
काजू और मूंगफली वाले
तिल के लड्डू बनाए थे,
दावत के बाद की
बतकही के लिए
बालकनी में दो कुर्सियां और
दो-कप धूप का प्रबंध किए थे।
भैया से कह कर,
ख़ास तुम्हारी पसंदीदा
सफ़ेद - गुलाबी पतंगें
बाज़ार से मंगवाएं थे
तुम क्यों नहीं आई सखी..?
हम तो रिश्तों के मांझो की
मजबूती का विशेष ध्यान रखे थे...!-
सोचती हूँ अब मैं अपने लिये जीना शुरू करूँ
कुछ अनाथ बच्चों को अपना नाम दूँ स्कूल भेजूँ
और अपने नाम से पौधे लगाऊँ
-
कलावा (रोली)
वो धागा जो बंधा हैं
मेरी हाथों की कलाई में
वो थामी हो तुम हाथ मेरा
जब रहता हूँ जुदाई में
जो कहती हो तुम रहती हो
हर वक़्त इसी खुदायी में
तुम फेरती हो जब लपेटती हो
उस धागे को कलाई में-
सोचती हूं,
अक्सर ये,
बैठकर अकेले में....
क्यों विदा सिर्फ मेरी ही हुई,
विवाह पर भी,
तलाक़ पर भी,
मायके से भी,
ससुराल से भी,
ये कैसी परम्परा है....
सोचती हूं,
अक्सर ये,
बैठकर अकेले में....-
"संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय बनाम शिक्षक फिरोज खान विवाद" बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय....
(अनुशीर्षक देखिये)-