mushtaque mohammad   (Peeru)
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Joined 16 March 2018


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Joined 16 March 2018
7 JUL 2024 AT 0:39

वफ़ा की उम्मीद बेमानी है, नुमाइश के इस दौर में
इश्क अब इश्क सा भला कौन करता है

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7 JUL 2024 AT 0:32

हां ये सच है कि, गुनाहों से नहीं हूं पाक मैं
क्या ये कम है कि फकत तेरा हूं*मुश्ताक*मैं

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29 JUN 2024 AT 0:39

हां ये सच है कि औरों की तरह नुमाइश नहीं करते
अरे हम इश्क करते हैं, तमाशा नहीं करते

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25 JUN 2024 AT 23:31

ज़रा सा गर्दिशों ने क्या घेरा,सबके मिजाज बदल गए
कल तलक तो ठीक थे, ताज्जुब है आज बदल गए

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7 MAR 2024 AT 0:15

दिखावे की हमदर्दी है ये ज़माने की मियां
गर्दिशों में साथ फकत तन्हाई देती है

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20 JAN 2024 AT 23:19

हमें गर्दिशों में देखकर किनारा करने वालों
हम वो नहीं है जो टूटकर बिखर जाते हैं
कभी तारीख भी पढ़ो शिद्दत से हमारी
आशिके -रसूल तो मुश्किलों में निखर जाते हैं

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5 JAN 2024 AT 0:33

कभी टूटते, कभी बिखरते ख्वाबों के साथ हूं मैं
हां ये सच है कि अब भी ना-उम्मीद नहीं हूं

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17 SEP 2023 AT 1:06

लिखने का कोई मतलब नहीं अब हमारे लिए
फकत अल्फाज़ पढ़ते हो तुम जज़्बात नहीं

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15 SEP 2023 AT 23:05

रब जाने कि वो ऐतबार के काबिल है या नहीं
दिल को मगर उसपर ऐतबार बहुत है
देखा नहीं है हमने उसे अब भी रूबरू
क्या करें कि हमें उससे प्यार बहुत है

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14 SEP 2023 AT 0:36

मेरी तमाम दलीलें, नाकाफी नज़र आईं मियां
जब उसने कह दिया कि, पहचानते नहीं
कैसे होता इंसाफ भला, तुम ही कहो अदालत में
जज ने कहा कि हम वफ़ा को सबूत मानते नहीं

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