याद आता है
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मेरी मसरूफ़ियत को अब,
वो शायद पहचान जाती है!!
बहुत झिझकते हुए नानी
मुझे छुट्टियों में बुलाती है....-
मेरी नानी और मेरा बचपन,
साथ-साथ में पला बढ़ा।
सुबह-सुबह उनका दुलार,
माँ से ज्यादा नानी का प्यार।
माँ का था कालेज आना जाना,
संग नानी के बचपन बिताना।
मामा-मम्मी को पड़ती डाँट,
अगर मैं हो जांऊ उदास।
जब-जब आए बचपन याद,
मामा का घर नानी की बात।
नानी तो सबकी प्यारी होती,
ननिहा़ल की बात न्यारी होती।
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ननिहाल
इतना स्नेह दुलार पाती हूँ
जब भी नानी घर जाती हूँ
भाभी नयी नवेली आयी है
स्नेह सम्मान लायी है...
मामी जी ने खुब खिलाया
मामा जी ने सिर सहलाया
सबने इतना लाड़ जताया
यह मेरा ननिहाल कहलाया
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कितना बदल गया है,
ये गाव।
यही तो बीता है ,
बचपन मेरा ।
यही सीखी हूं,
ककहरा, पहाड़ा।
आज लोगो को देख रही हूं,
वो मुझे नहीं पहचान पा रहे है,
और मै उन्हें नहीं पहचान पा रही हूं।
सड़के टेडी - मेढ़ी थी,
अब सीधी सपाट हो गई हैं।
नानी पतली- बूढ़ी हो गई हैं,
मामाजी के भी बाल पक्क गए हैं।
छोटे- छोटे बच्चे ,
नजाने कब बड़े हो गए ,
और बड़े ,बुजुर्ग हो गए हैं।
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गर्मियों के दिन।
भाग दो।
एक इतवार ऐसा भी।
पूरी कहानी, शीर्षक में जरूर पढ़े🙏-
गर्मियों ने जब से दस्तक दी है
कच्ची कैरियाँ याद आने लगी हैं
घर अब छोटा लगने लगा है
ननिहाल की छुट्टियाँ याद आने लगी हैं-
" ननिहाल "
बचपन की घुट्टी थी,गर्मी की छुट्टी थी ,
आज भी ख्यालों में ,ननिहाल की मिट्टी थी।।
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बाग बगीचों की रौनक , कुएं की चट्टी थी ,
बड़े से हाते में , खेलने को गिट्टी थी ।।
ममेरे मौसेरे भाई बहनों की ,मस्त वह टोली थी ,
छिपा-छिपाई खेल में ,उड़ाते खूब खिल्ली थी ।।
नानी लाड-प्यारसे , संस्कार सिखातीं थीं ,
रोटी से बचे परथन की,पंजीरी रोज खिलातीं थीं।।
अवशिष्ट परथन आटे में न मिलाना,शुद्धता बतातीं थीं,
हो गया अब झूठा ,उपयोग के तरीके बतातीं थीं ।।
हरी सब्जियाँ तरह तरह से ,पकाती थीं ,
दूध दही मक्खन बिलोकर ,भरपूर खिलाती थीं।।
खूब आम खाते ,मन भर खिलाती थीं ,
फल और मिठाई लाओ,नाना पर हुक्म चलातीं थीं।।
माँ पर प्रेम नाना का ,उमड़ उमड़ आता था ,
सबसे पहले मिठाई, माँ को ही परोसा जाता था।
पिता का प्यार तब ,समझ न आता था ,
अपने पापा से प्यार पा, नाना का प्यार याद आता है।।
ननिहाल ही है ,जहाँ माँ के नाम से जाने जाते हैं,
आसपास, मामा मौसी ,सब दुलार दिखलाते हैं ।।
आज मैं खुद ही ,नानी जो बन गई हूँ ,
उतना ही प्यार देने को ,उत्सुक रहती हूँ ।।
नानी की शिक्षा आज ,अपने नाती-नातिन को देती हूँ ,
नानी-नाना को शत शत नमन कर,खुश होती हूँ।।
सुधा सक्सेना(प़ाक रूह)-
ननिहाल ही तो है वो
जहाँ हमें माँ के नाम
से बुलाते है
नानी के हाथ का खाना
नाना का दुलार वही है
कुछ अलग ही मजा होता है
बस तब तक होता है
जब तक वह नाना-नानी
का घर है |
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