Harikesh Pandey   (Harry Banarasiya✍️)
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Joined 15 July 2019


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4 JUL 2023 AT 18:45

सुनों,
मैं तुम्हे हर वक़्त
महसूस करता हूं
अपने आस-पास
अपने घर में,मन में,
हदय को स्पंदित
करने वाला साज हो तुम।
(कविता अनुशीर्षक में)

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1 JUL 2023 AT 7:12

पंडिताईन....❣️
तुम बादलों जैसी हो
एकदम घनघोर घटा
जब भी मिलती हो मुझसे
तुम्हारी आंखे बरस जाती है
और मैं भीग जाता हूं
गर्मी की तपन से लाल
सुर्ख जमीन पर
पहली बारिश का अहसास
होता है तुम्हारे होने से,
मैं मिट्टी कि खुश्बू सा महक जाता हूं।
तुमसे मिलकर,हां तुमसे मिलकर।

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25 JUN 2023 AT 21:04

सुनों पंडिताईन......❣️
तुम ईश्वर की रचात्मकता का
विस्तृत कोई अध्याय हो....
(रचना अनुशीर्षक में)

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21 JUN 2023 AT 21:36

मैं भरा हूँ भावों से,बहती मुझमें तुम प्रेम भाव प्रिये,
यूँ देख तुम्हारे यौवन को श्रृंगार की रस धार प्रिये,
नेत्र नयन में अश्रु हो करुणा की गंग धार प्रिये,
अधरों में लालिमा जैसे हो उस सूर्य की प्रथम धार प्रिये,
केश तुम्हारे क्या कहना काली घटा का यूँ घनघोर प्रिये,
नथ की नथुनी की यूँ चमक जैसे चाँदनी की किरण होठों पर आये प्रिये,
गर हाथ को देख ले कोई मेहंदी की रंग मे कोई छाप प्रिये,
पैरो मे पैजनिया हो खन खन करती कलोर नदी की लहर प्रिये,
रूप तुम्हारा हो जैसे "राम" की मूरत मे कोई "मीरा"का प्रेम प्रिये।।

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24 APR 2023 AT 22:12

मेरे लिए
क्या यही प्रेम हैं....
(कविता अनुशीर्षक में)

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21 APR 2023 AT 10:16

प्रेम में पड़़ा पुरुष...
शायद, समंदर जैसा कुछ हो जाता है
नीलवर्नीय, अनंतिम, अप्रतिम,
लहरों सा उछलकर गिरता हुआ
यह गिरना, गिर जाना नहीं है।
बल्कि
ऊपर से नीचे आते झूले की
किसी पालकी पर सवार,
गिरता सा, लेकिन गिरता नहीं
उठता सा, लेकिन उड़ता नहीं
आसपास की रेत पर बिछी खुशबू को,
अपने ज्वार में समेट लेने को आतुर।

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19 APR 2023 AT 19:08

सुनों पंडिताईन......❣️
मैं भरा हूँ भावों से, बहती मुझमें तुम
प्रेम भाव प्रिये
यूँ देख तुम्हारे यौवन को
श्रृंगार की रस धार प्रिये
नेत्र नयन में अश्रु हो
करुणा की गंग धार प्रिये
अधरों में लालिमा जैसे हो
उस सूर्य की प्रथम धार प्रिये
केश तुम्हारे क्या कहना
काली घटा का यूँ घनघोर प्रिये
नथ की नथुनी की यूँ चमक
जैसे चाँदनी की किरण होठों पर आये प्रिये
गर हाथ को देख ले कोई
मेहंदी की रग मे कोई छाप प्रिये
पैरो मे पैजनिया हो खन खन करती
कलोर नदी की लहर प्रिये
रूप तुम्हारा हो जैसे "राम" की मूरत मे
कोई "मीरा"का प्रेम प्रिये

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1 APR 2023 AT 20:07

यदि तुम प्रेम समझतें.....
(कविता अनुशीर्षक में)

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23 MAR 2023 AT 22:39

तुम हृदय से दूर भी हो, तुम हृदय के पास भी हो
सूर्य से प्रत्यक्ष हो तुम, स्वप्न हो आभास भी हो

तत्त्व के भी तत्त्व हो तुम, योगियों की परम आशा
भक्त का आलम्ब तुम हो, आंसुओं की मौन भाषा

ध्यान के अंतिम क्षणों के मुक्त हृदयाकाश भी हो
तुम हृदय से दूर भी हो, तुम हृदय के पास भी हो

सूर्य से प्रत्यक्ष हो तुम, स्वप्न हो आभास भी हो
कोई कहता है यहीं हो , कोई कहता है नहीं हो

कोई अचरज से भरा फिर पूछता है ,"तुम वही हो?"
"पा लिया मैंने उसे" अनुभूति का उल्लास भी हो।

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23 MAR 2023 AT 22:31

पढ़ता चाहता हूँ अनवरत,तुम्हारी पनीली आँखों में बसी वो लंबी सी रूमानी कविता
जो ख्वाबों को बुनती है और जैसे
वक़्त को रोक कर उन ख्वाबों को सजा देती है मेरे सामने

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