प्रतिमा 🍁   (𝓟𝓻𝓪𝓽𝓲𝓶𝓪....)
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Joined 24 May 2019


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YESTERDAY AT 12:51

हैं ग़र साथ हम तो होंगीं हासिल हर मंज़िल और रहगुज़र हमें
राहे इश्क़ में दिलबर तुम कदम से कदम मिला कर तो देखो

ठहरती हर बात इश्क़ के साज़ पर, है हर लफ्ज़ तुम्हारे लिए
है इल्तिज़ा के तुम भी उल्फ़त-ए-ग़ज़ल गुनगुना कर तो देखो

उतर आयें आज चाँद-तारे सभी ख़्वाहिशों के दिल की ज़मीँ पर
हो रौशन शहर-ए-तमन्ना तुम उल्फ़ते चराग जलाकर तो देखो

हो मुकम्मल ख़्वाब सभी के महकने लगे दिले एहसास सभी
है गुज़ारिश यही के तुम मुझे अपनी धड़कन बना कर तो देखो

गुज़रे हैं न जाने कितने पल सिर्फ़ तेरे ही तसव्वुर में हमदम
थामकर उल्फ़त-ए-दामन कोई लम्हा तुम सजा कर तो देखो

सिमट आयेंगें शरारे मोहब्बत के आज बेपनाह तेरे आगोश में
है दिले ख़्वाहिश यही मुझे अपनी बांहों में समा कर तो देखो।
~pratima~

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ग़ुम कहीं चैन ओ सुकून अब बस ग़म-ए-हयात है
दूर उजाले ज़िन्दगी के करीब ख़ामोश लम्बी रात है

बड़ी अजीब उदासी मुस्तकील सी हरपल साथ है
जाने किस तलाश में ज़िन्दगी फिरती दिन रात है

क्यों तक़दीर में बस मिली उलझनों की सौगात है
उम्मीदें सारी टूट गयीं हो गयीं ख़ामोश हर बात है

है ग़म की इंतेहा शायद हर फ़िज़ा लगती उदास है
फिसल रही रेत सी ख़्वाहिइशें मुकरते से जज़्बात हैं

क्यों ख़फ़ा ख़फ़ा मुक़ददर ए ज़िन्दगी तेरे सवालात हैं
आसाँ नहीं पाना मंज़िल कितने मुश्किल ए हालात हैं।
~pratima~

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जो राज़ ए मोहब्बत मैने छुपा रखा था मुद्द्त से मेरी आँखों में
देखा है अंदाज़-ए-मोहब्बत वही मैने आज तुम्हारी निगाहों में

करती हैं सरगोशियाँ मोहब्बत तेरी अब आकर मेरे ख़्वाबों में
मिले मुझे मेरे सवालों के जवाब तुम्हारे आज ख़ामोश जवाबों में

है मुमकिन मिले मेरी हर मंज़िल, ए हमसफ़र सिर्फ़ तेरी राहों में
मिले जो तुमसे लगा जैसे मिल गयी हर जन्नत तुम्हारी बांहों में

खिल उठी मेरी हर दिल-ए-तमन्ना गूँजने लगीं सदायें फ़िज़ाओं में
के है कितना एहसास-ए-तहफ्फुज़ ए हमनवाँ तुम्हारी वफ़ाओं में

घुलने लगी जो तेरी मेरी धड़कनों की आहटें शाम की पनाहों में
महकने सी लगी मोहब्बत की ख़ुशबूएँ देखो आज इन हवाओं में

न ग़म अब कोई बाकी रहा दिया जो साथी मैने हाथ तुम्हारे हाथों में
मिली ख़ुशियां मुझको तमाम के कैसे कहूँ मैं तुमसे चंद अल्फाज़ों में

मुस्कराने लगी ज़िन्दगी और चहकने लगी हसरतें ढलती शामों में
हुआ जो मोहब्बत का ज़िक्र ज़ाहिर कुछ मेरी कुछ तुम्हारी बातों में

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बीत जाते हैं दिन मगर ये मन पीछे कहीं उलझ सा जाता है
जिसे हम वापस ला नहीं सकते मन उसी के लिए तरसाता है

