बिना छत के जो खड़ी है चारदिवारी, उसे मकान कह दूँ क्या
कुछ मुर्दा-दिल इंसान रहते हैं यहाँ, इसे शमशान कह दूँ क्या
सोच हैवानों सी शक्ल इंसानो की है, उसे इंसान कह दूँ क्या
शायद मजबूरियां रही होंगी उसकी, उसे बेईमान कह दूँ क्या
लूटकर अपनों को वो बड़ा बन गया, उसे महान कह दूँ क्या
बरसा नही है एक लंबे अरसे से, उसे आसमान कह दूँ क्या
दिखावे का वो आदर कर रहा है, इसे सम्मान कह दूँ क्या
कोई मेरी सच्चाई बयाँ कर रहा है, इसे अपमान कह दूँ क्या
भोजन के अभाव में भूखे सो गए बच्चे, इसे रमजान कह दूँ क्या
कोई मेरा हर दुःख दर्द बाँटता है, उसे भगवान कह दूँ क्या!!-
अपने अल्फाज बयां करता
मैं तो बस रवि हूँ
मैं तो बस शब्... read more
बदलाव कुछ यू भी आया है जमाने मे,
कि लोगो के घर बडे औऱ दिल छोटे हो गए है!
बचपन वाले सारे सिक्के अब खोटे हो गए है!
कही अस्पताल में ऑक्सीजन के सिलिंडर,
तो कही लोगो मे इंसानियत के टोटे हो गए है!
अब लोग सिर्फ नाम के बड़े और विचारों से छोटे हो गए है.....
विचारों से छोटे हो गए है!!-
अक्सर ज़िम्मेदार होती हैं कुछ अधूरे ख्वाबों की, अनगिनत सपने दम तोड़ देते हैं इन्हीं रिवाजों की बेड़ियों में जकड़कर। रिवाजों की बेड़ियाँ तब तक सही हैं जब तक वो मानवीय हैं और इनके चलते किसी व्यक्ति विशेष के मानवाधिकारों का हनन ना हो।
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आखिर कब तक यूँ नारी का सम्मान उछाला जाएगा,
क्या अब कोई स्थायी समाधान निकाला जाएगा...??-
सूरज की तरह जलना।
गर होना चाहो किसी का
तो पानी की तरह मिलना।
हों लाख बाधाएं मगर
मंज़िल की तरफ चलना।
ये रिश्ते बड़े अनमोल हैं
इन्हें पक्के धागों से सिलना।।-
कुछ सवालों के जवाब नही होते,
यहाँ हर किसी के पूरे ख्वाब नही होते।
खुद को भी सौंपना होगा कुछ पाने के लिए,
सिर्फ बातों से ही यहां कामयाब नहीं होते।
गर मंजिल को हर हाल में पाना ही है,
फिर मेहनत के कोई हिसाब नहीं होते ।
कभी कोई शिद्दत से भी निभाता है रिश्ते,
हर किसी चेहरे पर यहाँ नकाब नही होते।
बहुत कुछ सहा होगा उसने कई अरसों से,
बेवजह ही यहां कोई इंकलाब नहीं होते ।।-
क्यों तुम इतना इतराते हो
पहले करते खूब ठिठोली
फिर क्यों इतना शर्माते हो
कभी खेलते आँखमिचोली
फिर अचानक छुप जाते हो-