पुरानी कहावत
ढ़ाई आखर प्रेम के पढ़े सो पंडित होए....!
आज की कहावत
ढ़ाई आखर प्रेम के पढ़े सो तन्हा रोए.....!-
मेरे प्यारे रंगरेज..
हमेशा चाहा की तुम्हे परिभाषित कर सकूं,
पर तुम उन कविताओं की तरह निकले,
जिन्हें पढ़ने में रास भी आया,
मन में मीठी भावों की प्रबल आंधी भी चली,
तुम्हे व्याख्यायित करना चाहा
और मैं तुममे खुद उलझती गयी,
तुम्हें लक्षणबद्ध करने की कोशिश की ,
पर कोई ना कोई पक्ष अधूरा रह गया,
तुम महाकाव्यों के नायकों से हो,
जिन्हें कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं में तो बांटती गयी,
पर शब्दों की सीमाओं में बांध ना सकी,
समय और परिस्थिति में उपन्यासों के,
पात्रों की तरह विचलित तो हुए,
पर मेरे हदय में अलग स्थान बनाते गये,
तुम नाटक के आदर्श चरित्रों की तरह
महानता के प्रतिमान गढ़ते गये,
और मैं उन प्रतिमानों में खुद को ढूढ़ती रह गयी,
तुम सफल कहानियों के किरदार की तरह,
अंत तक सुखान्त क्षणों को मेरे पर समर्पित करते रहे,
और मैं परियों की कहानी आच्छादित होती गयी
इस प्रेमोल्लास यात्रावृतांत में
तुम्हारे निश्छल नेह में रमती
और सौंदर्यबोध से आप्लावित होती रही,
ये सच है कि तुमने मेरे ख्वाबों, मेरे हौसलों को
डायरी की तरह नित्य- प्रतिपल सवारतें रहे,
तुम्हें जीकर पाया कि
मुझे अपनी परछाईयों की तरह सहेजकर,
मेरे जीवन के संस्मरण बन गये,
इतने सालों बाद फिर मैं नाकाम रही
और तूम मुझे हमेशा की तरह जीतते गये...!
✍️शिल्प✍️-
कुछ इस कदर मगरुर हो गए है कि
खुद को फिलोसफर बता रहे है
हर्फ में इनकी गुरुरियत भरी हुई है
जो दूसरे को दास और अपने को
संस्कृत के पंडित बता रहें है।-
मैं झुक नहीं सकता,
मैं शौर्य का अखंड भाग हूं,
जला दे जो दुश्मनों की रूह तक,
"मैं वही ( पंडित )की औलाद हूं,-
समाचारों में सुर्खियाँ
और नेताओं की
संवेदनाएँ........भी..
मुस्लिम और दलितों
के लिए आरक्षित हैं।
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राजस्थानी पंडित--भाया.. खै तौ सुट्टौ छोड़ दूँ ,खै तौ बींदणी छोड़ दूँ बापकड़ी कौ प्याज लसण कोन छूटै।
😁😁😁😁😁😁😁😁😁
यूपी पंडित--चल भाई.. चार अंडन कौ मस्त आमलेट बनाय दै बढ़िया सौ..और सुन.. सारे ! प्याज लैसुन मत डार दियो..हम पंडित हैं प्याज लैसुन ते हाथू नाय लगावें।
😂😂😂😂😂😂😂😂😂
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अर्से बाद मिले हो, न दुआ, ना सलाम,
हमें भूल गए हो या तहज़ीब अपनी।
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पथ प्रदर्शक थे हमारे,
लक्ष्य हमको दिखा दिया
दुर्गम-पथरीली राहों पे,
हिम्मत से चलना सिखा दिया..
“अंत्योदय" का संकल्प लेने वाले और
अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति के
विकास को समर्पित रहे
पंडित दीनदयाल उपाध्याय
जी की पुण्यतिथि पर उन्हें कोटि-कोटि नमन।
एकात्म मानववाद व
अंत्योदय के प्रणेता को कोटि कोटि नमन🙏-
सुनों प्रिये....❣️
जब कभी सिमटोगी मेरे इन बाहो मे आ कर,
मोहब्बत की दास्तां हम नही हमारि धड़कने सुनाएंगी...-