मैं अँधेरे में दिया जलाता रहा
बात-बात पे सबको मनाता रहा
कुछ रिश्ते नाजुक थे
हाथ से फिसलते गये
मैं फिर भी रेत का घर बनाता रहा
ताउम्र चाहा कि कोई रूठे ना
रिश्ता कभी किसी से टूटे ना
पर रंजिश ऐसी हुई की
धीरे-धीरे मैं खुद ही दूरी बनाता रहा-
💛💛💛💛
नए जमाने का पुराने ख्यालात वाला लड़का हूँ साहब।
नहीं आता मु... read more
हम तो हर चीज चुनने वालो में
अब ये हुनर भी नही रहा मुझमें
जाने क्या हादसा हुआ होगा
कुछ भी ज़िन्दा नही रहा मुझमें।।-
तेरी सहज चितवन भी
आज सुरमई हो गयी है
सूरज की रोशनी से चांदनी
अमृतमयी हो गयी है
तुम्हारे रुखसार की तारीफ़
जितनी भी करूँ कम हैं,
चेहरे की चांदनी बालों की घटाओं में
खो गयी है , पूनम की चांदनी और
अमावस की रात का ज़रिया हो तुम
कैसे बयां करूँ क्या नजरिया हो तुम
तुम्हें देख कर कितनों की
मति खो गयी है,
बाल जो बिखरे गालों पर तेरे
मानो रात पूनम में हो कुछ बादल घनेरे ,
बिखरी हुई लटों का चादर बनाता
रात सारी मैं उनकी छाँव में बिताता
आज लगता है मेहरबानी रब की
हम पर हो गयी है ,
तेरी चितवन जो सुरमई हो गयी है
अक्ल कितनों आज खो गयी , अक्ल .....
तेरी चितवन जो सुरमई हो गयी है |-
जीवन की सच्चाई जब हक़ीक़त के रूप में ज़िम्मेदारियों, परिवार के नए रिश्तों, नए माहौल में सामंजस्य बैठाने के रूप में लड़की या लड़के के सामने आती हैं तो उन्हेंं यह चुनौती लगने लगती है।
आज के लोगों में शायद धैर्य की कमी, अपने रिश्ते को परिपक्व होने के लिए देने वाले समय की कमी के कारण तुरंत ही किसी निश्चय पर पहुँच जाना कि शादी बर्बादी है, कतई सही नहीं है।-
आज कल तो जिस्म का ही खेल है
जिस्म दिखा कर खुद को आधुनिक बताते है।-
एक करीबी स्नेहपूर्ण और सुरक्षात्मक स्वीकृति ?
या उस शिलीमुख की भांति उस प्रसून को, पाकर मिलने वाली खुशी ?
उस चकोर की भांति अपने पंडिताईन को,
अपने अक्षि से गले लगाना है आलिंगन ।
अपने हदयेश्वर को प्रमोद से
भरे नेत्रों को उसके आँसू से मिलाना है आलिंगन ।
यह केवल दो लोगो का मेल नहीं अपने अंदरूनी उठ रही दीप्ति को
सामने रहे मनुष्य में समेट लेना है आलिंगन ।
एक स्त्री का एक पुरुष से
एक रूपसी का एक मनुज से मिलना है आलिंगन ।
एक अनिवार्यता का एक उम्मीद से
एक रसिक का वियोगी से मिलना है आलिंगन-
बीज-ए-महब्बत
तेरे दिल-ए-रेगिस्तां में भी
ज़ाया न हो सका।
मेरी अश़्कों की बरसातों से कभी
झुलसाया न हो सका।
बेवफाई के ज़फाओं ने
कोशिश तो की मग़र,
ग़ुल ए इश्क गुलज़ार में कभी
मुर्झाया न हो सका।-
मैनें कभी भी तुम्हारे उरोज को नही छुआ,
ना ही कभी अभद्रता की,
(रचना अनुशीर्षक में)-