चलिए एक काम करते हैं,
निर्भया हो गयी, Dr. प्रियंका भी हो गई,
अब हाथरस कांड पे थोड़े आंसू बहा लेते हैं...
या एक काम करते हैं
वो तो लड़की थी उसे ही दोष दे लेते हैं..
थोड़े समय बाद सब भूल जाएंगे,
फिर कोई नया नाम होगा, नई ज़िंदगी बरबाद होगी,
तब फिर कुछ पल के लिए ये मुद्दा उठा देंगे
हां ठीक है Candle March भी कर देंगे..
पर उसके दोषी तो लड़के है न..
उनका पैदायशी अधिकार है ये सब..
उनका दोष थोड़े ही है... 😠😠
हां लड़की को लेके अपनी सोच नहीं बदलेंगे हम,
वो तो है ही गलत, क्यूं निकली घर से..
ऐसे कपड़े क्यूं पहने.. बगैरह बगैरह.. कुछ भी कह देंगे..इल्ज़ामों की बौछार कर देंगे.. बस और क्या..
यही क्रम चलता रहेगा, पर हम तो बस ऐसे समाज का हिस्सा हैं, जहां दोषी तो बच जाते हैं
पर सजा बेगुनाह पाते हैं...-
सच खतरनाक है
50000 से उपर 100000 तक तनख्वाह वाले अफसर....
5,000/रु महीना कमाने वाले मजदूर से जब रिश्वत माँगता है
तो इंसानियत का जनाजा निकल जाता है।रिश्वत लेने वाला संवेदनहीन होता है फिर उससे इंसानियत का तकाज़ा करना देइमानी है ।
उनका जमीर, आत्मा तो पहले ही मर चुकी होती हैं देश में आम गरीबो और मजदूरों की दुर्दशा दर्शाते ये हाथ के फफोले पर कुछ तो दया करो ये कारिन्दों और ऊपर से रिश्वत के पाप से कभी तुम्हें मुक्ति न मिलेगी। धिक्कार हो धिक्कार।।-
अगर
एक समय के बाद
ज़िन्दगी की उदासीनता
आपको बेबाक नहीं बनाती
तो धिक्कार है
ऐसी ज़िन्दगी पर
और वाह की अधिकारी है
उदासीनता वो-
धिक्कार है ऐसे मर्दों को
जिनकी माँ बहिन बेटी
पत्नी के मान की रक्षा के लिए
कोर्ट को आगे आना पड़ा
क्योंकि
जो पत पत्नी की रख न सके
वो पति नहीं कहलाता है-
55 वर्षों में जो न गरीबी मिटा न सके
वो गरीबी मिटाने की बात कर रहैं है
देश के गरीब और लाचार लोगों का
ये कांग्रेसी 6000 में बोली लगा रहैं है।
धिक्कार है ऐसे परिवार को जो देश को
लूट लूट कर खा गए,
एक मोदी को हराने के वास्ते देखो..
ये गरीबों के ईमान का भी बोली लगा गए।
-
"छत पर
सोया था बहनोई"
एक
धार्मिक गीत है।।
आज ही पता चला।।
😂 भगवान भला करे 😂-
जो हर रूप में है भीतर - बाहर तुझमें ,
उसको दरकिनार कर तू
नोचता है , फाड़ता है आबरू उसकी ....
कभी राह चलते विभत्सी बन ताड़ता है ।
मसलता है तू नन्हीं कलियां चमन की ,
दिखाता है अपने हवस की
मानसिक - विकलांगता ....
और बनता है तू प्रबुद्ध .... ??
दिखाता है अपनी प्रभुता .... !!
पर सुन ! उसके पहले तो खुद मरता है,
नोच बैठता है तू खुद को हर बार ....
तेरे प्रभुता की सत्ता ढहती है ,
तू अपने स्व के साथ
दफ़न होता है हर बार ....
हे मनुज !! धिक्कार !!-
ये ख़त उस गुमनाम पते को लिखता हूं,
जिस पर समाज का आदर्श निवास करता है।
ये ख़त उस आदर्श प्रतिमान को लिखता हूं,
जो हर किसी पर पाप का भार धरता है।
ये ख़त उस छिछले इंसान को लिखता हूं,
जो समग्र आबादी को त्रस्त करता है।
ये ख़त उस हर एक बुद्धिजीवी को है,
जो इंसानियत छोड़कर देवता बनना चाहता है।
इस ख़त में आलोचनाओं की श्रृंखला नहीं है।
इस ख़त में प्रशंसाओं की गाथा भी नहीं है।
बस ही शब्द है इसका विषय,
जो अपने आप में संपूर्ण है।
"धिक्कार"-
आप कुछ नया करते हो तो
लोग सबसे पहले हंसते हैं
कुछ समय धिक्कारते हैं
फिर उन्हें आदत पड़ जाती है
कुछ लोग फिर आपके जैसा
करने का प्रयास करते हैं
फिर कुछ और लोग वही करते हैं
अंततः वो फैशन बन जाता है... ☺👍-
इस सृष्टि में कीर्तन जारी है,
मेरा दुर्गुण ही मुझपर भारी है l
मुख से कहूँ कैसे मेरा दोष ही धिक्कार जाएगा
समझ तो लूँ सुन ज़रा कहीं ये भी प्यार होगा l
Gautam Kumar Singh-