क्या करें? संघर्ष को, कुछ और अब भाता नहीं, जब से थामा साथ है, कहीं और यह जाता नहीं। क्या कहूं आगंतुक से इस द्वार से कहीं और जाए, इस तरह की प्रथा से अपना रहा है, नाता नहीं।
ले कर जाता मैं छाता पर भीग के आता। बारिश से था मेरा ऐसा प्यारा नाता ।। छींकते छींकते मैं बड़ों से डाँट भी खाता। छूटता नहीं पर बारिश से ये मेरा नाता ।। छोटा सा था वो मेरा इम्पोर्टेड छाता । या तुम आती उसके नीचे या मैं आता ।। तुम भी भीगती मैं भी भीगता भीगता छाता । हमें देखकर मुस्कुराता आता जाता ।। वो बारिश भी याद है मुझको और वो छाता । क्या तुम्हें भी वक्त वो प्यारा याद है आता ?