धर्मों को जोड़ने वाले जातियों में बट कर रह गये।
अक्ल क्यों काम न आयी,जब सब पढ़ लिख गये।-
आज प्रातः से
मन बड़ा विचलित हैं।
एक प्रश् मन को अशांत कर रहा है।
धर्म क्या है?????-
हाए ये है कैसी, बिकट परिस्थिति
है ऊहापोह, धर्म संकट की स्थिति
अब मैं बेटा बन, माँ को मानु
या बन पति, पत्नी को जानु
हाए ये कैसी, बनी समस्या
दो पाटों में, मैं करूँ तपस्या-
एक ओर धर्म और दूसरी ओर सुख
यही धर्मसंकट है
जब धर्म का वहन ही संकट हो और
त्याग ही सुख हो
ऐसा क्षण जब सारे स्वप्न, आशाएं , दृश्य
ध्वस्त होते है स्वयं विचार कीजिए
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धर्म ही आज संकट का कारण बन गया
इसके नाम पर काली कोठर जैसा अनर्थ हो गया
राजनीति में आडंबर और व्यर्थ का पाखंड बन गया
इसी धर्म संकट में शोषण - शिक्षण व्यापार हो गया-
मां मेरी जननी है,
पत्नी मेरी संगिनी है,
रहते दोनों मेरे संग,
रोज रोज नए प्रसंग,
एक तरफ मां का आंचल,
दुजी ओर प्रेम के पल,
कैसे करूं व्यथा प्रकट,
यही है मेरा धर्म संकट।
-sanjeevsingh-
जब दिल की दिमाग से छिड़ जाए जंग,,
आंखें नीर बहायें और अवरुद्ध हो जाए कंठ,,
एक ओर खाई,दूजी ओर कुआँ,,
जिनके बीच में खड़े हों हम,,
ऐसी परिस्थिति को कहते हैं धर्म संकट,,-
जीवन में किसी बात पर दिमाग कहे कुछ और,दिल चाहता कुछ और।
निर्णय लेना सही-गलत कठिन,स्वंय को दो राह पर खड़ा पाते हैं।
दिलोदिमाग की तराजू, तुलनात्मक अध्ययन, धर्म संकट कहलाता है।-
अजीब धर्म संकट में है आज नारी
पुरुष की चाह, वह कमाऊ भी हो
और गृहस्थी में भी उम्दा
कठिन डगर है पनघट की
मगर संघर्षों से पार पाना ही तो
पहचान है, स्त्री की-