ये आलम ये नज़ारे कहने
लगे लफ्ज़ सुनहरे अनकहे
छूने लगे दिल को सभी इनका
दिल को भाना लाज़मी है
निगाहों में ठहरा रहा वो मंज़र
देर तलक जो दिलकश हंसी
लबों पर मुस्कुराता रहा
बनकर कहानी जैसे कोई अनकही
मुद्दत से थी दबी जैसे कोई
ख्वाहिश दिल में मेरे कहीं
ज़िंदगी का राब्ता उन तमन्नाओं
से मेरा आज भी है......
~Pratima~
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𝓦𝓲𝓼𝓱 𝓶𝓮 𝓸𝓷 9𝓽𝓱 𝓸𝓯 𝓙𝓪𝓷... read more
जो कह न सके ज़ुबाँ से हम, लफ्ज़ों में कशमकश कुछ रही तो होगी
ख़ामोशियों में कुछ तुम्हारी कुछ हमारी नज़र ने हर बात कही तो होगी-
थीं दरम्याँ कभी ख़ामोशियाँ हमारे वो ख़ामोशियाँ जाने किधर गयीं
छुपा रखी थीं बातें मुद्दत से जो हमने सभी लफ़्ज़ों में जब ढल गयीं
ये ज़िन्दगी मुस्कराने लगी मोहब्बत भी जब ये गुल-ए-गुलज़ार हुई
उसकी ज़ुबाँ पर रखीं मीठी बातें मिश्री सी मेरे ज़ेहन में आ घुल गयीं
ढल गयी हर तन्हा शाम ज़िन्दगी जैसे हमारी ये मुक्कमल हो गयी
दिल की ज़मीं पर देखो साथी के कैसे खुशनुमां सहर खिल गयी
हर बात तुम्हारी रूह को छू गयी नूर-ए-हया निग़ाहों में उतर गयी
जहाँ भर की शोखियाँ जब तुम्हारी बातों में आकर हैं मिल गयीं
निग़ाहें भी तुमसे करने लगी बातें तमाम कैसी ये अदा निखर गयी
मिली निग़ाहें तुमसे तो इन निग़ाहों की ज़ुबाँ ही देखो बदल गयी ।
~pratima~
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तेरे दिल से जब से ओ साथी मेरे दिल की राहें जो जुड़ने लगीं
इश्क़-ए-साज़ में हर हसरत मेरी के हर ख़्वाहिशें महकने लगीं
खिली खिली तमन्ना-ए फ़िज़ा हुई महकी सी ज़िन्दगी लगने लगी
तेरे रंग-ए-एहसासों से मेरे बेरंग दिल की दुनिया जो सँवरने लगी
गुलज़ार है दिल-ए-दुनिया में तेरी ही ख़ुश्बूओं से हर शै हमदम
हुई रौशन मेरी हर हसरत तुमसे के मेरी हसरतें ही चहकने लगीं
लगे आबाद ये ख़्वाहिशों का शहर हर गली यूँ कुछ सजने लगी
बदली बदली हर रुत लगे के दिल की दुनिया जैसे बदलने लगी
न छूटेगा कभी अब तेरा दामन मेरे इन हाथों से सुन ले ओ साथी
तेरी मोहब्बत में बारहां मेरी ज़िन्दगी मुझसे अब यही कहने लगी ।
~pratima~
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ये गुज़रते लम्हों की आहट ये ढलती उदास शामों की गुज़ारिश
धड़कनें भी गुम सी हुईं लम्हें इंतज़ार के करें जब आज़माइश
वक़्त जैसे कर रहा हर घड़ी साँसों से मेरी इम्तिहान-ए-साज़िश
क्या कहूँ के सब्र की इंतेहा क्या है के क्या है इश्क़-ए-आराइश
जागती आँखों में हैं ख़्वाब कई सुनो इन ख़्वाबों की सिफ़ारिश
गुज़र जायें न यूँ ही ये लम्हें हो न जाये गुम ये हसरतों की बारिश
समेटूँ कैसे तु बता दिले-ए-दामन में बिखरी साँसों की जुम्बिश
टूटी सी लगने लगीं उम्मीदें सभी हुई दिले नाकाम हर कोशिश
है तमन्ना यही के रूक लूँ ये लम्हें अभी है इन लम्हों की ख़्वाहिश
करे नज़रंदाज़ भी कैसे करते जो ये लम्हें इंतज़ार के फ़रमाइश ।
~pratima~
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रफ़्ता रफ़्ता साँझ ढली भुजने लगी साँसें ज़रा सी एक आहट पर
उदास धूप थी दिल की दहलीज़ पर ठहरी रही जाने किस बात पर
बेज़ुबाँ से दिल के हर दर्द लगे सिसकती रही हसरतें बस एक याद पर
यूँ भींगी रहीं पलकें हमारी अश्कों से भिगोतीं रहीं यादें वही रात भर
न हासिल कोई मंज़िल मुझे न मिली सफ़र-ए-हयात में कभी राहत भर
ये कैसा मुक़ाम हासिल हमें के यकीं होता नहीं अपने ही जज़्बात पर
