लगा लिया दिल इन पत्थरों के शहर से,
यहां चारों तरफ अपने बुत लगवाने की होड़ मची है।-
मुझे कुरेदा तो इंसां के चंद निशाँ मिलेंगे
मैं बहुत से हादसों से बना इक पत्थर हूँ-
उससे बिछड़कर...सच कहूँ...
कई रात तो मैं...सोया भी नहीं...
और वो शख्स...पत्थर का निकला...
मुझसे बिछड़कर...रोया भी नहीं...-
मुझको मामूली पत्थर समझ छोड़ कर जाने वाले
वक़्त बदलेगा और हम भी संगमरमर हो जायेंगे-
बहुतों की कोशिशें नाकाम रही है नादाँ दिल मेरा पत्थर बनाने की।।
पत्थर ना बना बेशक़ पर अब ख़्वाहिश नहीं कांच दिल कहलाने की।।
-
पहना हुआ सभी ने यहाँ, एक लिबास है
पत्थर को पूजें आदमी, ये कम क्या बात है।
दुनिया सभी की हो गई, रंगीं मिज़ाज है
काबा में सिमटे काशी, ये कम क्या बात है।
वालिद जो हैं ख़ुदा का घर, मक्का है मदीना
बेटे के झेले तेवर, ये कम क्या बात है।
पलछिन ख़ुशी के लिए, तोड़े दायरे हज़ार
बेटी उतारे ज़ेवर, ये कम क्या बात है
चादर चढ़ाए कितने दीये, आरती और फूल
फिर भी मिला खुदा न, ये कम क्या बात है।
-
पुरुष रोता नहीं है, पर जब वो रोता है, रोम - रोम से रोता है। उसकी व्यथा पत्थर में दरार कर सकती है।
-