जो हर दफा,मुझसे मेरी रजा पूछती है.........,
हाँ,वो गुस्ताखियाँ तेरी निगाहों की अच्छी है!!-
मैं खामोश थी और खामोश ही रहूँगी,
तू अपने सवालात मेरी निगाहों से कर!!-
न कोई नज़्म, न कोई गज़ल लिखूंगी,
निगाहों में कैद तेरी मुस्कुराहट लिखूंगी।
अल्फ़ाजों को तो समझ लेगा ये ज़माना,
तेरे लिए पहनी चूड़ियों की खनक लिखूंगी।
शोर भी सुन के सबने अनसुना कर दिया,
जो तुमने समझी, मैं वो खामोशी लिखूंगी।
अरसा हो गया हमारे नैनों को टकराए हुए,
झरोखों से झांकती आंखों का इंतजार लिखूंगी।
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उसकी कातिलाना मासुमियत का भी क्या कहना ,
यूं सरेआम कत्ल कर जाती हैं,हर बार मेरी ख्वाहिशों का ।।-
अक्सर तारों की छाँव में हम मिला करते हैं
दिल की बातें आँखों से बँया किया करते हैं
चलता रहता है मुलाकातों का सिलसिला यूँ
उसके हाथों को हाथ में थाम लिया करते हैं
बहुत कुछ बोलना चाहती है निगाहें उसकी
खामोशी से निगाहें उसकी पढ़ लिया करते हैं
कभी सावन, बारिश तो कभी पतझड़ होती है
अपना हर दुःख उस से हम बाँट लिया करते हैं
मिले जब पहली दफ़ा उस से तो अंजाना लगा
आलम ये अब थोड़ा खास मान लिया करते हैं
हर सुबह की चाय, हर रात के अंधेरे सा साथ
याद में उसकी निशानीयों को देख लिया करते हैं
'रूचि' अनकहे अहसास बिखरते हैं पन्नों पर
किस्सों को उसके कागज़ पर हम उतारा करते हैं-
ये जो उनकी निगाहों का वार है
इनके आगे खंजर भी बेकार है
उस पर लगाती हैं जब काजल वो
तीर-ए-चश्म दिल के आर पार है
लब खामोश रख, निगाहों से बात करती हैं
इस सलीका-ए-इज़हार पर जान निसार है
नज़रें मिलाकर फिर पलकों को झुकाना
हाय..!! उनकी इस अदा से ही तो प्यार है
हम इनसे नज़रें फेरें भी तो कैसे फेरें
इनमे दिखता आशियाना-ए-"निहार" है-
फुर्सत थोड़ी इन निगाहों को दो तो
दिल को जनाब़ थोड़ा आराम आये
मुस्कुराहट अज़ीज है ज़रा गौर करो
गालों पर लाली का रंग लाल आये
क्यों बंदिशे रखते हो जज्बातों पर
बँया करो दो दिल को आराम आये
किताबों में रखा गुलाब महक रहा है
दूँ किसी को कोई हसीन शाम आये
शब्दों में जादू सा होता है 'रूचि' समझ
जिक्र में साथ मेरा भी ज़रा नाम आये
क्यूँ "चाँद" पर फिसलता है दिल यँहा
महोब्बत में फिर क्यूँ न सरेआम आये-
ऐसे न देखा करो मुझको यूँ तिरछी निगाहो से
कहीं मैं मर न जाऊँ इन तिरछी नजरों की मार से ।।
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ना जाने कितने निगाहें उठेगी मेरी ओर ,
पर मेरी निगाहें तो उठेगी बस तेरी ओर !-
कभी पढ़ भी लिया करो तुम इन निगाहों के इशारों को,
ये ज़रूरी तो नहीं कि हर बात "ज़ुबां" पर लाई जाए....!
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کبھی پڑھ بھی لیا کرو تم ان نگاہوں کے اشاروں کو،
یہ ضروری تو نہیں کہ ہر بات "ذبان" پر لائ جاۓ.....!-