बिखर गए क्यों ख़्वाब सभी क्यों टूटे हम इस क़दर तेरी उस बात पर
ख़ाक हो चली दिल-ए-तमन्ना सभी रोता है दिल अब हर ख़्यालात पर
कहने लगी ख़ामोशियाँ यही ठहरेगा न अब कोई पल भर को साथ भर
बेबसी का आलम ये कैसा होती नहीं रहमत-ए-ख़ुदा बिगड़े हालात पर ।-
वो निगाह-ए-नज़ाकत वो दिल में तेरा एहसास-ए-असर रह जायेगा
ख़बर कहाँ थी ये हमें के दिल-ए-आशियाना कुछ यूँ सँवर जायेगा
न रहेगा ख़्याल कोई के लबों पर मेरे नाम तुम्हारा इस क़दर आयेगा
के तुम्हारी तरह बेपरवाह सा इश्क़ भला यहाँ कौन मुझे कर पायेगा
ये ख़ुशबूएँ इश्क़ की के ये नशा-ए-उल्फ़त ज़र्रा ज़र्रा बिखर जायेगा
जहाँ तक भी जाये निगाह तुम्हारी तुम्हें ये आलम हँसीं नज़र आएगा
गुज़र करता है इक इंतज़ार निग़ाहों में के कभी इश्क़ दीदार पायेगा
मुमकिन कहाँ के मेरी निग़ाहों में बाद तुम्हारे अब कोई उतर पायेगा
है बेपरवाह सा इश्क़ हमारा के ये ज़माना हमें ही गुनाहगार पायेगा
ज़माने की फ़िकर कहाँ हमें के ये इश्क़ अब और भी निखर जायेगा ।
~pratima~
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बिखर गए ख़्वाब सभी के फ़िर ख़्वाबों को सँजोया नहीं जाता
बन गए अश्क ज़ुबाँ के हाल-ए-दिल लफ़्ज़ों में कहा नहीं जाता
मुस्कराते लबों पर थाम रखी है मुद्दत से एक ख़ामोशी जो हमने
कैसे कहूँ के बिन तेरे दर्द-ए-जुदाई का ग़म अब सहा नहीं जाता
दिल का हर ज़ख्म रिसने लगा हो जैसे अश्कों में कतरा कतरा
बुझने लगी ये साँसे इस क़दर के बिन तेरे हमसे रहा नहीं जाता
लगने लगे बिखरे से रँग इन फ़िज़ाओं के उदास हुए हर मंज़र
यूँ टुकड़ों में हमसे तुम बिन क्या कहूँ के अब जिया नहीं जाता
हुए हैं ज़ार-ज़ार दिल के टुकड़े इस तरह के ताज़ा हुए हर ज़ख्म
होते हैं कुछ ज़ख्म ऐसे भी दिल के के हर ज़ख्म सिया नहीं जाता ।
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मुस्कराने लगी ज़िन्दगी हर लम्हा के लगे हर ख़ुशी भी अब कम
हुई आबाद हर दिले ख़्वाहिश जिससे मेरी वो हर शौहरत हो तुम
एक तेरी ही आरज़ू दिल को एक तेरी ही ख़्वाहिश अब हर दम
खिल उठी हर दिल-ए-तमन्ना जिससे वो मेरी मोहब्बत हो तुम
न दिल इख़्तियार में न ख़्याल के मिले राहे मोहब्बत में कोई ग़म
हर ख़ुशी तुमसे ही अब साथी के इस दिल की हर हसरत हो तुम
ज़िन्दगी चाहे दुआओं में घुले हर रंग तेरी ही मोहब्बत का सनम
ज़िन्दगी जिससे गुलज़ार हुई लब पर ठहरी वो इबादत हो तुम
मिले हर लम्हा इन निग़ाहों को जो राहत तेरी इक दीद से हमदम
रफ़्ता रफ़्ता दिल-ए-जान बन गए जो मेरी वो हँसीं आदत हो तुम ।
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रखे इन आँखों ने ख़्वाब कई के मन में उठती उमंगें कुछ बेशुमार हैं
निकल पड़े पाने जो मंज़िलें तो आज़माती उम्मीदें भी ये हर बार हैं
हर कदम बढ़े सम्भलकर के ख़्वाहिशों की भी अब यही दरकार है
माना के मंज़िल की सीढ़ियाँ हैं दूर अभी मगर कोशिशें बरकरार हैं
टूटेंगें न अब कहीं न बिखरेंगें किसी ठेस से ठाना हमने इस बार है
के पाने को मंज़िलें हर कदम हो चले अब दिल के हौसलें तैयार हैं
ख़्वाहिशें हो मुक्कमल हर मेरी दिल की उम्मीदें न ज़ार-ज़ार हों
तोड़ दें जो हौसलें हमारे जो कतरा कतरा वो हार हमें नागवार है
हो कितनी ही राहें जटिल कितने ही बिछे मगर शूल उस पार हों
कर जायेंगें पार सीढ़ियाँ मंज़िलों की हमको भी खुद पर एतबार है।
~pratima~
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