खोया खोया सा मन ख़्यालों की इक अलग दुनिया सजाता है
गुज़र जाते हैं लम्हें कई उन लम्हों का दिल से हसीन नाता है

बचपन का वो अल्हड़ दौर मन को चुपके से बहला सा जाता है
होठों पर लाकर मद्धम हँसी मन से आँखमिचौली कर जाता है

गूँजती हैं ख़ामोशियाँ बस गुज़रा वक़्त रह रह कर तड़पाता है
जहाँ देखो जिधर देखो बस अतीत का ही मंज़र नज़र आता है

बेज़ुबाँ सी यादें, ख़ामोश मन जैसे बीता कल फ़िर पास आता है
मिल जाते हज़ार सुकून मगर उलझे मन को कहाँ रास आता है

यादों की सिलवटों में जैसे ग़ुम कोई किस्सा कहीं हो जाता है
अतीत में डूबा मन बीती यादों से निकल कभी कहाँ पाता है।

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न रहता दिल इख़्तियार में न रहता कोई बाकी फ़िर ख़्याल
मिल जाती फ़िर आँखों को राहतें हो जाये जो दीदार ए यार

मुस्कराने लगे तब ज़िन्दगी होने लगे जब जवाँ आरज़ूएँ हज़ार
मिल जाती हैं मंज़िलें हयात होता महबूब पर बेइंतहा एतबार

गुनगुनाने लगती ग़ज़ल जैसे ज़िन्दगी उठती ख्वाहिशेँ बेशुमार
गुज़रे इक उम्र महबूब की बांहों में हो जाये तमन्ना हर गुलज़ार

सजते पलकों पर ख़्वाब हसीन मचलती दिले तमन्ना हर बार
नहीं मिलता करार एक पल को रहता हर पल दिल बेकरार

रहती ज़माने की फ़िक्र कहाँ होता निगाहों से ही बस इकरार
हर एहसास जुदा जुदा सा लगे हर हसरत लगे दिले आबशार

निभाते हर कसम और वादे वफ़ा शिद्द्त से जो करते हैं प्यार
होती रौशन ए ज़िन्दगी उनकी करते इक दूजे पर जाँ निसार

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ग़र हों भी जाएँ गलतफहमियाँ कभी फासलें दरमियाँ आने न पायें
थामे रहना हाथ राहे ज़िन्दगी में, वे हाथ कभी हमसे छूट न जाएँ

है दिले ख़्वाहिश रहे बरकरार मुस्कराहटें अपनों के चेहरों पर सदा
साथ चलते रहना रिश्तों में जबतक मायूसी के बादल छट न जायें

मिले जो मिन्नतों से हमें बड़ी शिद्द्त से निभाते हम हर रिश्ता खास
करना है अब हिफाज़त कभी कोई अपना हमसे कहीं रूठ न जाए

बीते जो हर पल साथ ख़ुशी ख़ुशी,है तमन्ना के पल ये कहीं न जायें
कर लें महफ़ूस लम्हें हैं ये बेहद ख़ास के दूर कहीं हमसे खो न जायें

दिलों के रिश्ते होते मजबूत मगर गिले शिकवों की दरार आ न जाये
कच्चे धागे सी है रिश्तों की डोर गलती से भी कहीं गाँठ पढ़ न जाये

हर रिश्ता होता बड़ा अनमोल, के झटके से ये कहीं बिखर न जाये
होती नाजुक़ रिश्तों की डोर बड़ी ये डोर कहीं हमसे टूट न जाये।
~pratima......

