राम के भक्त रहीम के बन्दे
रचते आज फ़रेब के फंदे
कितने ये मक्कार ये अंधे
देख लिए इनके भी फंदे
इन्ही की काली करतूतों से
बना ये मुल्क मसान
कितना बदल गया इंसान-
मैं किसान हूँ
आसमान में धान बो रहा हूँ
कुछ लोग कह रहे हैं
कि पगले ! आसमान में धान नहीं जमा करता
मैं कहता हूँ पगले !
अगर ज़मीन पर भगवान जम सकता है
तो आसमान में धान भी जम सकता है
और अब तो दोनों में से कोई एक होकर रहेगा
या तो ज़मीन से भगवान उखड़ेगा
या आसमान में धान जमेगा।-
ना पत्थर पर विश्वास है ना भगवान पर विश्वास है,
इंसान हूं मुझे इंसानियत पर विश्वास है।
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ना हिन्दू हु ना मुस्लिम ना ही इसाई हु में तो एक इंसान हु
ना मंदिर जाते ना मस्जिद और ना चज् उस जगह जाते हैं जाहा जरूरत हो इंसान की
ना धम् करते ना अधम् हम तो वो करते जीससे दु:खी ना हो कोई इंसान
ना आस्तिक है ना ही नास्तिक, बस उस जगह नहीं जाते जाहा रोंध देते हैं इंसानियत को
मंदिर बने या मस्जिद क्या फर्क पड़ता बन तो ऊपर वाले का छोटा सा आशियाना ही है
धम् और अधर्म मे फस ने वाले उस इंसान से अच्छा तो वो किताबों वाली दुकान है जाहा गीता कुरान की किताब एक साथ रहती है
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भगत सिंह के पास बन्दूक भी थी और कलम भी थी...
बन्दूक उठाई थी इंकलाब के लिए..
और कलम उठाई थी वैचारिक क्रांति के लिए...
मै भगत सिंह को अपना आदर्श मानता हूं...
विचारों पर चलने के साथ कलम भी उठाता हूं...
कई युवा आदर्श मानकर उन्हें बन्दूक उठा लेते हैं..
इंकलाब नहीं होता उनमें,जुर्म का रास्ता अपना लेते हैं।
बहुत कम समय था उनके पास लिखने को..
पर जो लिखा वो बाते सब सीखने को...
वतन से बेपनाह मोहब्बत की हर बात से लेकर...
अपनी मिट्टी की महक में अपना भी कुछ देकर...
आज चारों तरफ अंधभक्ति काल्पनिक आस्था फैली है...
धर्म कर्मकाण्ड की बाते धंधा बन कर फैली हैं...
झूठी देविय शक्तियों में मानव उलझ के रह गया है...
भगत सिंह को पढ़ कर मेरा हर विचार बदल गया है।।
#क्या_साहेब
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अछूत व्यक्ति द्वारा,
मरे हुए जानवर के चमड़े से बनाया हुआ
ढोलक को मंदिर में बजाने से मंदिर
पवित्र नहीं हो जाता,
लेकिन नीच जाति के लोग अगर मंदिर
में चला जाए तो मंदिर अपवित्र
हो जाता है।-
ऐसा नहीं है कि मुझे यकीन नहीं खुदा पर,
पर बेहिसाब दिए हैं दर्द उसने,
इसलिये जरा सा रूठी हूँ मैं ।-
मैं मंदिर में सर नहीं झुकाता क्योंकि,
लोग मुझे नास्तिक कहते हैं,
मैं तो बस किसी रोते को हँसाता हूँ,
और मेरी पूजा हो जाती हैं.....!-