झोला उठा के उस ओर चले
हम तो परदेसी है कही और चले
एक जगह रुक जाये तो कैसे
हर डाल पर बसेरा है
काम की तलाश में आये है
हम गाँव के रहने वाले है
कोई ठौर ठिकाना हो तो कैसे
शहर शहर हम काम करे
आपदा के चलते नौकरी छुटी
चल अब परदेसी नये शहर चले-
परदेसी
गाँव से शहर आये, गाँव के लिए परदेसी हो गए
शहर ने अपनाया नही, शहर में गाँव के रह गए
परदेसियों की हालत तो उस ब्याही बेटी की तरह है
जो मायके में पराया धन है और ससुराल में पराये घर से आई है
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ओ दूर देस के परदेसी,
लौट कर आना होता है।।
(कविता अनुशीर्षक में)-
" इक जान-पहचान थी मेरी, उसे जानने से पहले
वो अंजान ज़रा वैसा ही, पसंद आता है आज भी !"-
🤣😍😈😜
परदेसियों से ना अखियां
मिलाना🥰
नोट :- इसमें कवि लोकल को बढ़ावा
देने को बोल रहा है
😜🤣😍😈😆😅-
✍️दुख दिल का नि-रज के सुनाया,
सजन परदेसी हो गया।
#परदेसी- जुदा,
It's effected from,after know everything about.-
सावन के झुले यूं ना तरसे होते,
हमारे मिलन पे बादर भी बरसे होते।
तेरी बाहों में कजरी के फुल महके होते,
परदेसी तेरे नैनों से अगर नैन मिले होते।।
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"आजकल मेरे शहर की फिज़ा बदल रही है,
परदेसियों के बहाने अपने बदल रहे हैं..."
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