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कहने को स्वतंत्र सबकी विचारधारा सभी उन्मुक्त रह रहें हैं
मगर सदियों से हम आज भी समाज नामी कठघरे में खड़े हैं

कभी दहेज़ प्रथा बाल विवाह तो कभी सती प्रथा जैसी कुप्रथा
समाज के नाम पर न जाने कितने ही मासूम सूली पर चढ़े हैं

हम अमीरी-गरीबी तो कभी जाति-पाति के चक्कर में पढ़े हैं
समाज के नाम पर आज भी रूड़ीवादी बेड़ियों में जकड़े हैं

माँ सीता हों या मीरा बाई आत्मसम्मान की अग्नि में जले हैं
हर युग में समाज के नाम पर स्त्री ने ही अथाह दुख सहे हैं

चली आ रही परम्पराओं के लिए अपने ही अपनों से लड़े हैं
आज भी किसी के जीवन से ज्यादा समाज के नियम बढ़े हैं

हो सुधार समाज व्यवस्था में हम आज भी जिद्द पर अड़े हैं
हो कैसे नवभारत निर्माण भला समाज के नियम जो कढ़े हैं।
~pratima.....

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मुस्कराहटों का एक नक़ाब दिल फरेब जो ओढ़े रहते
है अपने इसलिए उनके हर सितम ख़ामोशी से सह लेते

करूँ किस पर अब एतबार के काबिल हम किसे समझते
नहीं दामन पाक़ किसी का यही मेरे ख़्वाबों ख़्याल कहते

देखा किये जिनकी आँखों में मोहब्बत कभी अपने लिए
नफरतों के तूफ़ाँ उनके निगाह दिल में सफ़र किया करते

अपनों की ख़ातिर ख़ुद को हर बार समझा लिया करते
के अपने दर्द ए दास्तां को हम भी भला बयाँ कहाँ करते

किया है क़त्ल जिन्होंने मेरी हर ख़्वाहिशों का सरेआम
कोई और नहीं मेरे क़ातिल तो मेरे अपने ही निकले

हूँ जिस तरह वाक़िफ़ उनकी साज़िशों से मैं हर लम्हा
हूँ मजबूर इस क़दर के उन्हें बेनक़ाब कर नहीं सकते।
~pratima.....

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जैसे खिल उठता भोर का तारा और जैसे साँझ ढल जाती है
हर दिन इक नई उम्मीद का दामन थाम दुनिया सँवर जाती है

मन में दृढ संकल्प हो तब हौसलों को भी उड़ान मिल जाती है
चलना सबको कर्तव्य पथ पर मगर ये दुनिया क्यों भूल जाती है

रिश्ते नाते रहे सलामत चेहरे की हँसी फ़िर कितनी बढ़ जाती है
है प्रीत की डोर ये बड़ी पक्की दुनिया में यूँ ही नहीं टूट जाती है

समझ लें अगर जिम्मेदारी अपनी हर मुश्किल पीछे रह जाती है
भुलाकर अपने सपनों को सफलता की चाह दुनिया भूल जाती है

मिलती ठोकरें हर कदम यहाँ पर राहें भी मगर हर खो जाती हैं
शब्दों में है भरी कड़वाहट क्यों ये दुनिया हर बार भूल जाती है

दुनिया के संग कदम मिला कर चलना तब मंज़िलें मिल पातीं हैं
हो जाते हर सपने सच जीवन की तस्वीर जैसे निखर जाती है।
~pratima.....





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गुज़र गई उम्र तमाम बुनती रही ज़िन्दगी ताने - बाने
मुक़राहटें पीछे रह गयीं साथ चल रहे दर्द के फ़साने

इक टीस बाकी रह गयी चुभने लगे अनकहे अफ़साने
रह गए रूबरू ये मंज़र उदास बीत गए मौसम सुहाने

कतरा कतरा आंसूँ बन बह गए दर्द कब कितने जाने
हर सफ़र थी ग़म ए ज़िन्दगी और साथ जीने के बहाने

चुपके से कभी रखा था हमने भी इक ख़्वाब सिरहाने
न पूछो के कितना याद आते हमें आज भी गुज़रे ज़माने

अभी तो सामने थी ज़िन्दगी थे ज़िंदा एहसास ए तराने
पलक झपकते बीते दिन मगर न बीते कुछ दर्द वो पुराने

रूठी रूठी सी ज़िन्दगी हम चले हर कदम उसे मनाने
राहों में थे काँटे बहुत चलते रहे फ़िर भी मंज़िलों को पाने।
~pratima.....


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