मेरे घर का पता
हो गया लापता
(पूरी कविता अनुशीर्षक में पढ़ें)-
कि मुद्दतों बाद वो टकराया एक शख्स से,
न नाम है ,ना कोई पता इश्क़ करें भी तो करें किस हक़ से
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ए वक्त,
तू इतना सिखाता है ऐसा पता होता,
तो तेरे ही स्कूल में दाखिला लिया होता ना।-
पता नहीं तो कोई बात नहीं, ख़बर हो तो बता देना
हमे आपसे मोहब्बत है, मोहब्बत हो तो बता देना-
मेरी रूह का पता मांगते मांगते आया था,
न जाने क्यों अब सिर्फ जिस्म की गलियोंमे
भटकता नजर आता है।-
दर्द से कहो मुझे अब रुलाया ना करे
मिल नहीं सकता वो तड़पाया ना करे
सिसक रहा है मेरा दिल कतरा कतरा
अब उसकी और याद दिलाया ना करे
एक बेदर्द उम्मीद थी उस से मिलने की
दोबारा उसकी आस अब लगाया ना करे
जिसने बेवजह दिल से निकाल दिया मुझे
उसको अब अपनी साँसों में बसाया ना करे
वो चाँद किसी और आसमान का हो चला
उसकी चाँदनी में अब और नहाया ना करे
पहले से पता था वो किसी और की खुश़बू है
अब उसे कोई मेरी गली में महकाया ना करे
तू तो एक मुसाफ़िर है रहगुज़र का "आरिफ़"
उसे कहो मेरे रास्तों पे ख़ुद को चलाया ना करे
"कोरे काग़ज़" और बहुत से काम आ जायेंगे
याद में उसकी अपने अल्फाज़ बहाया ना करे-
यहाँ कौन अपना कौन पराया क्या पता
किसने किसका ख़त जलाया क्या पता
मेरी बात उन तक पहुँच ही जाएगी अब
कहाँ जाएगा? कौन डाकिया? क्या पता-
अगर कोई मेरा पता पूछे,
तो बेशक अपना पता लिखना,
क्योंकि मैं तेरे दिल में रहता हूँ।-
जान लो मुझको, नाज़ करोगे मुझपर।
तकलीफ़ क्या होती है?
पता चल ही जाएगा, जब आएगी खुदपर।।-