मेरे प्यारे रंगरेज..
हमेशा चाहा की तुम्हे परिभाषित कर सकूं,
पर तुम उन कविताओं की तरह निकले,
जिन्हें पढ़ने में रास भी आया,
मन में मीठी भावों की प्रबल आंधी भी चली,
तुम्हे व्याख्यायित करना चाहा
और मैं तुममे खुद उलझती गयी,
तुम्हें लक्षणबद्ध करने की कोशिश की ,
पर कोई ना कोई पक्ष अधूरा रह गया,
तुम महाकाव्यों के नायकों से हो,
जिन्हें कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं में तो बांटती गयी,
पर शब्दों की सीमाओं में बांध ना सकी,
समय और परिस्थिति में उपन्यासों के,
पात्रों की तरह विचलित तो हुए,
पर मेरे हदय में अलग स्थान बनाते गये,
तुम नाटक के आदर्श चरित्रों की तरह
महानता के प्रतिमान गढ़ते गये,
और मैं उन प्रतिमानों में खुद को ढूढ़ती रह गयी,
तुम सफल कहानियों के किरदार की तरह,
अंत तक सुखान्त क्षणों को मेरे पर समर्पित करते रहे,
और मैं परियों की कहानी आच्छादित होती गयी
इस प्रेमोल्लास यात्रावृतांत में
तुम्हारे निश्छल नेह में रमती
और सौंदर्यबोध से आप्लावित होती रही,
ये सच है कि तुमने मेरे ख्वाबों, मेरे हौसलों को
डायरी की तरह नित्य- प्रतिपल सवारतें रहे,
तुम्हें जीकर पाया कि
मुझे अपनी परछाईयों की तरह सहेजकर,
मेरे जीवन के संस्मरण बन गये,
इतने सालों बाद फिर मैं नाकाम रही
और तूम मुझे हमेशा की तरह जीतते गये...!
✍️शिल्प✍️
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