सर झुके जब भी तो उसके आगे हीं
ज़िन्दगी जिसने दी है
कि वो आपके सर को और कहीं पे
कभी झुकने नहीं देगा ।-
जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता।
गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिंधुसुता प्रिय कंता॥
पालन सुर धरनी अद्भुत करनी मरम न जानइ कोई।
जो सहज कृपाला दीनदयाला करउ अनुग्रह सोई॥-
नग्न तन से लगाव
पुरुष का पिंड
हो सकता है,
आत्मा से प्रेम की चाहत
बदल देती है
उस पुरुष
को परमेश्वर में
जिसे पति कहां जा सकें।-
अब पूछूं तुझसे एक सवाल
इतना क्यूं खफा हो मेरे यार,
दूसरों से करते हो प्यार..
और खुद से बुरा व्यवहार!
यह कहां तक सही है मेरे परवरदिगार?-
इतना सा फर्क है जमाने और हम में,
जमाना मानव निर्मित वस्तुओं का दीवाना है,
और हमें परमेश्वर की बनाई चीजों से प्रेम है।-
जहां भी जाता हूं
तुमको ही पाता हूं
अनगिनत अनदेखा
हर रुप तुम्हारा
बस विस्मृत सा रह जाता हूं ।
शनै: शनै: बस
इतना ही समझ पाता हूं
जितना ही खोता हूं खुद को
उतना ही तुमको पाता हूं ।।
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उपहास न करें,..
बेसहाराओं की मदद करें।।
हो सके तो दूसरो के साथ वक़्त बांटकर ख़ुशी और अपना भरपूर साथ दें।।
हम अपने कर्मों से ही अपने भविष्य की रचना करते हैं।।
परमेश्वर तुम्हारे फल से तुमको कभी वंचित नही रखेगा।।-
वो कंधे कभी झुके नहीं ,जिन्होने मुझे उठाया था
वो कदम कभी रुके नहीं ,जिन्होने चलना सिखाया था
क्यों फ़िर मुझे जिम्मेदारी ज्यादा लगती हैं
मेरे पिता ने तो इन्हे जिंदगी भर चलाया था
आज भी भूल जाते है वो अपनी खुशी को
हर ख़ुशी पिता ने हम पर लुटाया था-
सौंदर्य और खुबसूरती
जब अभिभूत कर देती है
सुनहरी किरणों सी हंसी
सब कुछ विस्मृत कर देती है
कोई राग, झंकार, वाणी
जब चमत्कृत कर देती है
मैं मन ही मन नमन करता हूं
दिल से आवाज यही उठती है
ओह ! यह तो तुम्हीं हो ....-
दुर तिथे पलीकडे,
दिसते मला आजही ती.
भेटली होती जिथे मला,
पहिल्यांदा ती.
(पुर्ण कविता मथळ्यामध्ये वाचा)-