अद्भुत रुप "शिव" जी का
जब ब्याहने को जाते हैं,
"गौरा" जी को....
(अनुशीर्षक में पढ़े)
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लिखता हूँ किसी की याद में दो पंक्तियाँ
इक दूजे से ज़रा अलग हैं ये दो पंक्तियाँ
दिल टूट गया उसका जिसे चाहता था मैं
कुछ ना कहा मैंने, कहीं बस दो पंक्तियाँ
मनाना चाहा पर मानी नहीं वो "आरिफ़"
हाथ जोड़े उसने, कहीं सिर्फ़ दो पंक्तियाँ
बहुत नाज़ुक है वो शीशे की तरह "आरिफ़"
बिखर जायेगी, अगर कह दीं दो पंक्तियाँ
सोचता तो मैं बहुत हूँ उसकी याद में मगर
जब वो पास आई, तो याद आयीं दो पंक्तियाँ
मैं भी "कोरा कागज़" बना हूँ उसी के लिए
श़ायद कभी लिख ही दे, वो दो पंक्तियाँ।-
शुरू करु मै फिर से वही कहानी
मेरी नसीहत रहेगी वही पुरानी
समझा लूं खुद को या उसको
मै तो हूँ ही सबके लिए बेगानी
चुभती है हर बात मुझे है सीने में दर्द
चलो ये भी हैं मजूंर क्योकी हूं अंजानी
हैं हजारों डायरी, मगर कोरे पन्ने की कहानी
ना बचपना है ना कैसे बीत रही जवानी
पसंद नापसंद क्यो बनूँ ना बनूँ हिस्सा
बस याद आयेगा तुम्हे तुम्हारा बीता किस्सा
हर तलक था बचपना और नादानींया
कुछ समझ ने रोक रखी थी करने से मनमानी
चलो एक तलक उम्र को ढलने दो
हम भी लिखते पलो को और बखुबी
मेरे पास भी कोई छोड़ देता अपनी निशानी
बीते लम्हों से क्या याराना क्या रवानी
होने दो नया तो बताऊंगी अपनी जुबानी
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आपकी बातें...
आपकी यादें...
आपका ख्याल...
आपका एहसास...
आपकी नाराज़गी..
आपकी फ़िक्र...
और
कागज़ों पर आपके अल्फाज़ भी
मुझसे यही कहते हैं...
आपकी नज़दीकियों में न सही
मगर इन फ़ासलों में हम ही रहते हैं..
कहाँ रहता है सूनापन
इन चंद अल्फाज़ों में...
आप और आपका ख्याल
हर पल इनमें सफ़र किया करते हैं...
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हम भारतीयों की शक्ति है हिन्दी,
एक सहज अभिव्यक्ति है हिन्दी!
गंगा की आन है हिन्दी,
भारत की बान है हिन्दी,
हिमालय की शान है हिन्दी,
तभी तो हमारी पहचान है हिन्दी!-
#सच्चा_दोस्त
आपकी #भलाई के लिए आपको
#छोड़ सकता है पर आपका
#बुरा कभी नहीं #सोच सकता है।
#मित्रता-दिवस
#स्वरचित #हिन्दी #पंक्तियाँ
#हेमलता_वर्मा_साधारण-
आखर आखर में तुम्हे लिखा
आखर अब तो जड़ हुए
तुम से मिलने को खातिर
ये तो है हठ किये
ढाई आखर प्रेम को ढूंढने
पंक्तियाँ छोड़ कर ये सब भी उड्डयन हुए
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कुछ उलझी सी है शख्सियत मेरी,
और ना ही सुलझाने की परवाह रखती हूं।
बस एहसासों के दरिया में शब्दों की कश्ती सी,
कुछ पंक्तियां बहा लिया करती हूं..✍️-
क्यू रहता है दिल ना जाने बेगानो की आस में....
अपने तो मुकम्मल है हमारे घरों में ,
और रहते हैं हम,
दुनिया में उनकी तलाश में.....-
हम उस पहर को जहर कहते हैं
जिस पहर में तसव्वुर तेरा न हो।
इसे दुआ कहिए या कहिए बद्दुआ
कही और रिश्ता मंजूर तेरा न हो।
हो तो हो सारे जहां का नशा मुझे
पर दोबारा कभी फितूर तेरा न हो।
मैं वादे नही मगर कोशिश करूंगा
इतना कर सकूं ख्वाब चूर तेरा न हो।
सरहद पुकारती है मुझ सिपाही को
दुआ करना कमजोर सिंदूर तेरा न हो।-