जब समाज में नवरात्रि की उपासना चल रही हो, कवि निराला की लिखी रचना 'प्रियतम' और अधिक प्रासंगिक हो जाती है, जिसमें नारद, भगवान विष्णु से उनके सबसे प्रिय व्यक्ति का नाम पूछते हैं, उत्तर जानकर विस्मित हो जाते हैं, फ़िर आगे क्या होता है!
आइए, अनुशीर्षक में स्वयँ ही पढ़ते हैं
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विनती
हाथ गंदे जब हुए हमने क्षण में धो लिया
मन जो मैला हो रहा उसका अब करू मैं क्या?
बुद्धि दे ओ मेरी माँ, विनती और करू मैं क्या?
अंबे तुझसे करें दुआ ! हे जगदम्बे करो दया !
सुख के दिन जब रहे हमने खुल के जी लिया
दुःख के बादल छा रहे उसका अब करू मैं क्या?
भक्ति दे ओ मेरी माँ विनती और करू मैं क्या?
अंबे तुझसे करें दुआ ! हे जगदम्बे करो दया !
सूर्य उदित जब तक रहा ऊँचा मस्तक रहा
जो अँधेरा छा रहा उसका अब करू मैं क्या?
शक्ति दे ओ मेरी माँ विनती और करू मैं क्या?
अंबे तुझसे करें दुआ ! हे जगदम्बे करो दया !-
बहुत सुना ली सब को अपनी व्यथा,
अब न तू समाज में बस मज़ाक बन।
( अनुर्शीषक में पढ़ें )
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सृष्टि का उद्धार कीजे
दुष्ट नराधम नरपिशाचों का संहार कीजे-
झाळर चाळ रह्या मिन्दर मेंं
दिवळा जौवे बाँया मिन्दर मेंं
काजळ सौह्वै सिंगार मेंं
घण्टा बाज रह्या मिन्दर मेंं...
घठ ने बिठावै , मन हरखावै
चुँनर माँ री ळेहरीये री...
टाबर रा भाग खोळै
भवानी म्हारी चमत्कारी ,
नौरता ल्याई माँ घर आंगनीयै मेंं
घण्टा बाज रह्या मिन्दर मेंं ।-
शक्ति बनकर करती दुष्टो पर वार हैं
माँ बनकर भक्तों को करती दुलार हैं
तेरे दरबार पर मिलता कितना सुकून माँ
नवरात्री मे छाया अलग जुनून माँ
साल भर करते तेरा इंतजार हैं
अब तों कर सबका बेढापार माँ-
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान सकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता हाश्रयतां प्रयान्ति।-
देवी दर्शन के तुरंत बाद
देवियों के दर्शन को उत्सुक
सभी बंधुओं को देख
ऐसा लगता है जैसे उनपे
सारी कृपा वहीं रुकी हुई है...-